लम्हा महकता … एक रचना
सोया करते थे कभी जो रख के सर मेरे शानों पर
गिरा दिया क्यों आज पर्दा घर के रोशनदानों पर
तपती राहों पर चले थे जो बन के हमसाया कभी
जाने कहाँ वो खो गए ढलती साँझ के दालानों पर
होती न थी रुखसत कभी जिस नज़र से ये नज़र
लगा के मेहंदी सज गए वो गैरों के गुलदानों पर
कैसा मैख़ाना था यारो हम रिन्द जिसके बन गए
छोड़ आये हम निशाँ जिस मैखाने के पैमानों पर
देख कर दीवानगी हमारी कायनात भी हैरान है
किसको तकते हैं भला हम तन्हा…
Added by Sushil Sarna on November 18, 2014 at 2:37pm — 14 Comments
स्नेह रस से भर देना …..
कुछ भी तो नहीं बदला
सब कुछ वैसा ही है
जैसा तुम छोड़ गए थे
हाँ, सच कहती हूँ
देखो
वही मेघ हैं
वही अम्बर है
वही हरित धरा है
बस
उस मूक शिला के अवगुण्ठन में
कुछ मधु-क्षण उदास हैं
शायद एक अंतराल के बाद
वो प्रणय पल
शिला में खो जायेंगे
तुम्हें न पाकर
अधरों पर प्रेमाभिव्यक्ति के स्वर भी
अवकुंचित होकर शिला हो जायेंगे
लेकिन पाषाण हृदय पर
कहाँ इन बातों का असर होता है
घाव कहीं भी हो…
Added by Sushil Sarna on November 17, 2014 at 6:49pm — 8 Comments
परिचय हुआ जब दर्पण से ….
परिचय हुआ जब दर्पण से
तो चंचल दृग शरमाने लगे
अधरों में कंपन होने लगी
अंगड़ाई के मौसम .छाने लगे
परिचय हुआ जब दर्पण से ….
ऊषा की लाली गालों पर
प्रणयकाल दर्शाने लगी
पलकों को अंजन भाने लगा
भ्रमर आसक्ति दर्शाने लगे
परिचय हुआ जब दर्पण से …
पलकों के पनघट पर अक्सर
कुछ स्वप्न अंजाने आने लगे
बेमतलब नभ के तारों से…
Added by Sushil Sarna on November 11, 2014 at 1:30pm — 8 Comments
नैन कटीले …
नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 6, 2014 at 6:18pm — 26 Comments
तन्हा प्याला ....
रजकण हूँ मैं प्रणय पंथ का
स्वप्न लोक का बंजारा
हार के भी वो जीती मुझसे
मैं जीत के हरदम ही हारा
नयन सिंधु में छवि है उसकी
वो तृषित मन की मधुशाला
प्रणयपाश एकांत पलों का
मन में जीवित ज्यूँ हाला
गीत कंठ के सूने उस बिन
रैन चांदनी बनी ज्वाला
नयन देहरी पर सजूँ मैं उसकी
हृदय में है ये अभिलाषा
अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 4, 2014 at 6:52pm — 16 Comments
क्षणिकाएँ...
1.घन गरजे घनघोर
तिमिर चहुँ ओर
तृण-तृण से तन बहे
करके सब कुछ शांत
मेह हो गया शांत
..........................
2. सावन की फुहार
सृजन की मनुहार
रंगों का अम्बार
आयी बहार
हुआ धरा का
पुष्पों से शृंगार
.......................
3.बुझ गयी
कुछ क्षण जल कर
माचिस की तीली सी
जंग लड़ती साँसों से
असहाय ये काया
.........................
4.हर शाख पर
शूल ही शूल
फिर भी महके…
Added by Sushil Sarna on November 1, 2014 at 1:15pm — 18 Comments
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