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पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।
जाग रे इंसान, नूतन साल आया।
ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,
थम गए तूफान, नूतन साल आया।
गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।
कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया।
मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,
हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।
पूछता है रब कि तेरी, क्या रज़ा…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 30, 2013 at 10:00pm — 31 Comments
फिर से नई कोपलें फूटीं,
खिला गाँव का बूढ़ा बरगद।
शुभारंभ है नए साल का,
सोच, सोच है मन में गदगद।
आज सामने, घर की मलिका
को उसने मुस्काते देखा।
बंद खिड़कियाँ खुलीं अचानक,
चुग्गा पाकर पाखी चहका।
खिसियाकर चुपचाप हो गया,
कोहरा जाने कहाँ नदारद।
खबर सुनी है,फिर अपनों के
उस देहरी पर कदम पड़ेंगे।
नन्हीं सी मुस्कानों के भी,
कोने कोने बोल घुलेंगे।
स्वागत करने डटे…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 22, 2013 at 10:00am — 31 Comments
क्यों चले आए शहर, बोलो
श्रमिक क्यों गाँव छोड़ा?
पालने की नेह डोरी,
को भुलाकर आ गए।
रेशमी ऋतुओं की लोरी,
को रुलाकर आ गए।
छान-छप्पर छोड़ आए,
गेह का दिल तोड़ आए,
सोच लो क्या पा लिया है,
और क्या सामान जोड़ा?
छोडकर पगडंडियाँ
पाषाण पथ अपना लिया।
गंध माटी भूलकर,
साँसों भरी दूषित हवा।
प्रीत सपनों से लगाकर,
पीठ अपनों को दिखाकर,
नूर जिन नयनों के थे,…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 16, 2013 at 11:00pm — 38 Comments
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आज खबरों में जहाँ जाती नज़र है।
रक्त में डूबी हुई, होती खबर है।
फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,
रात पूनम पर अमावस की मुहर है।
ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,
भोर का तारा छिपा जाने किधर है।
डर रहे हैं रास्ते मंज़िल दिखाते,
मंज़िलों पर खौफ का दिखता कहर है।
खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,
साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।
हसरतों के फूल चुनता मन का…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 7, 2013 at 10:56am — 20 Comments
श्वेत वसना दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।
तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।
चाँद ने जब बुर्ज से,…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 2, 2013 at 8:00pm — 33 Comments
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