मेरे हक़ में,खि़लाफ़त में, कोई तू फैसला तो दे
सज़ा-ऐ-मौत ही दे दे ,मेरे मुन्सिफ़ सज़ा तो दे
हुनर तेरा तू ही जाने ,बसाकर घर उज़ाडा है
लगाकर आग़ हाथों से,मेरे घर को ज़ला तो दे
व़फादारी तेरी आँखों में अब ढ़ूँढ़े नहीं मिलती
नज़र गद्दार है तेरी ,ज़रा इसको झुका तो दे
मेरे ही वास्ते तूने सज़ाकर जहर का प्याला
रख़ा है घोलकर कब से जरा मुझको पिला तो दे
चला में छोड़ के दुनिया मुबारक़ हो जहाँ तुझको
तसल्ली मिल गयी होगी, जरा अब मुस्क़रा तो…
Added by umesh katara on October 31, 2014 at 10:03pm — 11 Comments
लोग हैं सब पत्थरों के आजकल मैं भी
बार करते ख़न्जरों के आजकल मैं भी
लुट गयीं अब तो बहारें, सब शज़र सूखे
गीत लिखता बन्जरों के आजकल मैं भी
मुफलिसी देखी कभी फुटपाथ पर रोती
लोग देखे बे-घरों के आजकल मैं भी
दर्द को गाते हुये देखा फकीरों को
हो गये जो दर-दरों के आजकल मैं भी
आसमाँ छूने चला हूँ जिद़ पुरानी है
उड़ रहा हूँ बिन परों के आजकल मैं भी
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on October 30, 2014 at 9:30am — 15 Comments
212 212 212 212
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इश्क़ मैंने किया दिलज़ला हो गया
उम्र भर के लिये मसख़रा हो गया
कुछ ग़लत फहमियाँ इस क़दर बढ़ गयीं
एक तू क्या मिला मैं ख़ुदा हो गया
चाँद भी सो गया रात तन्हा कटी
लुट गयी महफ़िलें सब ये क्या हो गया
एक लौ दिख रही थी कहीं दूर फिर
देख़ते देख़ते रतज़गा हो गया
दर्द बढ़ता गया आँख बहती गयीं
आँसुओं का समन्दर ख़ड़ा हो गया
आसमाँ फट पडा जब ये उसने कहा
हाथ छोड़ो मेरा मैं बड़ा हो…
Added by umesh katara on October 6, 2014 at 5:40pm — 3 Comments
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