जैऽऽ…….दुर्गामइया की जैऽऽऽ……
नाव के एकबारगी हिचकोले खाने के साथ ही दुर्गा एवं संलग्न प्रतिमाओं का विसर्जन हो गया. माता, माता के शृंगार, शेर के अयाल, महिष के सींग, असुर की फैली भुजायें, सबकुछ एक साथ जल में समाने लगे.
मूर्ति के साथ साथ मनुआ भी पानी में कूदा. उसे न तो दानव का कोई डर था, न उसे माता के आशीर्वाद चाहिये थे.
“अबे.. ये मेरी वाली है..”, कहता हुआ वो डूबती हुई प्रतिमाओं की ओर तैर चला.
उसे उनके पास बाकियों से पहले पहुँचना था, ताकि आने वाली ठंड में…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on October 6, 2014 at 3:30pm — 17 Comments
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