सूखी सी शाख
बैठा पंछी अकेला
पतझड़ में ।
नयी नवेली
लाजवंती वधू सी
सिमटी धूप ।
सूरज जब
अलसाया, चल पड़ा
क्षितिज पार ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on December 21, 2017 at 2:34pm — 9 Comments
ठिठुरी अम्मा
धूप तो लाजवंती
दुपहरी में ।
कच्ची सी उम्र
नौकरी खँगालता
खाली है झोली
मान न मान
जिंदगी के दो रंग
जीना मरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on December 14, 2017 at 4:00pm — 8 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on December 12, 2017 at 3:48pm — 2 Comments
एक कार आकर रज़ाई बनाने वाले की दुकान के आगे खड़ी हुयी । कार के पिछले दरवाजे से साहबनुमा व्यक्ति बाहर निकला । दुकान वाले की बांछें खिल गईं । भला कौन इस तरह उसकी दुकान पर इतनी बड़ी गाड़ी लेकर आता है ।
दुकानदार से उन्मुख होते हुए साहब ने छोटे साइज़ के रज़ाई, गद्दा, तकिया और चद्दर दिखने को कहा । दुकानदार ने सोचा साहब को अपने छोटे बच्चे के लिए ये सब चाहिए, सो बड़े उत्साह से चीजें दिखने लगा । पर साहब ने बताया कि उन्हें ये सब समान अपने "डौगी" के लिए लेना है ।…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on December 7, 2017 at 10:30am — 8 Comments
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