चाँद को भी हम कब तलक देखें
न देखें तुम्हे तो क्या फलक देखें
खुद चला आया जो आफताब आँखों में
फिर क्या किसी शम्मा की झलक देखें
आने का यकीं दे चले थे मुस्कुरा के वो
कुछ और हम ये तनहा सड़क देखें
वो न देखें मेरे ये लडखडाये से कदम
देखना है तो मेरी आँखों में चमक देखें
क्या देखते हैं आप यूं काफियों को घूर कर
मिल जाए जो जहां बस सबक देखें
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 26, 2012 at 10:36pm — 7 Comments
आखिरकार कसाब मारा गया! एक लम्बा चला आ रहा विरोध और इंतज़ार ख़त्म हुआ! इस मृत्यु से उन सभी शहीदों जिन्होंने कि देशरक्षा के लिए अपने प्राण निस्वार्थ अर्पण कर दिए के परिजनों को मानसिक शांति तो मिली होगी किन्तु उन्होंने जो खोया उसकी भरपाई नहीं हो सकती|
कसाब को मारना सिर्फ एक कदम था निष्क्रियता से उबरने के लिए, हालांकि ये बहुत जरुरी भी था| मगर सवाल ये उठता है कि क्या कसाब को मार देना ही उन शहीदों के लिए श्रृद्धांजलि होगी? क्या कसाब ही अंतिम समस्या थी? शायद नहीं! कसाब उस समस्या का सौंवा हिस्सा…
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 26, 2012 at 4:49pm — 1 Comment
वो नज़र नज़र भर क्या देखें
वो रुका समंदर क्या देखें
जो पत्थर जैसा मिला सदा
दिल उसके अन्दर क्या देखें
कोई उनके जैसा बना नहीं
हम तुम्हें पलटकर क्या देखें
हमने तो हंस के छोड़ा सोना
ये कौड़ी चिल्लर क्या देखें
वो चाँद बुझा कर जा सोये
हम तारे गिनकर क्या देखें
टूट गये गुल गईं बहारें
अब उजड़ा मंज़र क्या देखें
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 21, 2012 at 10:09pm — 3 Comments
कुछ और शाम इंतज़ार सही
कुछ और दिल बेकरार सही
कुछ और रखी जिन्दगी दांव पे
कुछ और तेरा ऐतबार सही
कुछ और गम के समंदर पालूँ
कुछ और काज़ल की धार सही
कुछ और चले ये रात अँधेरी
कुछ और सर्द अंगार सही
कुछ और चाँद की ख्वाहिश मेरी
कुछ और तेरा ये प्यार सही
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 20, 2012 at 8:56pm — 3 Comments
फूल ही सही मगर ख़ारों में ज़िन्दा हूँ
मय बनकर ही तलबदारों में ज़िंदा हूँ
मैं इश्क हूँ मुझे आशारों में न ढूंढ
मैं तेरी आँख के इशारों में ज़िन्दा हूँ
मुझे आसमाँ की आज़ादी मिली न कहीं
मैं तेरी याद के इज्तिरारों में ज़िन्दा हूँ
न दे गवाही मुझे इनकारों की तमाम
मैं तेरे खामोश इकरारों में ज़िंदा हूँ
ये माना कि किश्ती है जलजलों में अभी
मैं मगर उम्मीद के किनारों में ज़िन्दा हूँ
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 19, 2012 at 9:35pm — No Comments
यूं तो हमारे देश में कई क्रांतिकारी कई देशभक्त आये| कोई नोटों तक पहुंचा कोई गुमनामी में खो गया, किसी को चर्चे मिले कोई किताबों में सो गया| मगर उन्होंने अपना कर्तव्य कभी नहीं छोड़ा, आजादी के बाद भी अनेक क्रांतिकारी यदा-कदा देश में आते-जाते रहे| जब-जब शासन अपनी शक्तियों और कर्तव्य को भुला कर कुछ भी करने में अक्षम रहा, वे देशभक्त उन्हें कर्तव्य बोध कराते रहे|
ऐसा ही कर्तव्य बोध हाल ही में हमारे देश के एक वीर क्रांतिकारी द्वारा सरकार को कराया गया| ये वीर कोई और नही बल्कि परम साहसी, अत्यंत…
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 9, 2012 at 4:10pm — 7 Comments
रो रोकर हार गया काजल
हार गये बिछुए कंगना
समझा दो तुम ही तुम बिन
अब कैसे जिएगा ये अंगना
कैसे आयें प्राण कहो अब नथ,बिंदियाँ और लाली में
कैसे धर लूं धीर पिया मैं इन आँखों की प्याली में
सब देखें छत चढ़ चढ़ चन्दा,
पर मेरा चन्दा रूठ गया
दिल का बसने वाला था जो
कितना पीछे छूट गया
कैसे रंग रहे होली में कैसी चमक दिवाली में
कैसे धर लूं धीर पिया मैं इन आँखों की प्याली में
जनम जनम की कसमें सारी
इक क्षण में ही तोड़ चले
तुम क्या जानो अंखियों से…
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 4, 2012 at 9:44pm — 5 Comments
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