पत्नी या प्रेमिका
चांद जैसी नहीं
सचमुच चाँद होती है
कभी लगती हेम जैसी
कभी देवि कालिका
कभी अंधकार
कभी मानस मरालिका
अंतस में अमिय-घट
स्वर्गंगा पनघट
राका एक छली नट
अभ्र बीच नाचे तू
चपला का शुभ्र पट
स्वयं में मगन इतना
शीतल तू आह कितना
सताये न अगन
चातक भी बैठा चुप
सहेजे निज लगन
सोलह कला चाँद में
अहो ! षोडश शृंगार में
अरे—रे---…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 30, 2014 at 3:00pm — 6 Comments
डाक्टर कहते है
स्वस्थ आनंदित जीवन के लिए
हंसो
ठठाकर हंसो , खिलखिलाकर हंसो
आकाश गुंजा दो ,अट्टहास करो
तभी तो
शरीर से झरेगा
ऐंडोर्फिन रसायन
जो हृदय को रखेगा मजबूत
नष्ट होंगे बैक्टीरिया, वायरस
सशक्त होगा प्रतिरक्षातंत्र
पर हंसू कैसे ?
बचपन में कोई फिसल कर गिरता
कीचड में सनता
या चिडिया करती बीट
तब हम ताली बजा कर हँसते
लोट-पोट हो जाते
मै और मेरी बहन हम, सब…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 25, 2014 at 5:30pm — 24 Comments
बंद खिडकियों से
झांकता
प्रकाश
चारो ओर स्याह-स्याह
मुट्ठी भर
उजास
टूटी हुयी
गर्दन लिए
बल्ब रहे झाँक
ट्यूब लाईट
अपना महत्त्व
रहे आंक
सर्र से
गुजर जाते
चौपहिया वाहन
सन्नाटा
विस्तार में
करता अवगाहन
तारकोली
सड़क सूनी
रिक्त चौराहे
सर्पीली…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
पाकर आभास
अपनी ही कुक्षि में
अयाचित अप्रत्याशित
मेरी खल उपस्थिति का
सह्म गयी माँ !
* * *
हतप्रभ ! स्तब्ध ! मौन !
आया यह पातक कौन ?
जार-जार माँ रोई
पछताई ,सोयी, खोयी
‘पातकी तू डर
इसी कुक्षि में ही मर
मैं भी मरूं साथ
तेरे सर्वांग समेत
धिक् ! हाय उर्वर खेत’
* * …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2014 at 6:00pm — 19 Comments
छंद- गीतिका
लक्षण – इसके प्रत्येक चरण में (14 ,12 )पर यति देकर 26 मात्रायें होती हैं I इसकी 3सरी, 10वीं, 17वीं और 24वीं मात्रा सदैव लघु होती है I चरणांत में लघु –दीर्घ होना आवश्यक है I
मिट चुकी अनुकूलता सब अब सहज प्रतिकूल हूँ I
मर चुका जिसका ह्रदय वह एक बासी फूल हूँ II
किन्तु तुम संजीवनी हो ! प्राणदा हो ! प्यार हो !
हो अलस संभार…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 10, 2014 at 12:00pm — 24 Comments
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