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जरा सा मसअला है ये नहीं तकरार के क़ाबिल
किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल
न ये संसार है मेरे किसी भी काम का हमदम
नहीं हूँ मैं किसी भी तौर से संसार के क़ाबिल
न मेरी पीर है ऐसी जिसे दिल में रखे कोई
न मेरी भावनायें हैं किसी आभार के क़ाबिल
ये मुमकिन है ज़माने में हंसी तुझसे ज़ियादा हों
सिवा तेरे नहीं कोई मेरे अश'आर के क़ाबिल
मेरे आँसू तुम्हारी आँखों से बहते तो अच्छा…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 25, 2021 at 12:00pm — 14 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 7, 2021 at 4:00pm — 8 Comments
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