कल घटना जो भी घटी, नभ थल जल में यार
उसे शब्द में बाँधकर, लाता है अखबार
लाता है अखबार, बहुत कुछ नया पुराना
अर्थ धर्म साहित्य, ज्ञान का बड़ा खजाना
पढ़के जिसे समाज, सजग रहता है हरपल
सबका है विश्वास, आज भी जैसे था कल।1।
जैसा कल था देश यह, वैसा ही कुछ आज
बदल रही तारीख पर, बदला नहीं समाज
बदला नहीं समाज, सुता को कहे अभागिन
लूटा गया हिज़ाब, कहीं जल गई सुहागिन
कचरे में नवजात, आह! जग निष्ठुर कैसा
समाचार सब आज, दिखे है कल ही…
Added by नाथ सोनांचली on November 11, 2018 at 5:00pm — 6 Comments
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