बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
मौत के साथ आशिकी होगी,
अब मुकम्मल ये जिंदगी होगी,
उम्र का ये पड़ाव अंतिम है,
सांस कोई भी आखिरी होगी,
आज छोड़ेगा दर्द भी दामन,
आज हासिल मुझे ख़ुशी होगी,
नीर नैनों में मत खुदा देना,
सब्र होगा अगर हँसी होगी,
आखिरी वक्त है अमावस का,
कल से हर रात चाँदनी होगी.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 12:30pm — 25 Comments
बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122 2122 2122 212
फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,
इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,
एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,
जख्म भीतर जिस्म में अँगडाइयाँ लेने लगे,
मैं बली फिर से किसी…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 8, 2013 at 12:00pm — 26 Comments
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
जिस्म में जान जब नही होगी,
शांत चुपचाप दोस्त रहने दो,
सत्य बोलूँगा खलबली…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 1:00pm — 26 Comments
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,
शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,
बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,
अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,
सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2013 at 4:00pm — 38 Comments
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
बात क्या है जो रात भारी है,
इश्क है या कोई बिमारी है,
जान लेती रही हमेशा पर,
याद तेरी बहुत दुलारी है,
मौत से डर के लोग जीते हैं,
जिंदगी ये ही सबसे प्यारी है,
हुस्न कातिल सही सुनो लेकिन,
सादगी फूल सी तुम्हारी है,
हाथ खाली ही लेके जायेगा,
जग से राजा भले भिखारी है....
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 11:30am — 29 Comments
भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,
मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,
लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,
यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,
ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,
खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,
बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....
मौलिक व अप्रकाशित ..
Added by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 3:30pm — 28 Comments
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