1222 1222 1222 1222
सियासत काम कम करती मगर तकरार जादा अब
बुढ़ापा चढ़ गया है या पड़ी बीमार जादा अब /1
जवानी क्या खुदा ने दी फरामोशी चढ़ी सर पर
लगे कम माँ की ममता जो सनम का प्यार जादा अब /2
बहुत था शोर पर्दे में रखे हैं खूब अच्छे दिन
उठा पर्दा तो ये जाना पड़ेगी मार जादा अब /3
कहा हाकिम ने है यारो चलेगी सम विषम जब से
हुए खुश यार निर्माता बिकेंगी कार जादा अब /4
जहर लगती है मुझको तो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2015 at 11:00am — 4 Comments
2122 1122 1122 22
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प्यार कहते हैं कि हर चाव बदल देता है
एक मरहम की तरह घाव बदल देता है /1
अश्क लेकर भी किसी को न तू रोते दिखना
कहकहा आँख का बरताव बदल देता है /2
झील ठहरी है बहुत वक्त से कंकड़ मारो
एक कंकड़ ही तो ठहराव बदल देता है /3
अजनवी सोच के यूँ दूर न बैठो हमसे
मिलना जुलना ही मनोभाव बदल देता है /4
माँ की ममता से मिली सीख ये हमको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 22, 2015 at 11:55am — 22 Comments
2212 1211 2212 12
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पतझड़ में अब की बार जो गुलजार हम भी हैं
कुछ कुछ चमन के यूँ तो खतावार हम भी हैं /1
रखते हैं चाहे मुख को सदा खुशगवार हम
वैसे गमों से रोज ही दो चार हम भी हैं /2
माना कि धूप में भी तो साया नहीं बने
तू देख अपने ज़ह्न में,ऐ यार हम भी हैं /3
तू ही नहीं अकेला जो दरिया के घाट पर
नजरें उठा के देख कि इस पार हम भी हैं /4
जब से कहा है आपने बेताज हो…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2015 at 11:30am — 20 Comments
ग़ज़ल
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2222 2222 2222 222
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आग लगाई क्या अपनों ने अरमानों के मेले में
बैठ गया जो आँसू लेकर मुस्कानों के मेले में /1
कर के बहाना सब मरहम का दुखती रग को छेड़ेंगे
घाव खोल कर बैठ न जाना पहचानों के मेले में /2
छोड़ गए हैं अपने अकेला एक अपाहिज बोझ समझ
अब्दुल्ला सा मन होता है अनजानों के मेले में /3
जब तक जेब भरी थी अपनी घर आगन सब अपना था
जेबें खाली तो बदला सब …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2015 at 11:43am — 20 Comments
नेताई गजल
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1222 1222 1222 1222
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सदन में आप गर आओ वतन की बात मत करना
सहोदर जैसे आपस में गबन की बात मत करना /1
उड़ाए हमने चुपके से लँगोटों के लिए सच है
शहीदों के हों नंगे तन कफन की बात मत करना /2
कभी तुम बोल देते हो कभी हम बोल देते हैं
चुनावी बात सबकी ही वचन की बात मत करना /3
दिखा करते हैं फूलों सा मगर फितरत है शूलों सी
गले आपस में मिलने पर चुभन की बात मत करना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2015 at 11:36am — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
भला सच यार कब वैसे चुनावी आस को होना
चुराकर आम के सपने सदा गुम खास को होना /1
हकीकत लोकराजों की जो नौकर है तो नौकर है
भले कागज की बातों में है मालिक दास को होना /2
लड़ाई आज सत्ता की बदलती रंग गिरगिट ज्यों
बहाना फिर फसादों का वही इतिहास को होना /3
कहाँ तक हम करें बातें बना सौहार्द्र जीने की
खपा इतिहास में माथा खतम विश्वास को होना /4
सुना कल शीत की बरखा बहाकर ले गई सबकुछ
मगर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2015 at 10:51am — 2 Comments
4/
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खुद के होने का जरा भी वो पता देता नहीं
अब किसी को भी गुनाहों की सजा देता नहीं /1
देवता तो थे बहुत पर ढल गए बुत में सभी
क्यों कहूँ तुझसे की उनको क्यों सदा देता नहीं /2
मर रही इंसानियत है और रिश्ते तार तार
क्यों कयामत का भरोसा अब खुदा देता नहीं /3
हर तरफ विष देखता हूँ सुर असुर सब हैं लिए
क्या समंदर मथ भी लें तो अब सुधा देता नहीं /4
वक्त का साया रहे जब मत निठल्ले बैठना
वक्त…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2015 at 11:41am — 8 Comments
2122 2122 2122 212
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बेसदा बस्ती की रस्मों को निभाना था हमें
इसलिए अपनी जबानों को कटाना था हमें /1
या तो कातिल उस नगर में या बचे सब गैर थे
बोझ अर्थी का स्वयं की खुद उठाना था हमें /2
आग का दरिया मुहब्बत ताप आए हम भी यूँ
जो दिलों में जम गया वो हिम गलाना था हमें /3
भर गए सुनते थे वो ही चल दिए जो रीत कर
प्रीत घट में से भला फिर क्या बचाना था हमें /4
रास्ता यूँ तो सफर का जानते …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2015 at 5:30am — 8 Comments
122 122 122 122
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डरे जो तिमिर से भला क्या मिलेगा
लड़ो जुगनुओं का सहारा मिलेगा /1
हमेशा नहीं यूँ अँधेरा मिलेगा
भले ही रहे कम उजाला मिलेगा /2
कहावत है तम की जहाँ बस्तियाँ हों
वहीं दीपकों का बसेरा मिलेगा /3
चलो ढूँढते हैं उसे रात भर अब
कहीं तो तिमिर का किनारा मिलेगा /4
भटक जाओ गर तुम गगन को निहारो
बताता दिशा इक वो तारा मिलेगा /5
फकत जागने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2015 at 6:00am — 14 Comments
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