कई दिन की बारिश के बाद,
आज बड़ी अच्छी सी धूप खिली थी,
नीला सा आसमान,
जो भरा था कई सफ़ेद बादलों से,
कई लोगों ने अपने कपड़े,
फैला दिये थे सुखाने को छ्तों पर,
जो कई दिन से नमी से सिले पड़े थे,
याद आ ही गई बचपन की वो बात बरबस,
की जब कहा करते थे की,
बारिश होती है जब ऊपर वाला कभी रोता है,
फिर जब धूप खिलती थी,
और आसमान भर जाता था सफ़ेद बादलों से,
तब कहा करते थे की,
ऊपर वाले ने भी सुखाने डाली…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on September 27, 2012 at 10:47pm — 4 Comments
एक सपना था जो टूट गया फिर,
व्यर्थ का ये प्रलाप है क्यों,
ख़ाबों के टूटने पर भी कभी,
कोई जान देता है भला,…
Added by पियूष कुमार पंत on September 26, 2012 at 10:13pm — 4 Comments
अभी कुछ देर पहले ही वो लौटा था,
घर पर आया तो कल की फिक्र में था,
बच्चे दिन से इंतज़ार में थे उसके घर आने के,
पर वो उनसे बात भी न कर सका,
वो कल की जल्दी में था,
उसने कल की तैयारी भी कर ली थी रात ही से,
जैसे वक्त बिलकुल भी नहीं हो पास उसके,
कल उसको सुबह ज़रा जल्दी निकालना था,
किसी से मुलाक़ात थी, कारोबार के सिलसिले में,
वक्त और जगह भी मुकर्रर थे मुलाक़ात के लिए,
सुबह के लिए कुछ कपड़े भी निकले उसने,
अपने कागजों को पढ़ा और…
Added by पियूष कुमार पंत on September 21, 2012 at 10:00pm — 1 Comment
आते जाते पहाड़ी जंगलों के रास्ते,
टेढ़ी मेढ़ी सी सुनसान सड़क के किनारे,
एक झुंड बैठा था कुछ बंदरों का,
मस्त थे वो सब मस्ती में अपनी,
कूदते-फाँदते कभी इस डाली,
तो कभी उस डाली,
कभी उछलते कभी झपटते,
आपस में लड़ते-गिरते,
एक पल में वो नीचे दिखते,
अगले ही पल पेड़ पे ऊंचे,
कुछ उनमें थे नन्हें बच्चे,
जो माँ की पुंछ से खेल रहे थे,
गाड़ी का ज्यों ही शोर हुआ,
सारे लपक पड़े ऊंचे पेड़ों…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on September 18, 2012 at 9:30am — 5 Comments
मेरे कमरे की खिड़की से खुला आकाश दिखता है,
कल रात ही मैंने ये महसूस किया की,
तारों से भरे काले आकाश में,
एक चाँद हर रोज इंतज़ार मेरा करता है,
लेटे लेटे ही अपने बिस्तर पर,
मैं बातें उससे अक्सर किया करता हूँ,
वो भी रूप बादल हर रोज आता है,
अभी चंद रोज पुरानी ही है मुलाक़ात हमारी,
Added by पियूष कुमार पंत on September 16, 2012 at 9:30am — 4 Comments
मोम सी कोमल ही थी वो माँ,
जो अब मॉम कहलाने लगी है,
अच्छा भला, चलता फिरता, हिलता डुलता,
पिता न जाने कैसे डैड हो गया है.....
ये अंग्रेजी के खेल में, ये शब्दों के मेल में,
हिन्दी से बच्चा आज कुछ दूर हो चला है,
ये व्यवसायिकता की होड है,
ये आधुनिकता की अंधी दौड़ है,
अपनी मातृभाषा से जिसने दूर किया है,
यही अनदेखी एक दिन,
बहुत हम सब को रुलाएगी,
जब सारे रिश्ते, सारे नाते और सारे संस्कार,
ये…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on September 15, 2012 at 9:49pm — 1 Comment
चाँद का जीवन भी,
कितना मोहक है,
अद्भुद कितना है,
ये चाँद का जीवन,
जन्म से ही दिखता है,
जैसे एक चेहरा मुस्कुराता हुआ,…
Added by पियूष कुमार पंत on September 15, 2012 at 7:35pm — 1 Comment
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