122 122 122 122
कभी कोई मुफलिस कहां बोलता है ।
जो बोले तो फिर आसमां बोलता है ।।
ज़माना नहीं, पासबां बोलता है ।
हुआ कौन उसका, मकां बोलता है ।।
अभी लोग उठकर रवाना हुए हैं ।
ये चूल्हों से उठता धुआं बोलता है ।।
अगर आंच गैरत पे आये तो बोले ।
वगरना कहां बेजुबां बोलता है ।।
दिलासा नहीं काम दे दो मुझे तुम ।
यही बात बोले जहां बोलता है ।।
जमीं उसकी दहकान से…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 5, 2015 at 1:30pm — 14 Comments
बह्र 212 212 212 212
टूट के कर गया आशियां दर ब दर
घूमते फिर रहे हम यहां दर ब दर
आ गये लौट कर अक्ल वाले सभी
पर जुनूं में हुए लामकां दर ब दर
कमसिनी छोड़कर अब महकने लगे
जख्म मेरे हुए बेकरां दर ब दर
खाल में भेड़ की भेडि़ये घुस गये
मर गये मेमने बकरियां दर ब दर
हो सकी क्या हमें खुद हमारी सनद
फिर रहा आदमी बेनिशां दर ब दर
हम कहां से चले थे कहां आ गये
कर…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 29, 2015 at 6:00pm — 10 Comments
खूब सूरत है नज़ारे क्या करें
गुरबतों के लोग मारे क्या करें
सो गए फुटपाथ पर जोखिम मगर
नींद जो उनको पुकारे क्या करें
साल मे इक माह मिलती छुट्टियां
चॉंद को गर ना निहारे क्या…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 28, 2015 at 5:30pm — 9 Comments
राष्ट्र वाद पर हो रही, जाति वाद की मार ।
ज़हर घोलने के लिये, सहमत है सरकार ।।
ज़हर जाति का कर रहा, जनमत पूर्व प्रचार ।
भला नहीं आवाम का, डालेगी ये रार ।।
जनगणना के आंकड़े, नहीं राष्ट्र अनुकूल ।
भूल गये इतिहास क्यूँ , बंग भंग का मूल ।।
जांत पांत की धारणा, संख्या सोच अजीब ।
निर्धनता से जूझ कर , संभला कहां गरीब ।।
जाति प्रथा का नाश हो, सबकी इक पहचान ।
भारत के सब नागरिक, सारे है इन्सान…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 20, 2015 at 4:30pm — 8 Comments
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