कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं
क्यूँ मद हवा सा डोल रहा
क्या कोई हवा का झोका हूँ जो
क्यूँ हर नियम को तोड़ चला ||
क्या बहते जल की धारा हूँ
जिधर चले उस ओर मार्ग बना
कल-कल, छल-छल की आवाज कर
शुद्ध तन-मन को मैं करता चला ||
क्या खुला आकाश हूँ मैं
जो अनंत, असीम है
जीव जन्म का बीज है जो
छोर का जिसके नहीं पता ||
क्या असीमित सी भू-धरा हूँ मैं
सहनता की सीमा नहीं
हर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 23, 2019 at 3:51pm — 6 Comments
संपर्क टूटा विक्रम से तो
ना समझ ये विफल रहा
आर्बिटर अभी चक्कर लगा रहा
धैर्य रख, थोड़ा इंतज़ार तो कर
चिंता नहीं बस चिंतन कर ||
मार्ग विक्रम भटक गया
भ्र्स्ट ही शायद कारण हो
खंड-खंड होकर बिखर भी गया तो
खोजने का प्रयास तो कर
चिंता नहीं बस चिंतन कर ||
वैज्ञानिकों का अपने हौंसला बढ़ा
साहस के उनके तारीफ तो कर
चूक कहाँ हो गई प्रयास मे
इस बात पर थोड़ा गौर तो कर
चिंता नहीं बस…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 9, 2019 at 11:06am — 3 Comments
कर्ज़ का मर्ज़ होता है कैसा
समझ कभी ना पाया था
जब तक कर्ज में नहीं था डूबा
ऋणकर्ता का मजाक बनाया था
समय बदलते देर ना लगती
अपनी मूर्खताओ की वजह से
मैं भी जब बाल-बाल बंधवाया
तब समझ में आया था ||
माँ कहती थी कर्ज ना लेना
गरीबी में तुम रह लेना
मुँह छोटा ओर पेट बड़ा
कर्ज का होता है बेटा
आसानी से ये नहीं चुकता
अच्छे-अच्छे को ले डूबता
पर आसानी से नहीं चुकता
इतना समझ लेना बेटा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 5, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
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