(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फइलुन /फेलुन)
आ गया हूँ वहाँ जिस जा से मैं जा भी न सकूँ |
मा सिवा उनके कहीं दिल को लगा भी न सकूँ |
इस तरह बैठे हैं वो फेर के आँखें मुझ से
उनके सोए हुए जज़्बात जगा भी न सकूँ |
मेरी महफ़िल में किसी ग़ैर को लाने वाले
दिल से मजबूर हूँ मैं तुझको जला भी न सकूँ |
फितरते तर्के महब्बत है तेरी यार मगर
तेरी इस राय को मैं अपना बना भी न सकूँ |
इतना मजबूर भी मुझको न खुदा कर देना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 24, 2017 at 9:00am — 16 Comments
ग़ज़ल (अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम )
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(फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन)
अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम |
उनके कुचे से वापस न जाएँगे हम |
ज़ुल्म कितने भी ढा ले सितमगार तू
ग़म के हर दौर में मुस्कराएँगे हम |
आपको तो अज़ीज़ों से फ़ुर्सत नहीं
किस तरह हाल दिल का सुनाएँगे हम |
जब भी मिलता है देता है वो ज़ख़्मे नौ
दस्त उलफत का कब तक मिलाएँगे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 14, 2017 at 10:23pm — 14 Comments
ग़ज़ल ( हाए वो शख़्स निकलता है सितमगर यारो )
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(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन )
मुन्तखिब करता है दिल जिसको भी दिलबर यारो |
हाए वो शख़्स निकलता है सितम गर यारो |
उनके चहरे से नज़र हटती नहीं है मेरी
किस तरह देखूं ज़माने के मैं मंज़र यारो |
कूचए यार से जाएँ तो भला जाएँ कहाँ
राहे उलफत में लुटा बैठे हैं हम घर यारो |
आस्तीनों में जो रखते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 5, 2017 at 6:14pm — 17 Comments
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