संबोधन
“देखो ये बस अब नहीं जा सकेगी खराब हो चुकी है चारो और सुनसान है लगभग सभी सवारियां पैदल ही निकल चुकी हैं ये दो चार लोग ही बचे हैं और बहन, मेरा गाँव पास में ही है पैदल ही चले जाएँगे सुबह खुद मैं तुम्हारे गाँव छोड़ आऊँगा मेरे साथ चलो तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा” सतबीर ने कोमल से कहा |
कोमल ने मन मे बेटी संबोधन, जो कुछ देर पहले बस में बचे हुए उन लोगों ने दिया को बहन के संबोधन से भारी तौलते हुए तथा खुद को मन ही मन कोसते हुए कि किस मनहूस घड़ी में वो पति से लड़कर गाँव…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 25, 2015 at 7:32pm — 9 Comments
१२२२ २१२२ १२२२ २१२२
नहीं करना काम कोई मगर दर्शाना बहुत है
छछुंदर सी शक्ल पाई अजी इतराता बहुत है
जरा रखना जेब भारी करेगा फिर काम तेरा
सदा भूखी तोंद उसकी भले ही खाया बहुत है
वजन रखना बोलने पर जरा भारी बात का तू
दबा देगा बात को घाघ वो चिल्लाता बहुत है
दरोगा वो गाँव का देखिये तो मक्कार कितना
शिकायत लिखता नहीं फालतू हड़काता बहुत है
मुहल्ले में शांत रहता मगर उसने बारहा ही
भिड़ाया है…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 7, 2015 at 6:18pm — 9 Comments
“आज उदास क्यूँ हो बेटा क्या सोच रहे हो ”? जलेबी पकड़ाते हुए पापा ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा| “पापा मैं एक बहुत बड़ी दुविधा में हूँ आपको तो पता है मैं चित्रकला और काव्य लेखन दोनों ही विधाओं को पसंद करता हूँ तथा दिन रात मेहनत करता हूँ आगे अपना कैरियर भी इन्हीं में से किसी एक को लेकर बनाना चाहता हूँ” वैभव ने कहा | “तो फिर इसमें कैसी दुविधा है बेटा”?
“पापा मैं तो दोनों में ही अपने को कुशल समझता था पर चुनाव करने में असमंजस में था तो मैंने सोचा क्यूँ न मैं इन विधाओं…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 3, 2015 at 11:38am — 14 Comments
221 2121 1221 212
उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये नकली लगे हुए वो मुखौटे उतर गये
आकाश में उड़े न उड़े फिक्र क्या उन्हें ,जाते हुए गरीब के वो पर कुतर गए … |
Added by rajesh kumari on November 1, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
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