चिर निद्रा से जाग युवा कब तक सोएगा
देख हताशा की मिट्टी मन में लिपटी है
स्वार्थ सिद्धि में लिप्त भावना भी सिमटी है
ले आओ तूफान के मिट्टी ये उड़ जाए
मन का दिव्य प्रकाश देख तम भी घबराए
कब तक अनुमानों के दुनिया मे खोएगा
चिर निद्रा से जाग युवा कब तक सोएगा
स्वाभिमान खो गया तुम्हारा क्यूँ ये बोलो
तनमन से नंगे होकर तुम जग भर डोलो
संस्कार मर्यादाओं का भान नहीं है
यकीं मुझे आया के तू इंसान नहीं है
जन्म…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2013 at 8:45pm — 4 Comments
हजज मुरब्बा सालिम
१२२२/१२२२
हूँ प्यासा इक महीने से
मुझे रोको न पीने से
पिला साकी सदा आई
शराबी के दफीने से
पिला बेहोश होने तक
हटे कुछ बोझ सीने से
न लाना होश में यारो
नहीं अब रब्त जीने से
उतर जाने दो रग रग में
उड़े खुशबू पसीने से
जिसे हो डूबने का डर
रखे दूरी सफीने से
हुनर आता है जीने का
है क्या लेना करीने से
गिरा न अश्क उल्फत में
ये…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2013 at 11:30am — 14 Comments
पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए
जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए
पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया
चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए
यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी
देखते देखते हम जाफरानी हो गए
“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया
गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए
संदीप…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:00pm — 21 Comments
आँखों से बहता लहू
लाल लाल धधकती ज्वालायें
कृष्ण केशों सी काली लालसाएँ
ह्रदय की कुंठा
असहनीय वेदना
दर्दनाक कान के परदे फाड़ती
चीखें
लपलपाती तृष्णा
तिलमिलाती भूख
अपाहिज प्रयास
इच्छाओं के ज्वार भाटे
आश्वासन की आकाशगंगा
विश्वासघाती उल्कापिंड
हवस से भरे भँवरे
शंकाओं से ग्रसित पुष्प
उपेक्षाओं के शिकार कांटे
हाहाकार चीत्कार ठहाके
विदीर्ण तन
लतपथ , लहूलुहान…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 5, 2013 at 11:23am — 14 Comments
रस्म वाले देश की औलाद हैं हम
आज के बच्चे कहें सैयाद हैं हम
उनकी बीबी मायके जब से गयी है
कहते फिरते आजकल आज़ाद हैं हम
ढँक गए हैं गर्द से तो भूलिए मत
इस महल की रीढ़ हैं बुनियाद हैं हम
छोड़ के वो हाथ मेरा जो चले थे
गमजदा हैं देख ये आबाद हैं हम
"दीप" हरदम की मदद है दूसरों की
इसलिए तो आज भी बर्बाद हैं हम
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
मौन हवाएं
सर्द गर्म और सीली सीली
आते जाते
आम जनों की
तबियत ढीली
सन्नाटों की चीख
अनवरत अनुशासित है
लेन देन की बात करे हैं
सारे उल्लू
चन्दा का उजियारा
ढूँढे
जल भर चुल्लू
भूतों और पिशाचों से
बस ये शासित है
दहशत वहशत
खुली सड़क पर
खुल के झूमें
डाकू और लुटेरे
क्षण क्षण
दामन चूमें
शबनम का कतरा
त्रण त्रण में आभासित…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2013 at 8:00pm — 13 Comments
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