छंद हरिगीतिका :
(चार चरण प्रत्येक में १६,१२ मात्राएँ चरणान्त में लघु-गुरु)
शुभकामना नववर्ष की सत,-संग औ सद्ज्ञान हो.
करिये कृपा माँ शारदा अब, दूर सब अज्ञान हो.
हर बालिका हो लक्ष्मी धन,-धान्य का वरदान हो.
सिरमौर हो यह देश अब हर, नारि का सम्मान हो.
सादर,
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2013 at 10:00am — 28 Comments
लेखा जोखा विश्व का, हर प्राणी का ज्ञान,
स्वागत वंदन आपका, चित्रगुप्त भगवान.
चित्रगुप्त भगवान, आपकी महिमा न्यारी.
जो भी धर ले ध्यान, मोक्ष का हो…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on November 16, 2012 at 12:00am — 4 Comments
आई है दीपावली, वंदित प्रथम गणेश,
महालक्ष्मी पूजिये, सुखमय भारत देश.
सुखमय भारत देश, दीप हर घर में चमकें,
अँधियारा हो दूर, सभी के तन-मन महकें,
'अम्बरीष' दें आज, सभी को बहुत बधाई,
विष्णुप्रिया हरि संग, गरुण वाहन पर आई..
सादर
Added by Er. Ambarish Srivastava on November 13, 2012 at 11:59pm — 15 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 15, 2012 at 11:43am — 16 Comments
स्वात घाटी की निर्भीक बेटी मलाला को समर्पित
सुन्दरी सवैया
अधिकार मिले सब शिक्षित हों बिखरे चहुँ ओर हि ज्ञान उजाला.
लड़ती जब जायज़ घायल क्यों सुकुमारि दुलारि पियारि 'मलाला'.
सब…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 13, 2012 at 3:00pm — 20 Comments
(बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन.
२१२२ ११२२ ११२२ २२)
जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं
हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं
देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं
जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं
प्यार है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये ही
हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं
माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को
रिश्तेदारों के…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 11:00pm — 22 Comments
(चार चरण : विषम चरण १३
मात्रा व जगण निषेध / सम चरण ११ मात्रा)
आदिशक्ति है नारि ही, झुक जाते भगवान.
नारी सबकी मातु है, सब जन पुत्र समान..
शक्तिरूप में ही वही, नहीं अल्प अभिमान.
परमेश्वर के रूप में, पिय को देती मान..
ताने सहकर नित्य ही, बनी रहे अनजान.
सदा समर्पित भाव से, सबका रखती ध्यान..
जान बूझ बंधन बँधे, बचपन बाँधे पित्र.
यौवन में पिय बाँधते, जरा अवस्था पुत्र..
ईश्वर ही नर…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 8, 2012 at 1:13am — 13 Comments
(चार चरण : विषम चरण
१२ मात्रा व सम चरण ७ मात्रा सम चरणों का अंत गुरु लघु से )
प्रात जागती नारी, नहिं आराम.
साथ नौकरी करती, है सब काम..
प्यार शक्ति दे तभी, उठाती भार.
नारी बिन यह दुनिया, है लाचार..
प्रेम स्नेह की करती, जग में वृष्टि.
पूजित नारी जग में, जिससे सृष्टि..
त्याग तपस्या सेवा, तेरे नाम.
शक्ति स्वरूपा नारी, तुझे प्रणाम..
सत्ता मद में गर्वित, नर है आज.
अखिल विश्व…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 8, 2012 at 1:00am — 21 Comments
अमर 'शास्त्री'
छंद: कुकुभ
(प्रति पंक्ति ३० मात्रा, १६, १४ पर यति अंत में दो गुरु)
'लाल बहादुर' लाल देश के, काम बड़े छोटी…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2012 at 4:00pm — 24 Comments
(गीतिका छंद आधारित मुक्तक)
हो बधाई बंधु अग्रज, याद अब प्रतिदिन यहाँ.
जन्मदिन शुभ आपका मिल, कर मनाते जन यहाँ.
आप मानक थे यहाँ इं-,जीनियर के रूप में.
विश्वेश्वरैया मोक्षगुंडम, सर नमन वंदन यहाँ..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 15, 2012 at 1:52pm — 7 Comments
हिन्दी अपनी जान है, हिन्दी है पहचान.
देश हमारा हिन्दवी, प्यारा हिन्दुस्तान.
प्यारा हिन्दुस्तान, जहाँ भाषा का मेला.
सबको दें सम्मान, करें नहिं कोई खेला.
'अम्बरीष' हो गर्व, देख माथे की बिंदी.
दुनिया भर में आज, छा रही अपनी हिन्दी..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 14, 2012 at 9:30am — 16 Comments
इन्साफ जो मिल जाय तो दावत की बात कर
मुंसिफ के सामने न रियायत की बात कर
तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं
ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर
गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा
आलिम के सामने न जहालत की बात कर
अपने ही छोड़ देते तो गैरों से क्या गिला
सब हैं यहाँ ज़हीन सलामत की बात कर
'अम्बर' भी आज प्यार की धरती पे आ बसा
जुल्मो सितम को भूल के जन्नत की बात कर
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 10:30am — 26 Comments
बिरादरी में ऊँची नाक रखने वाले, दौलतमंद, पर स्वभावतः अत्यधिक कंजूस, सुलेमान भाई ने अपने प्लाट पर एक घर बनाने की ठानी| मौका देखकर इस कार्य हेतु उन्होंने, एक परिचित के यहाँ सेवा दे रहे आर्कीटेक्ट से बात की| आर्कीटेक्ट नें उनके परिचि त का ख़याल करते हुए, बतौर एडवांस, जब पन्द्रह हजार रूपया जमा कराने की बात कही, तो सुलेमान भाई अकस्मात ही भड़क गए, और बोले, "मैं पूरे काम के,…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 8:30am — 20 Comments
जब जब हैं आतंकी आये
बिल में चूहे सा घुस जाये
खो जाए उसकी आवाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
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नाम जपे नित भाईचारा.
भाई को ही समझे चारा
ऐसे झपटे जैसे बाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
______________________
प्लेटफार्म पर सदा घसीटे
मारे दौड़ा दौड़ा पीटे
इम्तहान क्या दोगे आज
क्या सखि पोलिस ? नहिं सखि राज !
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चलती जिसकी अज़ब गुंडई
कहे, निकल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 23, 2012 at 9:30am — 48 Comments
नींबू अदरक लहसुना, सिरका-सेब जुटाय,
सारे रस लें भाग सम, मिश्रित कर खौलाय.
मिश्रित कर खौलाय, बचे तीनों चौथाई.
तब मधु लें समभाग, मिला कर बने दवाई.
'अम्बरीष' नस खोल, हृदय दे, महके खुशबू.
नित्य निहारे पेय, तीन चम्मच भल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 22, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
घनाक्षरी :
शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |
ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 13, 2012 at 2:00am — 15 Comments
(१) बच्चों के प्रति
दिल से प्रणाम करो, पढ़-लिख नाम करो,
हाथ आया काम करो, यही देश प्रेम है,
अपना भले को मानो, दुष्ट ही पराया जानो,
सबका भला ही ठानो, यही देश प्रेम है |
सदा सद-बुद्धि धरो, बुद्धि से ही युद्ध…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 12, 2012 at 1:30am — 11 Comments
कह-मुकरी
(1)
पल में सारा गणित लगाये
इन्टरनेट पर फिल्म दिखाये
मेरे बच्चों का वह ट्यूटर.
ऐ सखि साजन? नहिं कम्प्यूटर..
(2)
बड़ों-बड़ों के होश उड़ाये
अंग लगे अति शोभा पाये
डरती जिससे दुनिया सारी
क्या वो नारी? नहीं कटारी!!
(3)
रहे मौन पर साथ निभाये
मैडम का हर हुक्म बजाये
नहीं आत्मा रहता बेमन
ऐ सखि रोबट? नहिं मन मोहन!!
(4)
मोहपाश में नित्य फँसाये
सास-बहू हैं घात…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 7, 2012 at 12:30am — 25 Comments
कह-मुकरी
मन-मोहक मृदु रूप में आये.
सजे कलाई अति मन भाये.
नेह-प्रीति की वह है साखी.
क्या सखि कंगन? नहिं सखि राखी!!
रूपमाला/मदन छंद
आज वसुधा है खिली ऋतु, पावसी शृंगार.
थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार.
बादलों से…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:30pm — 32 Comments
पञ्च हाइकू
१.
कर ले कर्म
बस यही है धर्म
जीवन मर्म
२.
छाये बहार.
आत्मिक अभिसार
प्यार में धार .
३.
जुड़ें बेतार
जोड़ ले लगातार
दिलों के तार
४.
मन मुस्काए
किस्मत बन जाए
क्यों घबराए
५.
त्याग दे स्वार्थ
स्वीकार परमार्थ
उठ जा पार्थ
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Added by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 12:30am — 17 Comments
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