वो आया था और सच्चाई बता के चला गया,
बुरा ना कहो उसे जो हाथ छुडा के चला गया|
वो भी भला था फ़क्त इक दुआ देके देख लो,
जो मेरी रूह को खुदा से मिला के चला गया|
मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया|
सुना था कहीं इंसान बसते हैं यहीं ज़मीन पे,
वो आईने में मेरा चेहरा दिखा के चला गया|
दम आख़िरी था, मुस्कान चेहरे पे आ ही गयी,
हँसते हुए वो दुनिया को रुला के चला…
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 20, 2013 at 9:30am — 14 Comments
मालिक ने इस दौड़ में यूं ही नहीं शामिल किया,
फ़क्त ये जानना ज़रूरी है कि किस काबिल किया |
कहते रहे जो ज़िंदगी भर खुदा ही आख़िरी ज़रुरत है,
उन्होंने अपनी रूह तक को भी ना हासिल किया |
बहुत कोशिशें की मगर पढ़ ना सके उस इबारत को,
जिन हर्फों ने राम और रहमान को फ़ाज़िल किया|
सोचा वो धुँआ थी, बिखर के मिल गयी हवाओं में
हर अधूरी ख्वाहिश को इस तरहा मुकम्मिल किया|
मैं ना ग़ालिब था, ना मीर ना ही और कोई…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 10, 2013 at 11:55am — 7 Comments
छुपा के होठों से गम को अपने
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
बना लो गीतों को मेय का प्याला
छलकती बूंदों ही को कहो तुम |
ये गम की तड़पन से लिपट लो,
हवा दो आग को जितनी भी तुम |
सुख को हौले से फिर भी छू लो ,
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
मंजिल पे जख्मों को तो न देखो,
मंजिल को छू लो नयनों से अपने |
बसा के आँखों में कल के सपने,
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
आसान नहीं खुद को पहचान…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:17pm — 6 Comments
तेरे नयनों में भर आये नीर तो, लहू मैं बहा दूं माँ,
न्योच्छार तुझपे जीवन करूँ, क्या जिस्म क्या है जाँ |
तू धीर गंभीर हिमाला को
मस्तक पे धारण करे |
तू चंचल गंगा जमुना का
प्रतिक्षण वरण करे |
विविध भी एक हैं , देख ले चाहे जहां |
जब उठा के लगा दें
हम मस्तक पे धूल |
बसंत है चारों तरफ
खिले मुस्कान के फूल |
नफरत भी बन जाती है, प्रेम का समाँ |
तेरे बेटों की ओ माँ
बस यही है आरजू…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:16pm — 5 Comments
हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा
संघर्ष को और बढाने की |
हर हार मुझे देती है आशा
जय को करीब लाने की |
बिखर जाये जब मन मेरा
मैं उसके मोती चुन लेता हूँ |
निराशा के हर अंगारे को
मैं अमृत समझ के सहता हूँ |
ये निराशा मेरे प्रेम की भाषा
जल्दी ही बन जाने की |
हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा.....
पतझर में जो झर गये पत्ते
आने पे सावन खिल जायेंगे |
मनुष्य यदि प्रयास करे तो
बिछड़े क्षण…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:14pm — 4 Comments
इस ज़िंदगी के किस पल में
जाने कब क्या हो जाये |
मिल कर सारे जहाँ की ख़ुशी,
ज़िंदगी ही खो जाये |
खुशियों के दर्पण के पीछे,
हम दीवाने हो जाते हैं |
दीवानगी में ये ना सोचे,
अक्स ही हमें सुहाते हैं |
सुख के हर इक अक्षर को, दुःख जाने कब धो जाये |
सुख तो इक आज़ाद पंछी,
पिंजरे में न रह पायेगा |
दिल का सूना पिंजरा भरने,
दुःख ही फिर से आ जाएगा |
जाने कब गम का आंसू, दामन को भिगो जाये…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:00pm — 6 Comments
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