हर क़दम पर मात खाकर रह गई,
जिंदगी सर को झुका कर रह गई.
देख लो पहचान मेरी हो जुदा,
एक खुदसर में समाकर रह गई.
होगी मलिका सल्तनत की वो मगर,
मेरी खातिर कसमसा कर रह गई.
रूह मुझसे जाँ छुड़ाने के लिए,
हर दफा बस छटपटा कर रह गई.
सोजे दिल पानी से भी ना बुझ सके,
आंख भी आंसू बहा कर रह गई.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by इमरान खान on December 4, 2014 at 3:58pm — 16 Comments
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