खुला मौसम गगन नीला
धरा का तन गीला - गीला l
पतंगों की उन्मुक्त उड़ान
तरु-पल्लव में है मुस्कान l
मकर-संक्रांति को भारत के हर प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. और वहाँ के वासी अलग-अलग तरीके से इस त्योहार को मनाते हैं. पंजाब में इसे लोहड़ी बोलते हैं जो मकर-संक्राति के एक दिन पहले की शाम को मनायी जाती है. और उत्तरप्रदेश में, जहां से मैं आती हूँ, इसे मकर-संक्रांति ही बोलते हैं. लोग सुबह तड़के स्नान करते हैं ठंडे पानी में. और इस दिन को खिचड़ी दिवस के रूप…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 13, 2012 at 5:30pm — 7 Comments
कोई पल ना बीतें काम के बिन हैं
रस्ते जीवन के बहुत कठिन हैं l
खुशी और गम के घूँट घूँट के
अभिलाषायें मन में अनगिन हैं l
साँस जभी तक आस तभी तक
सिमट रहे हर पल पल-छिन हैं l
काया ठगती है क्षमता घटती है
और बुझती सी साँसें बैरिन हैं l
ना होता हर दिन एक समाना
उम्मीदें भी लगतीं नामुमकिन हैं l
काम बहुत और समय रेत है
सब फिसल रहे हाथों से दिन हैं l
मंजिल है…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on September 13, 2011 at 12:30am — 2 Comments
चार कुण्डलियाँ
(१)
लीला है उस राम की, अन्ना यहाँ हजार
लोग जमा हो गये हैं, छोड़ दिया घरबार
छोड़ दिया घरबार, सह रहे आँधी-पानी
अनशन की शुरुआत, शुरू वही कहानी
भाग रही है भीड़, सभी कुछ गीला-गीला
हे प्रभु इस…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 19, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
बचपन में
एक दिन
एक संटी को
मुँह में दबाकर
मैं गन्ना
समझ बैठी
आज लिखते हुये
फिर भूल से
किसी के पन्ने को
मैं अपना पन्ना
समझ बैठी
न जाने कितनी
होती रहती हैं
मिस्टेक जिंदगी में
कुछ अनजाने में
कुछ नादानी में
फिर आती है
झेंप…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 4, 2011 at 6:00pm — 8 Comments
है मरने वालों की लंबी बड़ी दास्तां
कुछ मरे हैं यहाँ कुछ मरे हैं वहाँ
एक इंसा की गर्दन है अब तक बची
उसके बदले में ये सब तबाही मची
कितनी बार ऐसे हो चुके हैं हादसे
मुजरिम है सलामत बेगुनाह जा फँसे
आतंकी अपनी हठ पर हैं कबसे अड़े
बहाया है खून लोगों के कर लोथड़े
कितनों का बचपन पिता बिन लुटा
सुहागिनों का सिन्दूर माँगों से छुटा
माँ-बाप के कलेजों के चिथड़े हुये
हालात देश के और भी हैं बिगड़े हुये
हमने दिये हैं सबर…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on July 14, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
Added by Shanno Aggarwal on June 22, 2011 at 3:30am — 4 Comments
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