इन खामोश क्षणों में
चाहा था
तुमको न याद करूँ /
लेकिन
बरखा की बूँदो के साथ
मेरा मन
भीग गया /
और याद आये वो बादल ,
जो आये , छाये
और लौट गए
बिन बरसे ही /
लेकिन
मन के आँगन में
फूटी एक नन्ही कोंपल
मुरझाई नहीं
कुछ ज्यादा हरी हुई /
और याद आया
वो सपना
जिसमे तुम थे
मै भी न था
क्योंकि
वह मेरी आँखों का ही सपना था /
और याद आई
वो सूनी, गरम दोपहरी
करती ख़ामोशी से
इंतज़ार…
Added by ARVIND BHATNAGAR on November 6, 2013 at 10:30pm — 8 Comments
माँ अभी तक काम से नहीं लौटी थी ।आठ साल कि बिरजू , दरवाजे पर बैठी, सामने आकाश में छूटती रंग- बिरंगी आतिशबाजी को मुग्ध भाव से देख रही थी । जिधर नज़र जाती दूर तक दीपों , मोमबत्तियों और बिजली की झालरों की कतारें दिखाई पड़ती थीं । अचानक बिरजू के दिमाग में एक विचार कौंधा। वह उठीं । अपने जमा किये पांच रुपये निकाले और दूकान से कुछ दीये खरीद लायी । झोपड़ी के कोने में बने चूल्हे के पास में रखी बोतल से सरसों का तेल निकाल कर उसने सारे दीयों में भर दिया । खाली बोतल वहीँ छोड़ कर उसने दियासलाई उठाई । तेल भरे…
ContinueAdded by ARVIND BHATNAGAR on November 1, 2013 at 6:00am — 25 Comments
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