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PHOOL SINGH's Blog – September 2019 Archive (3)

कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं

कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं

क्यूँ मद हवा सा डोल रहा

क्या कोई हवा का झोका हूँ जो

क्यूँ हर नियम को तोड़ चला ||

 

क्या बहते जल की धारा हूँ

जिधर चले उस ओर मार्ग बना

कल-कल, छल-छल की आवाज कर

शुद्ध तन-मन को मैं करता चला ||

 

क्या खुला आकाश हूँ मैं

जो अनंत, असीम है

जीव जन्म का बीज है जो

छोर का जिसके नहीं पता ||

 

क्या असीमित सी भू-धरा हूँ मैं

सहनता की सीमा नहीं

हर…

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Added by PHOOL SINGH on September 23, 2019 at 3:51pm — 6 Comments

चंद्रयान- 2 का सफर

संपर्क टूटा विक्रम से तो

ना समझ ये विफल रहा

आर्बिटर अभी चक्कर लगा रहा

धैर्य रख, थोड़ा इंतज़ार तो कर

चिंता नहीं बस चिंतन कर ||

 

मार्ग विक्रम भटक गया

भ्र्स्ट ही शायद कारण हो

खंड-खंड होकर बिखर भी गया तो  

खोजने का प्रयास तो कर

चिंता नहीं बस चिंतन कर ||

 

वैज्ञानिकों का अपने हौंसला बढ़ा

साहस के उनके तारीफ तो कर

चूक कहाँ हो गई प्रयास मे

इस बात पर थोड़ा गौर तो कर

चिंता नहीं बस…

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Added by PHOOL SINGH on September 9, 2019 at 11:06am — 3 Comments

कर्ज़- एक मर्ज़

कर्ज़ का मर्ज़ होता है कैसा

समझ कभी ना पाया था

जब तक कर्ज में नहीं था डूबा

ऋणकर्ता का मजाक बनाया था

समय बदलते देर ना लगती     

अपनी मूर्खताओ की वजह से

मैं भी जब बाल-बाल बंधवाया

तब समझ में आया था ||

 

माँ कहती थी कर्ज ना लेना

गरीबी में तुम रह लेना

मुँह छोटा ओर पेट बड़ा

कर्ज का होता है बेटा

आसानी से ये नहीं चुकता

अच्छे-अच्छे को ले डूबता

पर आसानी से नहीं चुकता

इतना समझ लेना बेटा…

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Added by PHOOL SINGH on September 5, 2019 at 5:00pm — 4 Comments

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"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
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"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
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