उन्हें कौन पूछे उन्हें कौन तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
उदासी उदासी उदासी घनेरी
विरह वेदना प्रीत की है चितेरी
अँधेरे खड़े द्वार पे सिर झुकाये
तभी रात ने स्वप्न इतने सजाये
उसी रात को छल गये चाँद तारे
युगों से जुदा हैं नदी के किनारे
लगी रात की आँख भी छलछलाने
अँधेरा मगर बात कोई न माने
क्षितिज पे कहीं मुस्कुराया सवेरा
तभी रूठ कर चल दिया है अँधेरा
नजर रोज सुनसान राहें बुहारे
युगों से जुदा हैं नदी के…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 21, 2018 at 4:30pm — 10 Comments
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