गीत-११
*
स्वार्थ के विधान अब और यूँ गढ़ो नहीं।
अर्थ के अनर्थ कर प्रपंच नित पढ़ो नहीं।।
*
आप यूँ अनीति को लोभवश न मान दो।
छीन निर्बलों से मत सशक्त को जहान दो।।
मार्ग हो कठिन भले हर परोपकार का।
सिर्फ हित स्वयं के ही मत कभी वितान दो।।
*
अशक्त पर प्रहार कर क्रूर दर्प से बिहँस।
मानकर अनाथ हैं दोष निज मढ़ो नहीं।।
*
आह हर अशक्त की वज्र जब रचायेगी।
कौन शक्ति पाप का घट भला बचायेगी।।
हर तमस के अन्त को दीप जन्मता सदा।
सूर्य की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2023 at 2:23pm — 2 Comments
गीत-१०
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सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के
कौन विदाई देगा बोलो, जाने वाले साल को।।
*
कितनी कड़वी मीठी यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में
आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में
आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने
आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।
*
दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है
सुख पाने वाले भी कहते, रुको न जाते काल को।।
*
माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन
कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 1:30pm — No Comments
( गीत -९)
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हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।
निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।
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धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।
नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।
हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।
स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।
*
अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।
महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।
*
शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।
झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
गीत-८
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कामना में नित्य जिस की, हर कली सुख की लुटाई।
पा लिया स्पर्श तेरा वेदना ने, अब न लेगी वो विदाई।।
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वेदना के बीज से ही, जन्म लेता है सुखद क्षण।
जेठ की तीखी तपन का, दान जैसे ओस का कण।।
कंटकों में पुष्प खिलते, दीप जलते नित तमस में।
मोल सुख का जानने को, हो गयी दुख से सगाई।।
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ध्वंस के अवशेष पर नित, दीप दुनिया है जलाती।
प्राण रहते पूछने पर, एक पल भी वह न आती।।
कर समर्पित प्राण ऐसे, चिर अखण्डित वेदना पर।
शेष करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2022 at 7:30am — 4 Comments
किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।
जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।
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तितली फूल हवा को भी है इस का पूरा भान।
जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।
आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।
इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।
*
फागुन गाये फाग भला क्या सावन धोये पाँव।
मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।
गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।
उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।
*
तपते सूरज से विनती की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2022 at 7:23pm — 6 Comments
रूठ रही नित गौरय्या भी, देख प्रदूषण गाँव में।
दम घुटता है कह उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
*
बीते युग की बात हुए हैं
घास-फूँस औ' माटी के घर।
सूने - सूने, फीके - फीके
खेतों खलिहानों के मञ्जर।।
*
अन्तर जैसे पाट दिया है, आज नगर औ' गाँव में।
दम घुटता है अब उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
*
शेष हुए हैं देशी व्यञ्जन,
और विदेशी रीत हुए।
तीजों - त्यौहारों से गायब,
परम्परा के गीत हुए।।
*
लगता जैसे आन बसे हों, किसी विदेशी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2022 at 6:45am — 6 Comments
सोचा था हो बच्चा मन
लेकिन पाया बूढ़ा मन।१।
*
नीड़ सरीखा आँधी में
तिनका तिनका टूटा मन।२।
*
किस दामन को भाता है
सारी रात बरसता मन।३।
*
तन की मंजिल पास हुई
मीलों लम्बा रस्ता मन।४।
*
शूल चुभा सब कहते हैं
मत रख पत्थर जैसा मन।५।
*
पीर अगर नाचे आँगन में
तब किसका घर होगा मन।६।
*
कहकर कितना रोयें अब
दुख में भी मुस्काता मन।७।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2022 at 8:00am — 9 Comments
१२२२/ १२२२/१२२२
*
कठिन जैसे नगर में धूप के दर्शन
हमें वैसे तुम्हारे रूप के दर्शन।१।
*
कभी वो नीर का साधन रहा होगा
मगर होते नहीं अब कूप के दर्शन।२।
*
सुना है नृत्य करते हैं तेरे आँगन
बहुत दुर्लभ हमें तो भूप के दर्शन।३।
*
कभी थोथा उड़ा कर सार गहते थे
नये युग में गुमें हैं सूप के दर्शन।४।
*
जलन दूजे से होती हो जहाँ बोलो
किसी मुख पर हो कैसे ऊप के दर्शन।५।
*
यहाँ रूठी हुई छत नींव बागी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 1, 2022 at 12:30pm — 6 Comments
2122/2122/212
*
हर तरफ झण्डे गढ़े हैं नाम के
पर नहीं हैं आदमी वो काम के।1।
*
वोट खातिर पैर पकड़े जिसने भी
वो हुए ना एक पल भी आम के।2।
*
नाम पर उन के मचाते लूट सब
कौन चलता है यहाँ पथ राम के।3।
*
लोक ने अनमोल आँका था जिन्हें
आज देखो वो बिके बिन दाम के।4।
*
क्या पता भटका हुआ लौटे कोई
दीप कोई तो जलाये शाम के।5।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 30, 2022 at 8:12am — 6 Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
*
राह में शूल अब तो बिछाने लगे
हाथ दुश्मन से साथी मिलाने लगे।१।
*
जो अघाते न थे कह सहारे हमी
गाल वो भी दुखों में बजाने लगे।२।
*
दुश्मनों की जरूरत हमें अब कहाँ
जब स्वयं को स्वयं ही मिटाने लगे।३।
*
हाथ सबका ही तोड़े यहाँ फूल को
सोच माली भी काँटे उगाने लगे।४।
*
बात उसको बता कर्म की साथिया
सेज सपनों की जो भी सजाने लगे।५।
*
वोट पाने की खातिर कभी रोये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2022 at 11:30pm — 6 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
*
मत कहो अब मन खँगाला जा रहा है
इस वतन से बस उजाला जा रहा है ।१।
*
फिर दिखेगा मौत का मन्जर वृहद ही
कह सुधा नित विष उबाला जा रहा है।२।
*
आसमाँ को बाँटने की हो न साजिस
जो भी नारा अब उछाला जा रहा है।३।
*
हस्र क्या होगा उन्हें भी ज्ञात होगा
जानकर जब साँप पाला जा रहा है।४।
*
बँट रहा नित किन्तु सब के पेट खाली
पास किस के फिर निवाला जा रहा है।५।
*
मान मर्दन के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 23, 2022 at 9:33pm — 4 Comments
दोहे बाल दिवस पर
***
लेता फिर सुधि कौन है, दिवस मना हर साल।
वन्चित बच्चे जानते, बस बच्चों का हाल।।
*
कितने बच्चे चोरते, निसिदिन शातिर चोर।
लेकिन मचता है नहीं, तनिक देश में शोर।।
*
भूखा बच्चा रोकता, अनजाने की राह।
बासी रोटी फेंक मत, तेरे पास अथाह।।
*
नेता करते देह का, धन के बल आखेट।
कितने बच्चे सो रहे, निसदिन भूखे पेट।।
*
बच्चे हर धनवान के, हैं सुख से भरपूर।
निर्धन के सुख खोजने, बन जाते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 12, 2022 at 10:11pm — 2 Comments
कह रहे हैं आज हम भी तानकर सीना।
प्रीत ने चलना सिखाया, प्रीत ने जीना।।
*
थे भटकते फिर रहे पथ में अकेले।
आप आये तो जुड़े हम से बहुत मेले।।
था नहीं परिचय स्वयं से, तो भला क्यों।
कौन अनजाना बुलाता आन सुख लेले।।
*
पीर ही थाती हमारी बन गयी थी पर।
आप की मुस्कान ने हर दर्द है छीना।।
*
हर चमन के फूल मसले शूल से खेले।
हम रहे अब तक महज संसार में ढेले।।
नेह के हर बोध से अनजान जीवनभर।
वासना की कोख में नित क्या नहीं झेले।।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 12, 2022 at 5:30am — 2 Comments
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।
हैं अधर पर प्यास के अंगार आ जाओ।।
*
नित्य बदली छोड़ कर अम्बर।
बैठ जाती आन पलकों पर।।
धुल न जाये फिर कहीं शृंगार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
शूल सी चंचल हवाएँ सब।
हो गयीं नीरस दिशाएँ सब।।
है बहुत सूना हृदय संसार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।
*
हो गयी बोझिल पलक जगते।
आस खंडित आस नित रखते।।
कौल को अब कर समन्दर पार आ जाओ।
खोल रक्खा है निमोही द्वार आ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2022 at 6:16am — 14 Comments
गीत
*****
उजाला कर दिया उसने
चलें उस ओर हम-तुम भी।।
*
तमस के गाँव में रह कर
सदी बीती हमारी भी।
अभी तक ढो रहे हैं बस
वही थोपी उधारी भी।।
*
नहीं प्रयास कर पाये
कभी इससे निकलने का।
बढ़ाया हाथ उस ने जब
लगायें जोर हम तुम भी।।
**
न जाने कौन सी ग्लानी
मिटा उत्साह देती नित।
नहीं साहस जुटा पाता
सँभलने का हमारा चित।।
*
सफलता है नहीं आयी
भला क्यों पथ हमारे ही।
तनिक मष्तिष्क से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 3:30am — 15 Comments
प्रेम रस का पान आओ फिर करें
सृष्टि का नव गान आओ फिर करें !
*
हम जले दावानलों से,
आँधियों से तुम बिखर।
आ गये हैं एक जैसी,
भाग्य की बाँधी डगर।।
*
भूल कर बीते दुखों के दर्द को
मोहिनी मुस्कान आओ फिर करें !
*
सोच मन पर क्या न बीती,
और घायल मन न कर।।
तय करें फिर साथ मिलकर,
जिन्दगी का यह सफर।।
*
नव सृजन को पथ मिला साथी मिले
नीड़ का निर्माण आओ फिर करें !
*
हम रहे साथी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 23, 2022 at 5:00am — 6 Comments
तुम कह देती एक बार
प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।
*
मिट जाती जन्मों की प्यास
छा जाता मन में उजास।
खो जाते सकल संत्रास
पूरित होती स्वर्णिम आस।।
*
पीड़ा हो जाती तार - तार
तुम कह देती एक बार
प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।
*
पोंछ देती तुम नयन गीले
पड़ जाते सब आबंध ढीले।
हो जोते हरित, सब पर्ण पीले
मृत्यु कहती , जा और जी ले।।
*
मन से लेती जो पुकार
तुम कह देती एक …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 22, 2022 at 8:30pm — 6 Comments
२२१/२१२१/२२१/२१२
*
अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए
जीवन को एक दृढ़ नया आधार दीजिए।।
*
व्याख्या गुणों की कीजिए दुर्गुण निथार के
सारे जगत को मान्य हो वह सार दीजिए।।
*
पथ से परोपकार व सच के न दूर हों
नैतिक बलों की शक्ति का संचार दीजिए।।
*
अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए।।
*
गुरुकुल बृहद सा गेह है मुझको लगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2022 at 7:30am — 6 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
***
न मन के सहारे रहे साथ अपने
न सुख के पिटारे रहे साथ अपने।।
*
कभी साथ देने न मझधार आयी
कि सूखे किनारे रहे साथ अपने।।
*
बहारें भले मुह फुलाती हों अब भी
खिजां के नजारे रहे साथ अपने।।
*
खुशी ने जो पाले अछूतों में गिनते
दुखों के दुलारे रहे साथ अपने।।
*
नदी नीर मीठा लिए गुम गयी पर
समन्दर वो खारे रहे साथ अपने।।
*
भले आज फैली अमा हर तरफ हो
कभी चाँद तारे रहे साथ …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 29, 2022 at 9:30pm — 8 Comments
सिन्दूर कह न सिर्फ सजाने की चीज है
पुरखे बता गये हैं निभाने की चीज है।।
*
इससे बँधा है जन्मों का रिश्ता जमाने में
हक और सिर्फ प्रीत से पाने की चीज है।।
*
भरते ही माग इससे जो विश्वास जागता
भूली जो पीढ़ी उसको बताने की चीज है।।
*
मन में जगाता प्रेम समर्पण के भाव को
केवल न रीत सोच निभाने की चीज है।।
*
इससे हैं मिटाती दूरियाँ केवल न देह की
ये दो दिलों को पास में लाने की चीज है।।
*
छीनो न भाव इसका भले आधुनिक हुए
ये तो जमीर नर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2022 at 6:18am — 5 Comments
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