3 क्षणिकाएँ....
लीन हैं
तुम में
मेरी कुछ
स्वप्निल प्रतिमाएँ
देखो
खण्डित न हो जाएँ
ये
पलकों की
हलचल से
...................
..............................
रात,सनक, मयंक
और
तमन्नायें
चरमोत्कर्ष की
वेदना का पर्याय बनीं
उनके
चले जाने के बाद
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
"आदरणीय vijay nikore जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मुक्त कंठ से की गयी प्रशंसा का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपकी हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया ।
सर बड़ी ही ख़ूबसूरती से आपने क्षणिका को शेर में तब्दील किया है। आपका दिल से शुक्रिया।
आदरणीय शेख़ उस्मानी साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मुक्त कंठ से की गयी प्रशंसा का दिल से शुक्रगुज़ार है , शुक्रिया ।
आदरणीय राज़ नवादवी साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी मुक्त कंठ से प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय क़मर जौनपुरी साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपके लेखन की धार को देखकर अति प्रसन्नता हो रही है,तीनों क्षणिकाएँ बहुत उत्तम और लेखन का आला नमूना हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपकी पहली क्षणिका को शैर में इस तरह ढाला जा सकता है:-
'लीन हैं तुम में मेरी कुछ तस्वीरें देखो याद रहे
खण्डित न हो जाएं ये भी इन पलकों की हलचल से'
वाह। पहली क्षणिका का समाधान सा करती दूसरी बेहतरीन क्षणिका! किंतु परिदृश्य और परिस्थितियों अनुसार सवाल करती तीसरी बेहतरीन क्षणिका। हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना साहिब।
अनुभूतियाँ उक्केरती हैं जो आपकी क्षणिकाएँ, खुले नभ में जैसे चमकें हैं रात को मणिकाएं ! बहुत सुन्दर आदरणीय सुनील सरना जी. हार्दिक बधाई. सादर
"आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
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