मन की कोमल घाटी में तुम शूलों से चुभ जाते हो,
उन्मुक्त हवाओं के झोंकों क्यों तन सुलगाने आते हो।
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मेरे उजड़े उपवन की भी कली कली मुसकाई थी,
बीत गये वो दिन मेरे अधरों पर आशा आई थी।
पत्र टूटता शाखों से मैं चाहूँ धरती में मिलना,
किंतु वायुरथ से तुम मेरे जीवाश्म उड़ाते हो।
उन्मुक्त हवाओं के झोंकों क्यों तन सुलगाने आते हो।
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तन मन आशा यहाँ तलक मेरा हर रोम जला डाला,
एक अगन ने मेरा जीवन काली भस्म बना डाला।
पीड़ा का अम्बार लगाकर दिवा रात्रि…
Added by इमरान खान on December 26, 2011 at 2:30pm — 2 Comments
बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल गई मेरे दिल की।
वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।
फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।
उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
जूँ ही क़ुरबत मिली मेरे दिल की।
कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।
अब हमें रोकना है नामुमकिन,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।
फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।
Added by इमरान खान on December 19, 2011 at 8:00am — 3 Comments
आये हैं सभी आज तो जाने के लिये,
ढूंढूं मैं किसे साथ निभाने के लिये.
तन्हाई भरे शोर ये कब तक मैं सुनूँ,
आ जाओ मुझे गीत सुनाने के लिये।
जल जल के मिरे दिल की ये शम्में हैं बुझी,
कोई भी नहीं फिर से जलाने के लिये।
जज़्बात की ये मौज उठी आज मुझे,
इक याद के दरिया में डुबाने के लिये।
सोये हैं वो 'इमरान' सुनाता है किसे,
चल हम भी चलें ख्वाब सजाने के लिये।
Added by इमरान खान on December 2, 2011 at 2:30pm — 4 Comments
ये परवत और गगन शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
हैं सब की दृष्टि में ही भले अधूरे हम,
किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे.
लालच करने से हर काम बिगड़ता है,
काम क्रोध में पड़; इंसान झगड़ता है,
इच्छायें जिस दिन काबू हो जायेंगी,
वीर पुरुष उस दिन हम भी कहलायेंगे।
ये परवत और गगन शीश झुकायेंगे,
पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.
बस दो पल का ही रंग रूप खिलौना है,
ये ढल जाता है रोना ही रोना…
ContinueAdded by इमरान खान on December 1, 2011 at 2:00pm — No Comments
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