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Santosh khirwadkar's Blog – September 2017 Archive (5)

अपने ग़म को मैं........संतोष

अरकान-फ़ाइलातून मफ़ाइलुन फेलुन

अपने ग़म को मैं छुपा लेता हूँ
सबकी ख़ुशियों का मज़ा लेता हूँ

दिल में जब याद का उठे तूफ़ां
तेरी तस्वीर बना लेता हूँ

सामने जब वो मेरे आता है
अपने सर को मैं झुका लेता हूँ

जब भी होता है वो ख़फ़ा मुझसे
प्यार से उसको मना लेता हूँ

दिल में जब टीस मेरे उठती है
अश्क मैं छुप के बहा लेता हूँ
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by santosh khirwadkar on September 27, 2017 at 8:00pm — 16 Comments

दिल ये कैसे बदल गया

अरकान:'फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा'

दिल ये कैसे बदल गया
यादों से ही बहल गया

देखी जो तस्वीर तेरी
मेरा दिल फिर मचल गया

ज़ालिम हैं सब लोग यहाँ
दिल ये सुनकर दहल गया

डूबा था मैं यादों में
दिन तेज़ी से निकल गया

मेरा क़िस्सा सुनते ही
पत्थर का बुत पिघल गया

#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by santosh khirwadkar on September 12, 2017 at 4:30pm — 8 Comments

मिरा दिल ये कैसे ....संतोष

मिरा दिल ये कैसे बदल गया,
फिर तिरी यादों से बहल गया ।

मैंने देखी जो फिर तस्वीर तिरी,
मिरा दिल फिर से मचल गया ।

लोग ज़ालिम हैं सब कुछ जाने है,
क़िस्सा फिर दुनियाँ में उछल गया ।

तिरी यादों में खोया मैं इस क़दर,
सुबह का सूरज शाम में ढल गया ।

दास्ताँ मिरी जो इक बुत को सुनाई,
वो पत्थर भी मोम सा पिघल गया ।
#संतोष
{मौलिक एवं अप्रकाशित}

Added by santosh khirwadkar on September 8, 2017 at 10:30pm — 7 Comments

है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं.....{.ग़ज़ल } संतोष

 अरकान : फ़ाइलातून   फ़ाइलातून  फ़ाइलुन  

है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं

जब तू मेरा है तो लगता क्यूँ नहीं



जब नज़र से मिल नहीं पाती नज़र

ख़्वाब से बाहर निकलता क्यूँ नहीं



लग रही है क्यूँ थमी दुनिया मुझे

तू भी मौसम सा बदलता क्यूँ नहीं



है ज़बाँ चुप और धड़कन तेज़ है

तू इशारों को समझता क्यूँ नहीं



जिस्म ठण्डा पड़ गया'संतोष'…

Continue

Added by santosh khirwadkar on September 7, 2017 at 6:58pm — 14 Comments

जब तू मिरा है .....,संतोष

जब तू मिरा है तो अपना लगता क्यूँ नहीं

दिल के आइने में साफ़ दिखता क्यूँ नहीं



अब नज़रें मिलती ही नहीं तिरी नज़रों से,

हसीन ख़्वाबों से फिर निकलता क्यूँ नहीं



दुनियाँ मुझे अब क्यूँ थमी सी लगती है

तू भी मौसम सा कुछ बदलता क्यूँ नहीं



ज़बां चुप और धड़कन भी तेज़ है ज़रा

तू नज़रों के इशारे समझता क्यूँ नहीं



ये जिस्म सर्द है बर्फ़ के मानिन्द'संतोष'

तू रगों में गर्म लहू सा दौड़ता क्यूँ नहीं



#संतोष खिरवड़कर

(मौलिक एवं… Continue

Added by santosh khirwadkar on September 5, 2017 at 5:30pm — 6 Comments

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