१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
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हुआ है तज्रिबा मत पूछ हम को क्या मुहब्बत में,........पहले तज़ुर्बा लिखा था जो गलत था .. अत: मिसरे में तरमीम की है.
लगा दीदा ए तर का आब भी मीठा मुहब्बत में.
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जो चलते देख पाते हम तो शायद बच भी सकते थे,
नज़र का तीर दिल पे जा लगा सीधा मुहब्बत में.
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ख़ुमारी छाई रहती है, ख़लिश सी दिल में होती है,
अजब है दर्द जो ख़ुद ही लगे चारा मुहब्बत में.
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रवायत आज भी भारी ही…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 9:00am — 16 Comments
1 २ १ २ २ / १ २ १ २ २/ १ २ १ २ २ /१ २ १ २ २
चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना,
नहीं रहा अब, जो हम से रूठे, किसे भला है हमें मनाना.
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था इश्क़ हमको, था इश्क़ तुमको, मगर बगावत न कर सकें हम,
न तुम ने छोड़ा, न बेवफ़ा हम, न तुम ने समझा, न हम ने जाना.
***
शराब छोड़ी, नशा बुरा था, नज़र से पी ली, नज़र मिलाकर,
नज़र नज़र में नशा चढ़ा यूँ, वो भूल बैठा मुझे पिलाना.
***
न फेरियें मुंह, अभी से साहिब, अभी सफ़र ये शुरू हुआ है,
कत’आ करो…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2013 at 1:00pm — 21 Comments
1222, 1222, 122.
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ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?
लहू दिल से निचोड़ा क्यूँ करें हम?
.
फ़ना हो जाएगा सबकुछ जहां में,
ये झूठा फिर दिखावा क्यूँ करें हम?
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उगेंगे एक दिन कांटें ही कांटें,
ज़हन में याद बोया क्यूँ करें हम?
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नहीं परवाह है उनको हमारी,
बिना कारण ही रोया क्यूँ करें हम?
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हमारे काम खुद ही बोलतें है,
ज़ुबानी कोई दावा क्यूँ करें हम?
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जुदा है रास्ते तुमसे हमारे,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 13, 2013 at 12:30pm — 26 Comments
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