1222 1222 1222 1222
मुख़ालिफ इन हवाओं में ठहरना जब ज़रूरी है
चरागों को जलाने का कोई तो ढब ज़रूरी है
रुला देना, रुलाकर फिर हँसाने की जुगत करना
सियासत है , सियासत में यही करतब ज़रूरी है
उन्हें चाकू, छुरी, बारूद, बम, पत्थर ही दें यारो
तुम्हें किसने कहा बे इल्म को मक़तब ज़रूरी है
तगाफुल भी ,वफा भी और थोड़ी बेवफाई भी
फसाना है मुहब्बत का, तो इसमें सब ज़रूरी है
पतंगे आसमाँनी हों या रिश्ते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 26, 2016 at 8:30am — 24 Comments
चाँदनी, चाँदनी सी लगती थी
2122 1212 22 /112
बात जो अनकही सी लगती थी
वो ही बस ज़िन्दगी सी लगती थी
मर गई सरहदों के पास कहीं
सच कहूँ, वो खुशी सी लगती थी
हाँ , न थे गर्द आसमाँ में, तब
चाँदनी, चाँदनी सी लगती थी
रात भी इस क़दर न थी तारीक
उसमें कुछ रोशनी सी लगती थी
दुँदुभी साफ बज रही थी उधर
पर इधर बाँसुरी सी लगती थी
थी तबस्सुम जो उसकी सूरत पर
जाने क्यूँ बेबसी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 7:03pm — 5 Comments
2122 2122 2122 212
एक दिन है शादमानी की लहर का जागना
रोज़ ही फिर देखना है चश्मे तर का जागना
देख लो तुम भी मुहब्बत के असर का जागना
चन्द लम्हे नींद के फिर रात भर का जागना
चाँद जागा आसमाँ पर, खूब देखे हैं मगर
अब फराहम हो ज़मीं पर भी क़मर का जागना
बाखबर तो नींद में गाफ़िल मिले हैं चार सू
पर उमीदें दे गया है बेखबर का जागना
सो गये वो एक उखड़ी सांस ले कर , छोड़ कर
और हमको दे गये हैं उम्र भर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 11, 2016 at 10:07am — 4 Comments
तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें
1222 1222 122
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ये रिश्ते भी न बदतर होके लौटें
तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें
ये चट्टानें , न ऐसा हो कि इक दिन
मैं टकराऊँ तो कंकर हो के लौटें
इसी उम्मीद में कूदा भँवर में
मेरे ये डर शनावर हो के लौंटें
बनायें ख़िड़कियाँ दीवार में जब
दुआ करना, कि वो दर हों के लौटें
दिवारो दर, ज़रा सी छत औ ख़िड़की
मै छोड़ आया कि वो घर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 7, 2016 at 9:15am — 29 Comments
22 22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
ज्यूँ तालों में रुका हुआ पानी, गंदा तो है ही
राजनीति में नीति नहीं तब वो धंधा तो है ही
अब भाषा की मर्यादा छोड़ें, गाली भी दे लें
अगर विरोधों मे फँस जायें तो दंगा तो है ही
दिखे केसरी, हरा न दीखे. तो फिर कानूनों में
घुसा हुआ कोई बन्दा निश्चित अंधा तो है ही
डरो नहीं ऐ भारतवासी पाप करम करने में
मैल तुम्हारे धोने को अब माँ गंगा तो है ही
सारे झूठे , हाथों में…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 2, 2016 at 9:30am — 18 Comments
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