जलाऊं दीपक कैसे
कुल बीते दिन चार ,चमन का खोया माली
रोते पुहुप हजार ,कहाँ कैसी दीवाली
व्यथित उत्तराखंड ,तबाही कैसे भूले
आँसू मिश्रित आग ,जलेंगे कैसे चूल्हे
बिना तेल के दीप ,जलेगी कैसे बाती…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 29, 2013 at 1:00pm — 28 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२
बहर---हजज मुसम्मन महजूफ
काफिया ---ना
रदीफ़ ----लगा
सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा
तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा
…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 14, 2013 at 3:00pm — 25 Comments
"अरे गप्पू ये तो अपने ही साहब हैं चल चल जल्दी.."
जैसे ही ट्राफिक लाईट पर गाड़ी रुकी, महज दस साल का टिंकू अपने छोटे भाई गप्पू के साथ दौड़ता हुआ कार की दाहिनी ओर आकर बोला,
“अरे साब आज आप इतनी जल्दी ?"
"रावण जलता देखना है ", साहब ने जल्दी से उत्तर दिया |
"अच्छा.. साहब गजरा.. ",
टिंकू के हाथ में गजरा देखते ही बगल में बैठी मेमसाहब बोली, "अरे ले लो, कितने का है ?"
"चालीस रूपये का..", टिंकू ने तुरंत जबाब दिया ।
सुनते ही साहब तुनक…
Added by rajesh kumari on October 9, 2013 at 11:00am — 51 Comments
2122 2122 2122 2122
बह्र----रमल मुसम्मन सालिम
.
हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं
शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं
लूट…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 5, 2013 at 8:30pm — 40 Comments
"देखो सुशीला ये रूल में नहीं है मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम दुबारा शादी कर चुकी हो फिर कैसे अपने मरहूम पति की पेंशन ले सकती हो मैं अभी नया आया हूँ ,जैसे चलता आया है सब वैसे ही नहीं चलेगा; मैं इस मामले में बहुत सख्त हूँ" बड़े बाबू की फटकार सुनते ही सुशीला की आँखे भर आई हाथ जोड़ कर बोली "साहब मेरे दो बच्चों पर रहम खाइए आप किसी को कुछ मत कहिये बड़े साहब को पता चलेगा तो" !!! और वो फफक कर रो पड़ी।…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 3, 2013 at 11:00am — 39 Comments
छंदों की फुहार हैं भीगे अशआर हैं
कहे कलम क्या; सृजन करूँ ?
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
जो नित नए रंग बदलते हों
पल पल में साथ बदलते हों
नूतन परिधानों की…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 1, 2013 at 11:30am — 18 Comments
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