बहती हैं कश्तियाँ लहरों में
या उन्हें चीर के चली जाती हैं
या किनारे पे खड़ी खड़ी
अकेली मुस्कराती हैं
काश कोई बता देता मुझको
कि ये लहरें कहाँ पे जाती हैं
बहाती हुई ये अपने संग सबकुछ
किनारे पर ही क्यों ले आती हैं
लड़ता हूँ जब थक कर में
लहरों कि इन लपटों से
तब ये क्यों तट पर आते ही
खुद ही ठंडी हो जाती हैं
किनारे पे है अंत इनका
किनारे से प्रारंभ है
काश कोई बता देता मझको
के ये बहती हैं या बहाती हैं
Added by Bhasker Agrawal on January 7, 2011 at 8:52pm —
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ओ बावरी हँसी मुझे छोड़ो नहीं
रह जाओ मेरे संग
मेरी संगनी बनकर
मुझे छोड़ो नहीं
तुम बिन में क्या
एक बेमतलब का खिलौना
आओ खेलो मेरे संग
मुझे छोड़ो नहीं
ओ बावरी हँसी मुझे छोड़ो नहीं
मेरी साँसों के संग तुम चलो
दिल में मेरे तुम धडको
शांति बनकर विराजो मस्तक कमल पर
मुझे छोड़ो नहीं
ओ बावरी हँसी मुझे छोड़ो नहीं
आओ उड़ चलें गगन के पार
वहां घर बसाएंगे
मिलकर कुछ गुल खिलायेंगे
एक बगिया अपनी भी…
Continue
Added by Bhasker Agrawal on January 6, 2011 at 6:12pm —
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में तो रुक रुक कर सुना रहा था हाल ए दिल
उनको मेरी हर बात ग़ज़ल सी लगी
में तो दीवानगी में चल पड़ा था उस रस्ते पर
उनको ये कोशिश पहल सी लगी
कोई कमी तो नहीं थी जश्न तब भी था
तुम आये तो महफ़िल मुकम्मल सी लगी
मुफलिसी में गया था… Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 5:00pm —
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अपनी हालत क्या बताएं तुझे ऐ जिंदगी
सुकून भी है और दर्द भी
पर वो नहीं है..
नज़रों की तो गर्मी है
दिलदारों की भी नरमी है
अपनी आँखों में छुपाये जो
अपने आगोश में डुबाये जो
वो नहीं है..
चाँद सी तन्हाई है
वीरानों सा सन्नाटा
जिगर की गहराई है
पर इनको शबाबों से भर जाये जो
वो नहीं है..
सितारों की भीड़ है
जिंदगी जन्नत बन के आई है
सफ़र में हूँ हवाओं सा
इस सफ़र में साकी साथ निभाये जो
वो नहीं… Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 11:25am —
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ख्वाबों में हमने देखी एक दुनिया थी
हमराही थे वहां पे सारी खुशियाँ थीं
उम्मीद भरी इस आँखों से उनके लिए मचलते गए
हम चलते गए
अनजाने उस हमसफ़र की तलाश थी
होगा जहाँ से प्यारा दिल में आस थी
ढूँढने को उसे छोड़ा सब राहों में
गिर गिर के भी सम्हलते गए
हम चलते गए
सफ़र में इन राहों से पहचान हो गयी
अनजान जिंदगी आखरी अरमान हो गयी
तसवीरें टूट गयीं जो अपने सपनो की
हकीकत में ही ढलते गए
हम चलते गए
Added by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 12:42pm —
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जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी
तो अनंत संसार में तुम्हारा क्या
जब मेंडक हो तुम कूंए के
तो दरिया क्या और किनारा क्या
जब भूल चुके हो अपनों को
तो संसार में तुमको प्यारा क्या
जब कूंद चुके हो दंगल में
तो दुश्मन क्या और यारा क्या
जब बाँट रहे खुले हाथों से
तो थोड़ा क्या और सारा क्या
जब धुल लिखी है किस्मत में
तो ज़मीन से ज्यादा न्यारा क्या
जब दुनिया का है इश्वर वो
तो मेरा क्या और तुम्हारा…
Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 12:44pm —
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बहुत कुछ सुना पर सीख न पाया
बहुत कुछ सूझा पर लिख न पाया
बहुत कुछ हुआ मेरे पीठ पीछे
मुडके देखा तो कुछ और ही पाया
नमक के जैसी थी प्रकृति मेरी
पानी में घुला पर मिट न पाया
बन बोछार जब छलका में
चिकने घड़ों पे टिक न पाया
घूमता हूँ छुपाये कितने मोती में
खारा समुन्दर हूँ छुप न पाया
तंग होकर जब खुद को बेचने चला बाज़ार में
निष्फल था… Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 27, 2010 at 8:30am —
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कुछ उम्मीदें थीं खुद से तुझे
जुटाई थी हिम्मत उसके लिए
कुछ ऐसे तेरे लडखडाये कदम
जैसे लगी ठोकर कोई
वादे थे जो घबरा गए
होंगे वो पूरे अब नहीं
यादें थी जो संजोई तूने
काँटों सी वो चुभने लगीं
बढ़ने थे जो जमकर कदम
राहों में वो दुखने लगे
उभरी थी जो कश्ती बड़ी
भवर में कहीं खो गयी
कोन सी है मंजिल तेरी
वो ही है या वो नहीं
कोन सी है मुश्किल तेरी
कुछ है नहीं कुछ है नहीं
शायद वो कुछ बताता तुझे
आगे वो… Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 26, 2010 at 6:58pm —
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नैनीताल,
कड़ाके की ठण्ड थी..हम परिवार के साथ होटल से नेना देवी मंदिर, पैदल पैदल जा रहे थे..
पिताजी ने कडकडाती आवाज में माँ से कहा : " अरे जरा हैण्ड बैग मफलर तो निकाल दो "
चलते चलते अचानक वो रुक गए और कुछ देखने लगे..
सामने चबूतरे पे एक पागल सा दिखने वाला आदमी अधनंगी हालत में सुकड़ के बैठा कुछ खा रहा था..
माँ हैण्ड बैग से मफलर निकालते हुए बोली : " क्या हुआ.. रुक क्यों गए?..ये लो मफलर "
पिताजी ने झुके से स्वर में कहा : " अब रहने दो "
Added by Bhasker Agrawal on December 25, 2010 at 10:54am —
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लोग इतने बदल गए ज़माना इतना बदल गया
बदले जुबां के रंग उनके, तराना इतना बदल गया
निकलते हैं जब अल्फाज उनके, कुछ अजीब से लगते हैं
ऊपरी शोहरत पाकर भी वो गरीब से लगते हैं
वो भोलापन नहीं अब बातों में उनकी
दिल से निकले भाव भी तहजीब से लगते हैं
होकर सामने भी छुरा पीठ पर मारा मेरे
फिर भी दिल निकाल ना पाए
मेरे कातिल मुझे बड़े बदनसीब से लगते हैं
गले में पड़ा हार जब साँसों की तकलीफ बन गया
तब दिखावे की सजा मालूम हुई
कल बेआबरू होते देखा उन्हें बाज़ार…
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Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 10:57pm —
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आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ
अतीत के बीते पन्नों को,उलट उलट के पढता हूँ
आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ
जब सर पे तेरा साया था
तब ये ख्याल न आया था
अब ओढ़ के काले अम्बर को
आँचल तेरा समझता हूँ
आज इस खामोश रात में,तुम को याद में करता हूँ
कहता था याद करूंगा नहीं
कभी भी बात करूंगा नहीं
पर आज तुम्हारी यादों को
आँखों में सजा के रखता हूँ
आज इस खामोश रात में, तुम को याद में करता हूँ… Continue
Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 12:04pm —
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एक लड़का लड़की रेस्तरां में बैठे थे ..
लड़का : अब मान भी जाओ, इतना गुस्सा ठीक नहीं .
लड़की : देखो तुम्हे झूठ नहीं बोलना चाहिए था,प्यार में झूठ नहीं बोलते
तभी लड़की का फोन बजा ..
हेलो! ..हाँ मम्मी में रस्ते में ही हूँ ..
Added by Bhasker Agrawal on December 23, 2010 at 11:14am —
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उसने पूछा ये क्या है
मैंने कहा सवाल है
उसने पूछा सवाल क्या है
मैंने कहा ख्याल है
उसने पूछा ख्याल क्या है
मैंने कहा बवाल है
उसने पूछा बवाल क्या है
मैंने कहा मेरा हाल है
Added by Bhasker Agrawal on December 22, 2010 at 11:48pm —
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सच्चाई सूरत लेगी एक दिन
माटी मूरत होगी एक दिन
क्यों भागता है यों रूठकर तू मुझसे
मुझे तेरी जरूरत होगी एक दिन
कभी राज अपने भी बतलाऊंगा तुझे
जो सुनने कि फुरसत होगी तुझे एक दिन
क्यों लगाया है मन तूने में चोखट पे
खुद तेरे दर पे आऊंगा बनके जोगी एक दिन
बहुत ठोकरें खाई हैं तूने इन राहों में
कभी मंजिल भी दिखलाऊंगा तुझे एक दिन
बहता पानी है तू चलाती है ये ज़मीं तुझे
बहते बहते समुन्दर बन जायेगा तू एक दिन
गम ना…
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Added by Bhasker Agrawal on December 21, 2010 at 3:51pm —
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जब शब्द पड़ गए कम तो मैंने लिखना छोड़ दिया
जब आँखें न हुई नम तो मैंने लिखना छोड़ दिया
पूछा गया के तुमने महफिल में दिखना छोड़ दिया
हम बोले की हमने बिकना छोड़ दिया
न लडखडाये उस वक्त जब राहों में रुकना छोड़ दिया
उड़ने लगे जो आसमां में हम तो कदमों ने दुखना छोड़ दिया
पीते थे जिस जाम में उस जाम को मैंने तोड़ दिया
लिखते लिखते लिख पड़ी कलम के मैंने लिखना छोड़ दिया
Added by Bhasker Agrawal on December 12, 2010 at 4:31pm —
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दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती
याद है वो पल जब सब साथ रहते थे
पर अब मुलाकात नहीं होती ..
दोस्त बहुत हैं मेरे पर सबसे बात नहीं होती
ये शिकायत नहीं सिर्फ हाल है..
कुछ जिंदगी भर साथ रहने का इरादा बनाते थे
हम सब ये करेंगे, हम सब वो करेंगे..जाने क्या क्या बताते थे..
कुछ ऐसे हैं जी लिखचीत को समझते हैं यारी
कभी लगती ये आदत उनकी कभी लगती बीमारी
कोई कभी मिल जाते हैं रस्ते में
मुस्कुराकर छूट जाते हैं सस्ते में
मिलते हैं कुछ जब जमती हैं महफ़िल…
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Added by Bhasker Agrawal on December 9, 2010 at 5:37pm —
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फूलों से थी चाहत मुझे
गुलदानों का सपना था
तूने बागों में छोड़ दिया
मेरा सपना तोड़ दिया
यादों से मैंने चुन चुन के
रिश्ते अपने सोचे थे
पल भर में तूने मेरा
दुनिया से नाता जोड़ दिया
खतरों से टकराकर में
आगे बढना चाहता था
देख के मेरे ज़ख्मों को
खतरों का रुख ही मोड़ दिया
प्रीत को अपनी लिख लिख के
में गीत बनाना चाहता था
बीच में मीत मिला कर के
मेरी प्रीत को मीत से जोड़ दिया
चारों ओर अँधियारा…
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Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm —
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कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं
हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं
ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं
सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं
Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm —
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अनकहा बयाँ हैं अश्क तुम्हारे
अनसुनी दास्ताँ हैं अश्क तुम्हारे
आँखों से दिखती है दुनिया बाहर की
अन्दर का जहाँ हैं अश्क तुम्हारे
दर्द हो दिल में तो ही होता दीदार इनका
ऐसा कुछ कहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
मोका है आज तो जान लो तुम इन्हें
वरना हमेशा रहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
शायद खुशनुमा हैं मिजाज़ इनका
साथ रहकर दर्द सहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे
ये ठहरी जमीं नहीं जो जीत लोगे तुम इन्हें
बहता आसमां हैं अश्क…
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Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 4:06pm —
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मेरी कलम,विचार और भाव साथ काम नहीं करते।
कभी कुछ कलम साथ देती है तो विचारों की परछाईं भर ही ज़ाहिर हो पाती है ।
कभी देखने में आया के हमने बात को इतना कम लिखा, के बात का मतलब ही बदल गया ।
कभी भावनाओं को शब्दों में पुरोया तो भावनाएं नाजायज़ लगने लगीं ।
फिर भी हम लिखते गए उस उम्मीद की खातिर के कभी किसी और को नहीं तो खुद को ही कुछ बता सकें, कुछ समझा सकें ।
Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 8:06am —
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