ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं, चिता पर अब तक चढ़ा नहीं
साँसे जब तक मेरी चलती है, तब तक जड़ मैं हुआ नहीं
जो कहते थे हम रोएंगे, कब तक मेरे ग़म को ढोएंगे?
पहले पंक्ति में खड़े है, जो कहते है कैसे सोएँगे?
मैं धूल नहीं उड़ जाऊंगा, धुआँ नहीं गुम हो जाऊँगा
हर दिल में मेरी पहूंच बसी, मर के भी याद मैं आऊँगा
कैसा होता है मर जाना, एक पल में सबको तरसाना
मूँह ढाके शय्या पर लेटा, मैं तकता हूँ सबका रोना
साँसों को रोके रक्खा है, कफन भी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 26, 2022 at 2:00pm — No Comments
पहली बार उसको मैंने, उसके आँगन में देखा था
उसकी गहरी सी आँखों में, अपने जीवन को देखा था
मैं तब था चौदह का, वो बारह की रही होगी
खेल खेल में हम दोनों ने, दिल की बात कही होगी
समझ नहीं थी हमें प्यार की, बस मन की पुकार सुनी
बचपन के घरौंदे ने फिर, अमिट प्रेम की डोर बुनी
उसे देखकर लगता था जैसे, बस ये जीवन थम…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 19, 2022 at 2:51pm — 8 Comments
जब तक तुमने खोया कुछ ना, दर्द समझ ना पाओगे
चाहे कलम चला लो जितना, कुछ ढंग का लिख ना पाओगे
जो तुम्हारा हृदय ना जाने, कुछ खोने का दर्द है क्या
पाने का सुकून क्या है, और ना पाने का डर है क्या
कैसे पिरोओगे शब्दों में तुम, उन भावों को और आंहों को
जो तुमने ना महसूस किया हो, जीवन की असीम व्यथाओं को
जब तक अश्क को चखा ना तुमने, स्वाद भला क्या…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 12, 2022 at 2:09pm — No Comments
कितना कठिन था बचपन में गिनती पूरी रट जाना
अंकों के पहाड़ो को अटके बिन पूरा कह पाना
जोड़, घटाव, गुणा भाग के भँवर में जैसे बह जाना
किसी गहरे सागर के चक्रवात में फँस कर रह जाना
बंद कोष्ठकों के अंदर खुदको जकड़ा सा पाना
चिन्हों और संकेतों के भूल-भुलैया में खो जाना
वेग, दूरी, समय, आकार, जाने कितने आयाम रहे
रावण के दस सिर के जैसे इसके दस विभाग रहे
मूलधन और ब्याज दर में ना जाने कैसा रिश्ता था
क्षेत्रमिति और…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 5, 2022 at 2:58pm — 2 Comments
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