भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी
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सीधी सादी नेक बड़ी हूँ दिल की रानी
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी
मै महलो हूँ गाँव बसी हूँ जंगल में भी
आदि काल से जन-जन में हूँ आदिवासी…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 26, 2013 at 11:30pm — 12 Comments
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मस्तक राजे ताज सभी भाषा की हिन्दी
ज्ञान दायिनी कोष बड़ा समृद्ध विशाल है
संस्कृत उर्दू सभी समेटे अजब ताल है
दूजी भाषा घुलती हिंदी दिल विशाल है
लिए हजारों भाषा करती कदम ताल है
जन - मन जोड़े भौगोलिक सीमा को बांधे
पवन सरीखी परचम लहराती है हिंदी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
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१ १ स्वर तो ३ ३ व्यंजन 52 अक्षर अजब व्याकरण
गिरना…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 22, 2013 at 7:30pm — 14 Comments
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बेशर्म लोगों की
बड़ी -बड़ी फ़ौज है
चोर हैं उचक्के हैं
लूट रहे मौज हैं
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थाने अदालत में
'चोर' बड़े दिखते हैं
नेता के पैरों में
'बड़े' लोग गिरते हैं
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बूढा किसान साल-
बीस ! आ रगड़ता है
परसों तारीख पड़ी
कहते 'वो' मरता है
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बाप की पगड़ी में
'भीख' मांग फिरता है
'नीच' आज नीचे…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 16, 2013 at 10:30am — 14 Comments
इस रचना में एक अधिवक्ता की पत्नी का दर्द फूट पड़ा है ..................
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस ....
जब जग जाहिर ये झूठ फरेबी
बार-बार लगते अभियोग
अंधी श्रद्धा भक्ति तुम्हारी
क्यों फंसते झूठे जप-जोग
आँखें खोलो करो फैसला
ना जाओ लड़ने तुम केस .............
ना जइयो तुम कोर्ट हे !
मेरे दिल को लगा के ठेस…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 8, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
घर ही उजाड़ दिया
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मतलब की दुनिया है
मतलब के रिश्ते हैं
कौन कहे मेले में
आज कहीं अपने हैं
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छोटे से पौधे को
बड़ा किया प्यार दिया
सींचा सम्हाल दिया
फूल दिया फल दिया
तूफ़ान आया जो
घर ही उजाड़ दिया
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बिच्छू के बच्चों ने
बिच्छू को खा लिया
इधर – उधर, डंक लिये
'खा' लो सिखा…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 4, 2013 at 11:00am — 12 Comments
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