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हरिक धड़क पे तड़प उठें बद-हवास आँखें
बिछड़ के मुझसे कहाँ गईं ग़म-शनास आँखें
कहाँ गगन में छुपे हुये हो ओ चाँद जाकर
तमाम शब अब किसे निहारें उदास आँखें
बिछड़ के तुझसे सिवाय इसके रहा नहीं कुछ
कि एक बिगड़ा हुआ मुक़द्दर क़यास आँखें
यक़ीन होता नहीं कि कैसे चला गया वो
दिखा रही थीं डगर उसी की उजास…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 5, 2022 at 7:00pm — 10 Comments
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