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Nilesh Shevgaonkar's Blog (183)

ग़ज़ल-नूर-यादों को हम याद आएं हैं,

मात्रिक बहर 

२२/२२/२२/२२/

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अपना ग़म ख़ुद ही से छुपा कर,

जब निकलो,, मुस्कान सजा कर.

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ग़ैरों से इतना न खुला कर,

दिल नौचेंगे ...मौका पा कर. 

.

नया तज़्रबा है हर धोका,  

जश्न मनाओ बोतल ला कर.

.

तुम समझे लोबान जला है,

मैं रक्साँ था ज़ख्म जला कर.

.

मैंने ख़ुद को तर्क किया है,

तेरी मर्ज़ी हाँ कर...ना कर.

.

शायद कोई राह छुपी हो,

देख ज़रा दीवार ढहा कर.

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यादों को हम याद आएं हैं,

लौट आयी हैं वापस,…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 8:58am — 10 Comments

ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल-नूर

२१२२/२१२२/२१२१२ 

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ज़िन्दगी क़दमों पे थी तब शूल थे गड़े,

जब चले कांधो पे, पीछे... फूल थे पड़े.

.

काम तो छोटे ही आये.. वक़्त जब पडा,

लिस्ट में कितने अगरचे नाम थे बड़े. 

.

एक है अल्लाह ये कह कर गये रसूल,…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2016 at 7:47pm — 19 Comments

ग़ज़ल -नूर- ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है

१२२२/१२२२/१२२ 



ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है,

किसी की याद दिल में चुभ रही है.

.

मसीहा को मसीहाई चढ़ी है,

मसीहा को हमारी क्या पड़ी है.

.

कहीं पर अश्क मिट्टी हो रहे हैं

कहीं प्यासी तड़पती ज़िन्दगी है.

.

कई जुगनू चमक उट्ठे हैं

लेकिन कमी सूरज की रातों में खली है.

.

मेरी नज़रें जमी हैं आसमां पर,

न जानें क्यूँ वहाँ भी ख़लबली है.

.

रगड़ता है हर इक साहिल पे माथा,

समुन्दर की ये कैसी बे-बसी है.

.

गुनाहों में गिनीं जाएगी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2016 at 8:23am — 8 Comments

ग़ज़ल-नूर-अश्क आँखों से फिर बहा जाये,

२१२२/१२१२/२२ (११२)

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अश्क आँखों से फिर बहा जाये,

अपना जाये, किसी का क्या जाये.

.

तुम अगर चश्म-ए-तर में आ जाओ,

झील में चाँद झिलमिला जाये.
 

.

ढ़लती उम्रों के मोजज़े हैं मियाँ

इक बुझा जाए, इक जला जाये.

.

याद माज़ी को कर के जी लूँगा, 

फिर जहाँ तक ये सिलसिला जाये.

.

ज़ह’न कहता है, कर ले सब्र ज़रा,

और दिल है कि बस…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2016 at 7:00am — 20 Comments

ग़ज़ल -नूर- नए मिज़ाज के लोगों में तल्खियाँ हैं बहुत,

१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)

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नए मिज़ाज के लोगों में तल्खियाँ हैं बहुत,

कई ख़ुदा से, कई ख़ुद से सरगिराँ हैं बहुत.

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किसी के मिलने मिलाने का पालिये न भरम,

ज़मीं-फ़लक में उफ़ुक़ पर भी दूरियाँ हैं बहुत.

.

अभी ग़ज़ल में कई रँग और भरने हैं,

अभी ख़याल की शाख़ों पे तितलियाँ हैं बहुत.

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सियासी चाल है हिन्दी की जंग उर्दू से,

सहेलियाँ हैं ये बचपन की; हमज़बाँ हैं बहुत.

.

परिंदे यादों के, आ बैठते हैं ताक़ों पर,

उजाड़ माज़ी के खंडर में खिड़कियाँ…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2016 at 5:42pm — 21 Comments

ग़ज़ल -नूर- कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो

१२१२ /११२२ /१२१२ /२२ (११२)

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कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,

जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो.

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ग़ज़ब सितम है इसे यूँ अलग थलग रखना,

शराब ज़ह’र नहीं है इसे दवा में रखो.

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इधर हैं बाढ़ के हालात और उधर सूखा,

हमारी दीदएतर अब, उधर फ़ज़ा में रखो.

.

शबाब हुस्न पे आया तो है मगर कम कम,

है मशविरा कि हया भी हर इक अदा में रखो.

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तमाम फ़ैसले मेरे तुम्हे लगेंगे सही,

अगर जो ख़ुद को कभी तुम मेरी क़बा में रखो.  

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ज़बां…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 12:28pm — 20 Comments

ग़ज़ल-"नूर-ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

१२२/१२२/१२२/१२ 

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कोई राज़ मुझ पर खुला देर से,

वो आँसू वहीँ था,, बहा देर से.

.

चिता की हुई राख़ ठंडी मगर,

सुलगता हुआ दिल बुझा देर से.

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मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,

मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.  

.

तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया,

ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

.

हमारी सिफ़ारिश फ़रिश्तों ने की,

मगर आसमां ही झुका देर से.

.

अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,

वो ख़त तो जला पर जला देर से.

.

कई खेत…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2016 at 8:32pm — 23 Comments

ग़ज़ल-नूर --वक़्त यूँ आज़माता रहा

२१२/२१२/२१२

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वक़्त यूँ आज़माता रहा,

रोज़ ठोकर लगाता रहा.

.

साहिलों पर समुन्दर ही ख़ुद,

नाम लिखता,, मिटाता रहा.

.

वो मेरे ख़त जलाते रहे,  

और मैं दिल जलाता रहा.

.

वक़्त कम है, पता था मुझे

रोज़..फिर भी लुटाता रहा.   

.

डूबती नाव का नाख़ुदा,

बस उम्मीदें बँधाता रहा.

.

वो समझते रहे शेर हैं,

धडकनें मैं सुनाता रहा.

.

कोई तो प्यास से मर गया,

कोई आँसू बहाता…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 5:04pm — 3 Comments

ग़ज़ल -फिर ‘नूर’ हर्फ़ हर्फ़ वहाँ तितलियाँ रहीं.

221/2121/122/1212

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आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं, 

गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.

.

क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार, 

यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.

.

नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,  

ज़्यादा कुसूरवार  तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.

.

ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र

हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.

.

क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए

कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.

.

मिलते…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2016 at 9:08pm — 19 Comments

ग़ज़ल -नूर- कहानी नहीं चली.

ग़ज़ल 

२२१/२१२/११२२/१२१२ 



कश्ती थी बादबानी, हवा ही नहीं चली,

मर्ज़ी नहीं थी रब की सो अपनी नहीं चली.

.

ज़ह’न-ओ-जिगर की, दिल की, अना की नहीं चली

मौला के दर पे क़िस्सा कहानी नहीं चली.  

.

कितने थे शाह कितने क़लन्दर क़तार में,

धमक़ी तो छोड़ दीजिये, अर्ज़ी नहीं चली.

.   

धुलवा दिए थे अश्क-ए-नदामत से सब गुनाह,   

चादर वहाँ ज़रा सी भी मैली नहीं चली.

.

होता रहा हिसाब-ए-अमल, रोज़-ए-हश्र, ‘नूर’  

कोई वहाँ पे बात किताबी नहीं…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on March 11, 2016 at 7:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल-नूर ख़ुशबुओं का सफ़र

२१२२/१२१२/२२/

ख़ुशबुओं का सफ़र नहीं आया,
खत लिए नाम:बर नहीं आया.
.
सुब’ह, राहें भटक गया... कोई,
शाम तक उस का घर नहीं आया.
.
देर तुम से न देर मुझ से हुई,
वक़्त ही वक़्त पर नहीं आया.
.  
चलते चलते गुज़ार दी सदियाँ,
अब भी मौला का दर नहीं आया.   
.
जिस्म की छाँव में रखा जिन को,
उन पे मेरा असर नहीं आया.
.
‘नूर’ ऐसा!! निगाहें क्या उठती,
हश्र पर कुछ नज़र नही आया.
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

Added by Nilesh Shevgaonkar on February 11, 2016 at 6:40pm — 4 Comments

ग़ज़ल- निलेश "नूर"

ग़ज़ल 

गा गा लगा लगा/ लल/ गा गा लगा लगा

.

झीलों में ऐसे..... चाँद डिबोता हूँ आज भी,

आँखों में रख के आप को रोता हूँ आज भी.  

.

अब तक दरख्त जितने उगाए, बबूल हैं,

दिल में मगर मैं यादों को बोता हूँ आज भी.

.

आदत में था शुमार तेरे साथ जागना,

तेरे बगैर देर से सोता हूँ आज भी.

.

नमकीन पानियों से जो रंगत निखरती है,

रुख़सार आँसुओं से मैं धोता हूँ आज भी.

.

काँधे पे इक सलीब उठाए फिरा करूँ,

नाकामियों का बोझ मैं ढ़ोता हूँ आज…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on February 7, 2016 at 9:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल- तमन्नाएँ

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

.

कभी बदनाम गलियों में भटकती हैं तमन्नाएँ,

कभी खुद की निगाहों में खटकती हैं तमन्नाएँ.

.

हवस की मकड़ियाँ बुनती है दिल में जाल हसरत के,

जहाँ मौका मिला, आकर, अटकती है तमन्नाएँ.

.

तमन्नाओं का अंधड़ रोक पाना है बहुत मुश्किल,

मगर दिल में बसा हो रब, ठिठकती हैं तमन्नाएँ.

.

कोई इंसान जब अपनी ख़ुदी को जीत लेता है,

तो फिर क़दमों में उस के, सर पटकती हैं तमन्नाएँ.

.

सफ़र जब जिस्म से बाहर का करने रूह चलती है,

चिता की…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 28, 2016 at 6:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल -नूर-शायरों सा मिजाज़ रखता है.

२१२२/१२१२/२२ 



अपने दिल में वो राज़ रखता है,

शायरों सा मिजाज़ रखता है.

.

अब सियासत में आ गया है तो 

हर किसी को नवाज़ रखता है.

.

बात करता है गर्क़ होने की,

और कितने जहाज़ रखता है.

.

दिल से देता है वो दुआएँ जब

उन पे थोड़ी नमाज़ रखता है.

.

जानें कितनों से दिल लगा होगा

दिल में ढेरों दराज़ रखता है.     

.

ये सदी और ये  वफ़ादारी

जाहिलों से  रिवाज़ रखता है.

.

हर्फ़ उसके तो हैं ज़मीनी, पर

वो तख़य्युल…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 11:00am — 10 Comments

ग़ज़ल-नूर - माँगते इंसाफ़ किस से बिस्मिलों के वास्ते

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 



माँगते इंसाफ़ किस से बिस्मिलों के वास्ते

अदलिया थी दिल बिछाए क़ातिलों के वास्ते.

.

रास्ते आपस में उलझे, मंजिलें पिन्हा हुईं,     

रास्ते गरचे बने थे मंज़िलों के वास्ते.

.

साहिलों पर कश्तियाँ महफूज़ रहती हैं मगर

कश्तियाँ कब थी बनाईं साहिलों के वास्ते.

.

इक निगाहे-शोख से हम ने लड़ाई थी नज़र

चंद क़िस्से छोड़ आए महफ़िलों के वास्ते.

.

कुछ तेरा ग़म और कुछ अग्यार की तंज़-ओ-निगाह  

और भी आसाँ हुए हम मुश्किलों के…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on January 12, 2016 at 7:30am — 12 Comments

ग़ज़ल-नूर --अपने अहसास दर-ब-दर रखते,

ग़ज़ल 

२१२२/१२१२/२२ (११२)

.

अपने अहसास दर-ब-दर रखते,

उन से उम्मीद हम अगर रखते.

.

कौन आता यहाँ, जो पूछता ‘वो’,

चाँद तारों में हम भी घर रखते.

.

नींद आती जो रात भर के लिए,

उन को ख़्वाबों में रात भर रखते.

.   

जंग से क़ब्ल हार जाते हम,  

दिल में ज़ालिम का हम जो डर रखते

.

वो ख़ुदा ही मिला नहीं हम को,

जिस के क़दमों पे अपना सर रखते.

.

मुख़बिरी करते थे ज़माने की,

काश ख़ुद की भी कुछ ख़बर रखते.

.

छोड़ देते…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2015 at 10:20pm — 24 Comments

ग़ज़ल-नूर- फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

२१२२/२१२२/२१२/

मंज़िलों का जो पता दे जाएगा

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.

.

और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा

ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.

.

दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा

फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.

.

ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा

बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.

.

आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया

फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.

.

जब वो सोचेगा हमारे वास्ते

फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.

.    

“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन

मुश्किलों…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2015 at 10:54am — 31 Comments

ग़ज़ल -नूर: मेहंदी उनकी बहुत रची होगी.

२१२२/१२१२/२२ (११२)

लोग समझे कि शाइरी होगी

बात तो सिर्फ़ आप की होगी

.  

रोज़ साहिल पे आ के रुकती है

शाम की कोई बे-बसी होगी

.

तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को

ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.

.

अपने जादू से जीत लेती है

ये कज़ा भी कोई परी होगी.

.

ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया

मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.

.

मेरे दर पे ख़ुशी है आने को

आती होगी!! कहीं रुकी होगी.

.

दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं

दिल में यादों की चाशनी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 17, 2015 at 4:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल-नूर - नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

१२१२/११२२/१२१२/११२

नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ

मैं आदमी न हुआ और वो ख़ुदा न हुआ
.

.

सहर मलेगी अभी मुँह पे, रात के कालिख़

वो आफ़्ताब उछालूँगा जो हवा न हुआ. 

.

अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ

वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.

.

ये कायनात कहाँ और ऐ बशर तू कहाँ

बड़ा समझने से ख़ुद को…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:10am — 28 Comments

ग़ज़ल-नूर -अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.

२१२२/१२१२/२२ (११२)
या ख़ुदा ऐसी ला-मकानी दे
अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.
.
कितना आवारा हो गया हूँ मैं
ज़िन्दगी को कोई मआनी दे.
.
यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.      
.
सच मेरा कोई मानता ही नहीं
सच लगे ऐसी इक कहानी दे.
.
मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी  
मेरी ग़ज़लों को थोडा पानी दे.
.
“नूर” को फ़िक्र दे नई मौला
पर नज़र उस को तू पुरानी दे.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2015 at 9:30pm — 27 Comments

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