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Sushil Sarna's Blog – November 2018 Archive (6)

कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :

कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :

लो

आज मैं बड़ा हो गया

अपनी नेम प्लेट

लगाकर

बूढ़ी नेमप्लेट

हटा कर

.................

ज़िंदगी

हार गयी

ज़िंदगी से

खून से

खून की दरिंदगी से

..............................

असंभव को

संभव कर दिया

ज़िंदगी को

मरघट की

राह बता कर

............................

वृद्धाश्रम में

माँ -बाप को छोड़

बड़ा उपकार किया

संतान ने

दूध का क़र्ज़

उतार…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 29, 2018 at 3:04pm — 10 Comments

चुनौती दे डाली,,,,,,

चुनौती दे डाली ....



खिड़कियों के पर्दों ने

रोशनी के प्रभुत्व को

चुनौती दे डाली

जुगनुओं की चमक ने

अंधेरों के प्रभुत्व को

चुनौती दे डाली

अंतस की पीड़ा ने

आँखों के सैलाबों को

चुनौती दे डाली,........

विरह के अभयारण्य ने

स्मृतियों के भंडारण को

चुनौती दे डाली

बिस्तर की सलवटों ने

क्षणों की चाल को

चुनौती दे डाली

जीत के आसमान को

हार की ज़मीन ने

चुनौती दे…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 27, 2018 at 7:28pm — 6 Comments

नया विकल्प ...

नया विकल्प ...

हंसी आती है

जब देखता हूँ

रात को दिन कहने वाले लोग

जुगनुओं की तलाश में

भटकते हैं

हंसी आती है

जब लोग नेता और अभिनेता की तासीर को

अलग-अलग मानते हैं

उनकी जीत के बाद

स्वयं हार जाते हैं

हंसी आती है

उन लोगों पर

जो मात्र हाथों में

किसी पार्टी का परचम उठाकर

स्वयं का अस्तित्व भूल जाते हैं

भूल जाते हैं कि वो

मात्र शोर का माध्यम हैं,

और कुछ नहीं

हंसी आती है…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 26, 2018 at 6:45pm — 3 Comments

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

मर्म

सपनों का

बिना

काया का

साया

न अपना

न पराया

.................

कितने लम्बे

सपनों के धागे

सोच के पाँव

आसमाँ से आगे

नैन जागें

तो ये टूटें

नैन सोएं

तो ये जागें

......................

सर्द सवेरा

चाय की प्याली 

उठती भाप

अहसासों के टोस्ट

नज़रों की चुस्कियाँ

उम्र के ठहराव पर

काँपते हाथों सी

ठिठुरती…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 19, 2018 at 2:30pm — 6 Comments

इस दर्पण में ......

इस दर्पण में ......

नहीं

मैं नहीं देखना चाहता

स्वयं का ये रूप

इस दर्पण में

नहीं देखना चाहता

स्वयं को इतना बड़ा होता

इस दर्पण में

मैं

सिर्फ और सिर्फ

देखना चाहता हूँ

अपना स्वच्छंद बचपन

इस दर्पण में

गूंजती हैं

मेरे कानों में

आज तक

माँ की लोरियाँ

ज़रा सी चोट पर

उसकी आँखों में

अश्रुधार

मेरी भूख पर

उसके दूध में लिपटा

उसका

स्निग्ध दुलार

कहाँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2018 at 6:40pm — 4 Comments

3 क्षणिकाएँ....

3 क्षणिकाएँ....

लीन हैं

तुम में

मेरी कुछ

स्वप्निल प्रतिमाएँ

देखो

खण्डित न हो जाएँ

ये

पलकों की

हलचल से

...................

गहनता में
निस्तब्धता
निस्तब्धता में…
Continue

Added by Sushil Sarna on November 14, 2018 at 1:00pm — 11 Comments

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