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ज़िन्दगी है
बोझ सी है
इश्क तो अब
ख़ुदकुशी है
इक ग़ज़ल सी
तू हँसी है
अब ग़मों से
दोस्ती है
बुलबुले सी
ये ख़ुशी है
आफतों से
दोस्ती है
इक पहेली
ज़िन्दगी है
शोर गुमनाम
दिल में भी है
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 26, 2014 at 8:22am — 12 Comments
२१२२ २१२२ २१२
तुमने पुरखों की हवेली बेच दी
शान दुःख सुख की सहेली बेच दी
भूख दौलत की मिटाने के लिए
मौत को दुल्हन नवेली बेच दी
जिस्म के बाजार ऊंचे दाम थे
गाँव की राधा चमेली बेच दी
बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर
तुमने बच्चों की हथेली बेच दी
गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन
प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2014 at 5:57pm — 19 Comments
१२२२ १२२२ १२
है उसकी याद बादल की तरह
भटकता हूँ मैं पागल की तरह
हवास व्यापार के नाले हैं यहाँ
मुहब्बत थी गंगाजल की तरह
ये जीवन हादसों का मलवा है
किसी बेवा के आँचल की तरह
हुई नाकाम कोशिश भूलने की
थी तेरी याद दल दल की तरह
है चुप का रूप गोया ताज हो
है उसकी बात कोयल की तरह
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on December 19, 2014 at 2:51pm — 8 Comments
२२ २२ २२ २२/१२१
रंगों की नादानी देखो
तेरी करें गुलामी देखो
चाँद धनुक गुलशन और हूर
तेरी रचें जवानी देखो
पहले आम की नई बौरें
यौवन से अनजानी देखो
जोग लगा दे जोग छुड़ा दे
सूरत एक सुहानी देखो
शेख बिरहमन करने लगे
रब से बेईमानी देखो
तुझको पूजूं या प्यार करू
ये अजब परेशानी देखो
तोड़ो चुप्पी गुमनाम ज़रा
कहके प्रेम कहानी…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 16, 2014 at 10:36am — 15 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२
कैलेण्डर के सवालों से सहम जाता हूँ मैं
ईद दीवाली को जब नज़र मिलाता हूँ मैं
परदों से घर का हाल भला लगता है
परदों से घर की मुफलिसी छुपाता हूँ मैं
जीवन और गणित का हिसाब यार खरा है
जब आंसूं जुड़ता है हँसी घटाता हूँ मैं
मैं था काफिला था और सफ़र लम्बा
मन्जिल तक जाते तनहा रह जाता हूँ मैं
कोई मुझसे भी पूछे तू क्या चाहे गुमनाम
है प्यास प्यार की ,प्यासा रह जाता हूँ…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 10, 2014 at 5:30pm — 16 Comments
इश्क़ तो इश्क़ है फितूर नहीं
कौन है जो नशे में चूर नहीं
लक्ष्य कोई भी पा सकोगे तुम
हौसला हो तो लक्ष्य दूर नहीं
आके मिल मुझसे बात भी कर अब
दूर से ऐसे मुझको घूर नहीं
सब खुदा हो गए ये बाबा तो
संत जैसा किसी पे नूर नहीं
सिर्फ ममता मिलेगी आँचल में
माँ खुदा सी है कोई हूर नहीं
सब पुजारी हैं आज दौलत के
कोई तुलसी रहीम सूर नहीं
बेवजह रस्ता देख मत गुमनाम
तेरी तक़दीर में हुज़ूर नहीं
गुमनाम…
Added by gumnaam pithoragarhi on December 5, 2014 at 6:00pm — 13 Comments
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