यह मन हो मानो घर तुम्हारा अपना
पार क्षितिज से जैसे कोई रहस्य-बिंबित
स्वरातीत गीत-सी याद तुम्हारी चली आई
थीं चाहे कितनी भी हम में अपूर्णताएँ अपार
विश्वास की आढ़ में था ठहरा सनातन प्यार
हर…
ContinueAdded by vijay nikore on November 1, 2022 at 11:55am — 5 Comments
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