कैदी ! तुझसे कोई मिलने आया है I’ –जेल के सिपाही ने सूचना दी I अगले ही पल काले कोट में एक वकील प्रकट हुआ I
‘आपकी पत्नी ने मुझे आपका वकील एपॉइंट किया है I आप मुझे सच-सच बताइए कि आपने मैरिज-कोर्ट में अपने बेटे की हत्या क्यों की ? क्या आपकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी ?’
कैदी कुछ नहीं बोला I उसने मुँह फेर लिया I वकील असमंजस में पड़ गया I कुछ देर चुप रहकर वह बोला –‘ देखिये अगर आप ही सहयोग नहीं करेंगे तो मैं आपकी मदद कैसे कर पाऊंगा ?’
‘वकील साहब, आप अपना समय बर्बाद कर रहे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2018 at 6:24pm — 4 Comments
‘बाबू जी, ग्यारह महीने हो गए, मगर अब तक मुझे पेंशन, बीमा, ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण कुछ भी नहीं मिला I
‘मिलेगा कैसे अभी स्वीकृत ही कहाँ हुआ ?’
‘पर काहे नहीं हुआ ? हमने तो रिटायर होने के छः माह पहले ही सारे प्रपत्र भर कर दे दिए थे I’
‘ज्यादा भोले मत बनो, तुमने भी साठ साल की उम्र तक नौकरी की है I तुम्हें नहीं पता सरकारी काम–काज कैसे होता है ?’
‘पता है बाबू जी, इसीलिये मैंने आपको पैसे पहले ही दे दिए थे I ‘
‘हां, तो तुम्हे फंड तो मिल गया न…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2018 at 8:55pm — 7 Comments
भिखारी सोचता रहा. आधी रात लगभग बीत चुकी थी . लेकिन उसकी आँखों में नींद कहाँ ? पिछले एक सप्ताह से वह ज्वर में तप रहा था. इस अवधि में गरमागरम चाय और नमकीन बिस्किट की कौन कहे, उसे ढंग की दवा तक नसीब नहीं हुयी . वह तो भला हो उस ‘लंगड़े’ का जो किसी तरह ‘अजूबी’ की कुछ टिकिया ले आया था. पर उससे क्या ? आज तो भिखारी के शरीर में इतनी भी ताब न थी कि वह घड़े में रखे कई दिनों के बासी और सड़े–गले पानी को मिट्टी के प्याले में ढालकर अपनी प्यास बुझा पाता . उसने पथराई आँखों से अँधेरी झोंपड़ी में चारों ओर देखा .…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2018 at 12:48pm — 6 Comments
जायस के ऊसर में खानकाह बने कई माह बीत चुके थे I किछौछा से आये हजरत खवाजा मखदूम जहाँगीर किसी परिचय के मोहताज नही थे I बहुत जल्द ही उनके पास मुरीदों और मन्नतियों की भीड़ आने लगी i मुहम्मद यद्यपि छोटा था पर वह अक्सर वहाँ जाने लगा i वह बुजुर्ग पीर के छोटे-मोटे काम कर देता I पीर तो उसका भविष्य जान ही चुके थे I वह भी उसे अपने पोते की तरह मानने लगे I
एक दिन पीर सफ़ेद भेड़ की उन का लम्बा चोगा पहने अपनी पसंदीदा खानकाह में बैठे थे I उनके चेले और कुछ मजहबपरस्त लोग उन्हें घेरे हुए थे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2018 at 8:57pm — 5 Comments
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