आज चाँद दिखा आसमान में पूरा,
और वो बुढिया भी जो कात रही है,
सूत कई वर्षों से बैठी हुई तन्हा,
मैं हैरान हूँ, और परेशान भी,
क्या चाँद पर भी लोग हम जैसे ही रहते हैं,
क्या वहाँ भी बूढ़ों को यूं ही छोड़ दिया जाता है,
अकेला और तन्हा, विज्ञान कहता है कि,
कोई बुढ़िया नहीं रहती है चाँद पर,
पर मुझको तो मेरी माँ ने तो बचपन बताया था ,
सूत कातती उस बुढ़िया के बारे में,
वो चाँद मामा है हमारा हमने ये बचपन से सुना है,
तो…
ContinueAdded by पियूष कुमार पंत on October 2, 2012 at 9:00pm — 7 Comments
अमर 'शास्त्री'
छंद: कुकुभ
(प्रति पंक्ति ३० मात्रा, १६, १४ पर यति अंत में दो गुरु)
'लाल बहादुर' लाल देश के, काम बड़े छोटी…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2012 at 4:00pm — 24 Comments
एक की लाठी सत्य अहिंसा एक मूर्ति सादगी की,
Added by shalini kaushik on October 2, 2012 at 2:39pm — 4 Comments
तेज लोकल में मध्यम ध्वनि गूँजी, “पुढील स्टेशन अँधेरी”.
“यार ये पुढील स्टेशन का मतलब पुलिस स्टेशन है क्या”? देव ने अजय से पूछा.
अजय बोला, “पता नहीं यार. मैंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया”.
तभी उनके बगल में खड़ा एक लड़का बोला, “तुम साला भैया लोग यहाँ बस तो जाता है, लेकिन यहाँ का लैंग्वेज सीखने में तुम्हारा नानी मरता है”.
“ए छोकरा ये बातें नेता लोग…
ContinueAdded by SUMIT PRATAP SINGH on October 2, 2012 at 11:30am — 10 Comments
बुजुर्ग दिवस के उपलक्ष में
सेदोका एक जापानी विधा ३८ वर्ण ५७७५७७
(१)बूढ़ा बदन
कंपकपाते हाथ
किसी का नहीं साथ
लाठी सहारा
पाँव से मजबूर
बेटा बहुत दूर
(२)धुंधली आँखें
झुर्री भरा…
Added by rajesh kumari on October 1, 2012 at 8:56pm — 12 Comments
अनजान हैं जो कह रहे, जाहिल हैं बेटियाँ
दुनिया में अब हर काम के, काबिल हैं बेटियाँ
तौरो तरीके बा-अदब, रखना हैं जानती
इस दौर में बेटों के मुक़ाबिल हैं बेटियाँ
कुर्बान खुद को कर रही, उल्फत-ए-मुल्क पर
अब जंग के मैदाँ में भी शामिल हैं बेटियाँ
मौजे तमन्ना गर कोई, तूफाँ खड़ा करें
जो थाम ले हर मौज वो साहिल हैं बेटियाँ
सबको यहाँ संवारतीं बन बेटी माँ बहन
इंसान की नेकी का ही हाशिल हैं बेटियाँ
संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा ,…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 1, 2012 at 1:58pm — 12 Comments
तुमसे सीखा हंसना मैंने आखिर मुझे रुलाया क्यों ....
इतनी दूर चले जाना था इतनी पास बुलाया क्यों ...
तेरी यादें, ख़त तेरे कुछ केवल बचा खजाने में
नींदें, दिल का चैन , खो गया तेरे ख्वाब सजाने में
सोना था तो सो जाते तुम नाहक मुझे जगाया क्यों
इतनी दूर चले जाना था इतनी पास बुलाया क्यों -----------
काँटों पर चलना था चलते, लेकिन तुम भी होते साथ
जब भी ठोकर गर मैं खाता तुम दे देते अपना हाथ
वादे ढेरों लेकिन तुमने इक भी नहीं…
Added by ajay sharma on October 1, 2012 at 12:02pm — 2 Comments
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