मैंने केसर-केसर मन से रची रंगोली,
मैंने रेशम-रेशम बंधनवार सजाए,
कुछ महके कुछ मीठे से पकवान बना लूँ-
तुम आओ तो उत्सव जैसा तुम्हे मना लूँ...
कंगूरों तक रुकी धूप से कर मनुहारें
हर कोना घर-आँगन का मैं रौशन कर लूँ,
माँग हवाओं से लाऊँ खुशबू के झौंके
सावन की आकुलता इन आँखों में भर लूँ,
नम कर लूँ मैं दिल का रूठा-रूठा…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 5, 2019 at 1:10am — 5 Comments
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