For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पियूष कुमार पंत's Blog – September 2012 Archive (7)

आँसू चाँद के....

कई दिन की बारिश के बाद,

आज बड़ी अच्छी सी धूप खिली थी,

नीला सा आसमान,

जो भरा था कई सफ़ेद बादलों से,

कई लोगों ने अपने कपड़े,

फैला दिये थे सुखाने को छ्तों पर,

जो कई दिन से नमी से सिले पड़े थे,

याद आ ही गई बचपन की वो बात बरबस,

की जब कहा करते थे की,

बारिश होती है जब ऊपर वाला कभी रोता है,

फिर जब धूप खिलती थी,

और आसमान भर जाता था सफ़ेद बादलों से,

तब कहा करते थे की,

ऊपर वाले ने भी सुखाने डाली…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 27, 2012 at 10:47pm — 4 Comments

एक सपना है जीवन .......

एक सपना था जो टूट गया फिर,

व्यर्थ का ये प्रलाप है क्यों,

ख़ाबों के टूटने पर भी कभी,

कोई जान देता है भला,…



Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 26, 2012 at 10:13pm — 4 Comments

कब आता है कल.....

अभी कुछ देर पहले ही वो लौटा था,

घर पर आया तो कल की फिक्र में था,

बच्चे दिन से इंतज़ार में थे उसके घर आने के,

पर वो उनसे बात भी न कर सका,

वो कल की जल्दी में था,



उसने कल की तैयारी भी कर ली थी रात ही से,

जैसे वक्त बिलकुल भी नहीं हो पास उसके,

कल उसको सुबह ज़रा जल्दी निकालना था,

किसी से मुलाक़ात थी, कारोबार के सिलसिले में,

वक्त और जगह भी मुकर्रर थे मुलाक़ात के लिए,



सुबह के लिए कुछ कपड़े भी निकले उसने,

अपने कागजों को पढ़ा और…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 21, 2012 at 10:00pm — 1 Comment

माँ हर रूप में माँ........

आते जाते पहाड़ी जंगलों के रास्ते,

टेढ़ी मेढ़ी सी सुनसान सड़क के किनारे,

एक झुंड बैठा था कुछ बंदरों का,

मस्त थे वो सब मस्ती में अपनी,

कूदते-फाँदते कभी इस डाली,

तो कभी उस डाली,

कभी उछलते कभी झपटते,

आपस में लड़ते-गिरते,

एक पल में वो नीचे दिखते,

अगले ही पल पेड़ पे ऊंचे,

कुछ उनमें थे नन्हें बच्चे,

जो माँ की पुंछ से खेल रहे थे,

गाड़ी का ज्यों ही शोर हुआ,

सारे लपक पड़े ऊंचे पेड़ों…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 18, 2012 at 9:30am — 5 Comments

मैं चाँद सा सुंदर हुआ नहीं....

मेरे कमरे की खिड़की से खुला आकाश दिखता है,

कल रात ही मैंने ये महसूस किया की,

तारों से भरे काले आकाश में,

एक चाँद हर रोज इंतज़ार मेरा करता है,



लेटे लेटे ही अपने बिस्तर पर,

मैं बातें उससे अक्सर किया करता हूँ,

वो भी रूप बादल हर रोज आता है,

अभी चंद रोज पुरानी ही है मुलाक़ात हमारी,



तब छोटा सा ही तो था, फिर बढ़ते…
Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 16, 2012 at 9:30am — 4 Comments

हिन्दी की दुर्दशा....

मोम सी कोमल ही थी वो माँ,

जो अब मॉम कहलाने लगी है,

अच्छा भला, चलता फिरता, हिलता डुलता,

पिता न जाने कैसे डैड हो गया है.....

ये अंग्रेजी के खेल में, ये शब्दों के मेल में,

हिन्दी से बच्चा आज कुछ दूर हो चला है,

ये व्यवसायिकता की होड है,

ये आधुनिकता की अंधी दौड़ है,

अपनी मातृभाषा से जिसने दूर किया है,

यही अनदेखी एक दिन,

बहुत हम सब को  रुलाएगी,

जब सारे रिश्ते, सारे नाते और सारे संस्कार,

ये…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 15, 2012 at 9:49pm — 1 Comment

चाँद का जीवन....

चाँद का जीवन भी,

कितना मोहक है,

अद्भुद कितना है,

ये चाँद का जीवन, 



जन्म से ही दिखता है,

जैसे एक चेहरा मुस्कुराता हुआ,…

Continue

Added by पियूष कुमार पंत on September 15, 2012 at 7:35pm — 1 Comment

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service