खूब आशीष दो रब नये वर्ष में
सिर्फ सुख में रहें सब नये वर्ष में/१
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सुन जिसे पीर मन की स्वयं ही हरे
गीत ऐसा लिखें अब नये वर्ष में/२
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छोड़कर द्वेष बाँटें सभी में सहज
प्रेम की सीख मजहब नये वर्ष में/३
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नीति ऐसी बने जिससे आगे न हो
बन्द कोई भी मकतब नये वर्ष में/४
*
काम आये यहाँ और के आदमी
सिर्फ साधे न मतलब नये वर्ष में/५
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2021 at 10:39am — 2 Comments
आने वाले साल से, कहे बीतता वर्ष
मुझ सा दुख मत बाँटना, देना केवल हर्ष।।
*
वर्ग भेद जग से मिटा, मिटा जाति संधर्ष
कर देना कर थामकर, निर्धन का उत्कर्ष।।
*
पहले सा परमार्थ भी, वह फिर गुणे सहर्ष
स्वार्थ साधना ही न हो, सत्ता का निष्कर्ष।।
*
घर आँगन है जो बसा, झाड़ पोंछ सब कर्ष
भर देना सौहार्द्र से, अब के भारतवर्ष।।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2021 at 7:30am — No Comments
सूरज यूँ है गाँव में, बहुत अधिक अँधियार।
नगर-नगर ही कर रही, किरणें हर व्यापार।।१
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बन जाती है देश में, जिस की भी सरकार।
जूती सीधी कर रहे, नित उस की अखबार।।२
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कैसे ये बस्ती जली, क्यों उजड़ा बाजार।
किस से पूछें बोलिए, जगी नहीं सरकार।।३
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गमलों में फसलें उगा, खेतों में हथियार।
इसी सोच से क्या सुखी, होगा यह संसार।।४
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कोई जब हो छीनता, थोड़ा भी अधिकार।
आँखों से आँसू नहीं, निकलें बस अंगार।।५
*
बातें व्यर्थ सुकून की,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2021 at 6:02am — 6 Comments
लेता है भुजपाश में, बढ़चढ़ ज्यू ही काम।
एक हवेली प्यार की, होती नित नीलाम।।१
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कर लो ढब ऐश्वर्य को, चाहे इस के नाम।
दुधली की दुधली रहे, हर जीवन की शाम।।२
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सिलता रहा जुबान जो, बढ़चढ़ यहाँ निजाम।
शब्दों ने झर आँख से, किया कहन का काम।।३
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निर्धन को जिसने दिये, हरदम कम ही दाम।
धनी उसे ठग ले गया, पैसा नित्य तमाम।।४
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रमे यहाँ व्यापार में , सब ले उसका नाम।
महज भक्ति के भाव से, किसको प्यारे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2021 at 10:00am — 4 Comments
लघु से लघुतम बात को, जो देते हैं तूल।
ये तो निश्चित जानिए, मन में उनके शूल।१।
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बनते बाल दबंग अब, पढ़ना लिखना भूल।
हुए नहीं क्यों सभ्य वो, जाकर नित स्कूल।२।
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करती मैला भाल है, मद में उठकर धूल।
करे शिला को ईश यूँ, न्योछावर हो फूल।३।
*
साक्ष्य समय विपरीत पर, तजे सत्य ना मूल।
ज्यों नद सूखी पर हुए, एक नहीं दो कूल।४।
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जलने को पथ काल का, तकना होगी भूल।
हवा कभी होती नहीं, सुनो दीप अनुकूल।५।
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कड़वी बातें तीर सी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2021 at 10:28pm — 8 Comments
राजनीति के पेड़ से, लिपटे बहुत भुजंग।
जिनके विष से हो गये, सब आदर्श अपंग।१।
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बँधकर पक्की डोर से, छूना नहीं अनंग।
सबके मन की चाह है, होना कटी पतंग।२।
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शिव सा बना न आचरण, होते गये अनंग।
लील रहे जीवन तभी, ओछे प्रेम प्रसंग।३।
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क्षीण,हीन उल्लास अब, शेष न कोई ढंग।
हालातों ने कर दिया, जीवन अन्ध सुरंग।४।
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बेढब फीके हो गये, जब से जीवन रंग।
कितनों ने है कर लिया, अपनी साँसें भंग।५।
*
तन की गलियाँ बढ़ गयीं, मन का आँगन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2021 at 2:26pm — 4 Comments
धनी बसे परदेश में, जनधन सदा समेट।
ढकते निर्धन लोग यूँ, यहाँ पाँव से पेट।१।
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कीचड़ में जब हैं सने, पाँव तलक हम दीन।
राजन के प्रासाद का, क्या देखें कालीन।२।
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नेताओं की हर सभा, फिरे बजाती आज।
यूँ जनता है झुनझुना, भले वोट का नाज।३।
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ऊँचे आलीशान हैं, नेताओं के गेह।
दुहरी जिनके बोझ से, हुई देश की देह।४।
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गूँगे बहरे लोग जब, भरे पड़े इस देश।
कैसे बदले बोलिए, अपना यह परिवेश।५।
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सुख के दिन दोगे बहुत,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 4:30am — 8 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
बजेगा भोर का इक दिन गजर आहिस्ता आहिस्ता
सियासत ये भी बदलेगी मगर आहिस्ता आहिस्ता/१
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सघन बादल शिखर ऊँचे इन्हें घेरे हुए हैं पर
उगेगी घाटियों में भी सहर आहिस्ता आहिस्ता/२
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हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब
तपिस आने लगी है जो इधर आहिस्ता आहिस्ता/३
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हमीं कम हौसले वाले पड़े हैं घाटियों में यूँ
चढ़े दिव्यांग वाले भी शिखर आहिस्ता आहिस्ता/४
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अभी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2021 at 6:30am — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
मन था सुन्दर तो वदन की हर कमी अच्छी लगी
उस के अधरों ने कही जो शायरी अच्छी लगी/१
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सात जन्मों के लिए वो बन्धनों में बँध गये
जिन्दगी के बाद जिनको जिन्दगी अच्छी लगी/२
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आँख चुँधियाती रही जो पास में अपनी सनम
दूर तम में बैठकर वो रोशनी अच्छी लगी/३
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एक हम ही भागते रंगीनियों से दूर नित
और किसको बोलिए तो सादगी अच्छी लगी/४
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हाथ में था हाथ उनका दूर तक कोई न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2021 at 7:32pm — 8 Comments
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