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Kalipad Prasad Mandal's Blog – September 2017 Archive (3)

ग़ज़ल --पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्या

काफिया : आएँ , रदीफ़: क्या 

२१२२  २१२२  २१२

पाक आतंकी कभी बाज़ आएँ क्या

बारहा दुश्मन से’ धोखा खाएँ क्या ?

गोलियाँ खाते ज़माने  हो गये 

राइफल बन्दुक से’ हम घबराएँ क्या ?

जान न्योछावर शहीदों ने की’ जब

सरहदों को हम मिटाते जाएँ क्या ?

सर्जिकल तो फिल्म की झलकी ही’ थी

फिल्म पूरा अब मियाँ दिखलाएँ क्या ?

आपका विश्वास अब मुझ पर नहीं

अनकही बातें जो’ हैं बतलाएँ क्या ?

खो दिया…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on September 23, 2017 at 9:53am — 7 Comments

ग़ज़ल

काफिया : आये ; रदीफ़ :न बने

बहर : ११२२-| ११२२  ११२२  २२/११२

      २१२२}

तंज़ सुनना तो’ विवशता है’, सुनाये न बने

दर्द दिल का न दिखे और दिखाए न बने | 

पाक से हम करे’ क्या बात बिना कुछ मतलब  

क्यों करे श्रम जहाँ’ की बात बनाए न बने |

क्या कहूँ उनके’ हुनर की, है’ अनोखा अनजान

यही’ तारीफ़ कि हमको न सताए न बने |

कर्म इंसान का’ हो ठीक सितारा जैसा

कर्म काला किया’ तो चेहरा’ दिखाए न बने…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on September 20, 2017 at 8:10am — 13 Comments

तरही ग़ज़ल

दीप रिश्तों का' बुझाया जो', जला भी न सकूँ 

प्रेम की आग की’ ये ज्योत बुझा भी न सकूँ  |

हो गया जग को’ पता, तेरे’ मे’रे नेह खबर 

राज़ को और ये’ पर्दे में’ छिपा भी न सकूँ |

गीत गाना तो’ मैं’ अब छोड़ दिया ऐ’ सनम 

गुनगुनाकर भी’ ये’ आवाज़, सुना भी न सकूँ |

वक्त ने ही किया’ चोट और हुआ जख्मी मे’रे’ दिल 

जख्म ऐसे किसी’ को भी मैं’ दिखा भी न सकूँ |

बेरहम है मे’रे’ तक़दीर, प्रिया को लिया’…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on September 17, 2017 at 8:57pm — 11 Comments

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