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Poonam Shukla's Blog – September 2013 Archive (3)

ग़ज़ल -ऐसा प्यार अमर होता है - पूनम शुक्ला

2222 2222

हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है

तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है

इक लय में गाते जब दोनों
ऐसा प्यार अमर होता है

प्रेम नहीं बस तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है

बन जाता जो रेत सजीला
वो भी तो पत्थर होता है

रुक जाते हैं पाँव जहाँ पर
देखा तेरा दर होता है

तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on September 30, 2013 at 11:01am — No Comments

ग़ज़ल - सितम सारे सहें कुछ यूँ

1222. 1222

चलो चल कर कहें कुछ यूँ
सितम सारे सहें कुछ यूँ

रियावत ओढ़ लें थोड़ा
जुदाई को सहें कुछ यूँ

सफीना कागजों का था
लहर से हम कहें कुछ यूँ

नशेमन नम न हो कोई
नयन अपने बहें कुछ यूँ

सितारें खोज लें हमको
अँधेरों में रहें कुछ यूँ

रियावत - परंपरा
सफीना - नाव
नशेमन - घोंसला

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on September 22, 2013 at 10:20am — 20 Comments

गज़ल - गांधियों के रूप में ढलते गए

बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ

२१२२, २१२२, २१२

हम चले थे आस में चलते गए

और वो सब हाथ ही मलते गए



खूबसूरत रुत न थी औ रहगुज़र

तीरगी की बाढ़ को छलते गए



खूब रोका कंटकों नें राह में

राह में हम फूल सा खिलते गए



कह रहीं थीं आँधियाँ रुक जा जरा

आँधियों सा राह में चलते गए



झूठ आया रूप धर के सामने

गांधियों के रूप में ढ़लते गए



देख सुन कह मत गलत बुनते रहे

वानरों के पेट भी पलते गए



या खुदा तूने न देखा… Continue

Added by Poonam Shukla on September 20, 2013 at 1:00pm — 20 Comments

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