Added by Er. Ambarish Srivastava on October 15, 2012 at 11:43am — 16 Comments
स्वात घाटी की निर्भीक बेटी मलाला को समर्पित
सुन्दरी सवैया
अधिकार मिले सब शिक्षित हों बिखरे चहुँ ओर हि ज्ञान उजाला.
लड़ती जब जायज़ घायल क्यों सुकुमारि दुलारि पियारि 'मलाला'.
सब…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 13, 2012 at 3:00pm — 20 Comments
(बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन.
२१२२ ११२२ ११२२ २२)
जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं
हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं
देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं
जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं
प्यार है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये ही
हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं
माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को
रिश्तेदारों के…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 11:00pm — 22 Comments
(चार चरण : विषम चरण १३
मात्रा व जगण निषेध / सम चरण ११ मात्रा)
आदिशक्ति है नारि ही, झुक जाते भगवान.
नारी सबकी मातु है, सब जन पुत्र समान..
शक्तिरूप में ही वही, नहीं अल्प अभिमान.
परमेश्वर के रूप में, पिय को देती मान..
ताने सहकर नित्य ही, बनी रहे अनजान.
सदा समर्पित भाव से, सबका रखती ध्यान..
जान बूझ बंधन बँधे, बचपन बाँधे पित्र.
यौवन में पिय बाँधते, जरा अवस्था पुत्र..
ईश्वर ही नर…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 8, 2012 at 1:13am — 13 Comments
(चार चरण : विषम चरण
१२ मात्रा व सम चरण ७ मात्रा सम चरणों का अंत गुरु लघु से )
प्रात जागती नारी, नहिं आराम.
साथ नौकरी करती, है सब काम..
प्यार शक्ति दे तभी, उठाती भार.
नारी बिन यह दुनिया, है लाचार..
प्रेम स्नेह की करती, जग में वृष्टि.
पूजित नारी जग में, जिससे सृष्टि..
त्याग तपस्या सेवा, तेरे नाम.
शक्ति स्वरूपा नारी, तुझे प्रणाम..
सत्ता मद में गर्वित, नर है आज.
अखिल विश्व…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 8, 2012 at 1:00am — 21 Comments
अमर 'शास्त्री'
छंद: कुकुभ
(प्रति पंक्ति ३० मात्रा, १६, १४ पर यति अंत में दो गुरु)
'लाल बहादुर' लाल देश के, काम बड़े छोटी…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2012 at 4:00pm — 24 Comments
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