मात्रिक बहर
२२/२२/२२/२२/
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अपना ग़म ख़ुद ही से छुपा कर,
जब निकलो,, मुस्कान सजा कर.
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ग़ैरों से इतना न खुला कर,
दिल नौचेंगे ...मौका पा कर.
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नया तज़्रबा है हर धोका,
जश्न मनाओ बोतल ला कर.
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तुम समझे लोबान जला है,
मैं रक्साँ था ज़ख्म जला कर.
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मैंने ख़ुद को तर्क किया है,
तेरी मर्ज़ी हाँ कर...ना कर.
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शायद कोई राह छुपी हो,
देख ज़रा दीवार ढहा कर.
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यादों को हम याद आएं हैं,
लौट आयी हैं वापस,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 21, 2016 at 8:58am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२१२
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ज़िन्दगी क़दमों पे थी तब शूल थे गड़े,
जब चले कांधो पे, पीछे... फूल थे पड़े.
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काम तो छोटे ही आये.. वक़्त जब पडा,
लिस्ट में कितने अगरचे नाम थे बड़े.
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एक है अल्लाह ये कह कर गये रसूल,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2016 at 7:47pm — 19 Comments
१२२२/१२२२/१२२
ख़ुदाया आज फिर धडकन थमी है,
किसी की याद दिल में चुभ रही है.
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मसीहा को मसीहाई चढ़ी है,
मसीहा को हमारी क्या पड़ी है.
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कहीं पर अश्क मिट्टी हो रहे हैं
कहीं प्यासी तड़पती ज़िन्दगी है.
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कई जुगनू चमक उट्ठे हैं
लेकिन कमी सूरज की रातों में खली है.
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मेरी नज़रें जमी हैं आसमां पर,
न जानें क्यूँ वहाँ भी ख़लबली है.
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रगड़ता है हर इक साहिल पे माथा,
समुन्दर की ये कैसी बे-बसी है.
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गुनाहों में गिनीं जाएगी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2016 at 8:23am — 8 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
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अश्क आँखों से फिर बहा जाये,
अपना जाये, किसी का क्या जाये.
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तुम अगर चश्म-ए-तर में आ जाओ,
झील में चाँद झिलमिला जाये.
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ढ़लती उम्रों के मोजज़े हैं मियाँ
इक बुझा जाए, इक जला जाये.
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याद माज़ी को कर के जी लूँगा,
फिर जहाँ तक ये सिलसिला जाये.
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ज़ह’न कहता है, कर ले सब्र ज़रा,
और दिल है कि बस…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2016 at 7:00am — 20 Comments
१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)
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नए मिज़ाज के लोगों में तल्खियाँ हैं बहुत,
कई ख़ुदा से, कई ख़ुद से सरगिराँ हैं बहुत.
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किसी के मिलने मिलाने का पालिये न भरम,
ज़मीं-फ़लक में उफ़ुक़ पर भी दूरियाँ हैं बहुत.
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अभी ग़ज़ल में कई रँग और भरने हैं,
अभी ख़याल की शाख़ों पे तितलियाँ हैं बहुत.
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सियासी चाल है हिन्दी की जंग उर्दू से,
सहेलियाँ हैं ये बचपन की; हमज़बाँ हैं बहुत.
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परिंदे यादों के, आ बैठते हैं ताक़ों पर,
उजाड़ माज़ी के खंडर में खिड़कियाँ…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2016 at 5:42pm — 21 Comments
१२१२ /११२२ /१२१२ /२२ (११२)
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कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,
जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो.
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ग़ज़ब सितम है इसे यूँ अलग थलग रखना,
शराब ज़ह’र नहीं है इसे दवा में रखो.
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इधर हैं बाढ़ के हालात और उधर सूखा,
हमारी दीदएतर अब, उधर फ़ज़ा में रखो.
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शबाब हुस्न पे आया तो है मगर कम कम,
है मशविरा कि हया भी हर इक अदा में रखो.
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तमाम फ़ैसले मेरे तुम्हे लगेंगे सही,
अगर जो ख़ुद को कभी तुम मेरी क़बा में रखो.
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ज़बां…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 12:28pm — 20 Comments
१२२/१२२/१२२/१२
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कोई राज़ मुझ पर खुला देर से,
वो आँसू वहीँ था,, बहा देर से.
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चिता की हुई राख़ ठंडी मगर,
सुलगता हुआ दिल बुझा देर से.
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मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,
मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.
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तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया,
ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.
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हमारी सिफ़ारिश फ़रिश्तों ने की,
मगर आसमां ही झुका देर से.
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अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,
वो ख़त तो जला पर जला देर से.
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कई खेत…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2016 at 8:32pm — 23 Comments
२१२/२१२/२१२
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वक़्त यूँ आज़माता रहा,
रोज़ ठोकर लगाता रहा.
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साहिलों पर समुन्दर ही ख़ुद,
नाम लिखता,, मिटाता रहा.
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वो मेरे ख़त जलाते रहे,
और मैं दिल जलाता रहा.
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वक़्त कम है, पता था मुझे
रोज़..फिर भी लुटाता रहा.
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डूबती नाव का नाख़ुदा,
बस उम्मीदें बँधाता रहा.
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वो समझते रहे शेर हैं,
धडकनें मैं सुनाता रहा.
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कोई तो प्यास से मर गया,
कोई आँसू बहाता…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 5:04pm — 3 Comments
221/2121/122/1212
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आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं,
गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.
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क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार,
यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.
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नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,
ज़्यादा कुसूरवार तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.
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ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र
हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.
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क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए
कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.
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मिलते…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2016 at 9:08pm — 19 Comments
ग़ज़ल
२२१/२१२/११२२/१२१२
कश्ती थी बादबानी, हवा ही नहीं चली,
मर्ज़ी नहीं थी रब की सो अपनी नहीं चली.
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ज़ह’न-ओ-जिगर की, दिल की, अना की नहीं चली
मौला के दर पे क़िस्सा कहानी नहीं चली.
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कितने थे शाह कितने क़लन्दर क़तार में,
धमक़ी तो छोड़ दीजिये, अर्ज़ी नहीं चली.
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धुलवा दिए थे अश्क-ए-नदामत से सब गुनाह,
चादर वहाँ ज़रा सी भी मैली नहीं चली.
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होता रहा हिसाब-ए-अमल, रोज़-ए-हश्र, ‘नूर’
कोई वहाँ पे बात किताबी नहीं…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 11, 2016 at 7:00pm — 18 Comments
२१२२/१२१२/२२/
ख़ुशबुओं का सफ़र नहीं आया,
खत लिए नाम:बर नहीं आया.
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सुब’ह, राहें भटक गया... कोई,
शाम तक उस का घर नहीं आया.
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देर तुम से न देर मुझ से हुई,
वक़्त ही वक़्त पर नहीं आया.
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चलते चलते गुज़ार दी सदियाँ,
अब भी मौला का दर नहीं आया.
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जिस्म की छाँव में रखा जिन को,
उन पे मेरा असर नहीं आया.
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‘नूर’ ऐसा!! निगाहें क्या उठती,
हश्र पर कुछ नज़र नही आया.
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मौलिक / अप्रकाशित
निलेश "नूर"
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 11, 2016 at 6:40pm — 4 Comments
ग़ज़ल
गा गा लगा लगा/ लल/ गा गा लगा लगा
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झीलों में ऐसे..... चाँद डिबोता हूँ आज भी,
आँखों में रख के आप को रोता हूँ आज भी.
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अब तक दरख्त जितने उगाए, बबूल हैं,
दिल में मगर मैं यादों को बोता हूँ आज भी.
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आदत में था शुमार तेरे साथ जागना,
तेरे बगैर देर से सोता हूँ आज भी.
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नमकीन पानियों से जो रंगत निखरती है,
रुख़सार आँसुओं से मैं धोता हूँ आज भी.
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काँधे पे इक सलीब उठाए फिरा करूँ,
नाकामियों का बोझ मैं ढ़ोता हूँ आज…
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 7, 2016 at 9:30pm — 16 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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कभी बदनाम गलियों में भटकती हैं तमन्नाएँ,
कभी खुद की निगाहों में खटकती हैं तमन्नाएँ.
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हवस की मकड़ियाँ बुनती है दिल में जाल हसरत के,
जहाँ मौका मिला, आकर, अटकती है तमन्नाएँ.
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तमन्नाओं का अंधड़ रोक पाना है बहुत मुश्किल,
मगर दिल में बसा हो रब, ठिठकती हैं तमन्नाएँ.
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कोई इंसान जब अपनी ख़ुदी को जीत लेता है,
तो फिर क़दमों में उस के, सर पटकती हैं तमन्नाएँ.
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सफ़र जब जिस्म से बाहर का करने रूह चलती है,
चिता की…
Added by Nilesh Shevgaonkar on January 28, 2016 at 6:00pm — 16 Comments
२१२२/१२१२/२२
अपने दिल में वो राज़ रखता है,
शायरों सा मिजाज़ रखता है.
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अब सियासत में आ गया है तो
हर किसी को नवाज़ रखता है.
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बात करता है गर्क़ होने की,
और कितने जहाज़ रखता है.
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दिल से देता है वो दुआएँ जब
उन पे थोड़ी नमाज़ रखता है.
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जानें कितनों से दिल लगा होगा
दिल में ढेरों दराज़ रखता है.
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ये सदी और ये वफ़ादारी
जाहिलों से रिवाज़ रखता है.
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हर्फ़ उसके तो हैं ज़मीनी, पर
वो तख़य्युल…
Added by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 11:00am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
माँगते इंसाफ़ किस से बिस्मिलों के वास्ते
अदलिया थी दिल बिछाए क़ातिलों के वास्ते.
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रास्ते आपस में उलझे, मंजिलें पिन्हा हुईं,
रास्ते गरचे बने थे मंज़िलों के वास्ते.
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साहिलों पर कश्तियाँ महफूज़ रहती हैं मगर
कश्तियाँ कब थी बनाईं साहिलों के वास्ते.
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इक निगाहे-शोख से हम ने लड़ाई थी नज़र
चंद क़िस्से छोड़ आए महफ़िलों के वास्ते.
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कुछ तेरा ग़म और कुछ अग्यार की तंज़-ओ-निगाह
और भी आसाँ हुए हम मुश्किलों के…
Added by Nilesh Shevgaonkar on January 12, 2016 at 7:30am — 12 Comments
ग़ज़ल
२१२२/१२१२/२२ (११२)
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अपने अहसास दर-ब-दर रखते,
उन से उम्मीद हम अगर रखते.
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कौन आता यहाँ, जो पूछता ‘वो’,
चाँद तारों में हम भी घर रखते.
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नींद आती जो रात भर के लिए,
उन को ख़्वाबों में रात भर रखते.
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जंग से क़ब्ल हार जाते हम,
दिल में ज़ालिम का हम जो डर रखते
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वो ख़ुदा ही मिला नहीं हम को,
जिस के क़दमों पे अपना सर रखते.
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मुख़बिरी करते थे ज़माने की,
काश ख़ुद की भी कुछ ख़बर रखते.
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छोड़ देते…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2015 at 10:20pm — 24 Comments
२१२२/२१२२/२१२/
मंज़िलों का जो पता दे जाएगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.
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और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.
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दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा
फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.
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ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा
बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.
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आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया
फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.
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जब वो सोचेगा हमारे वास्ते
फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.
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“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन
मुश्किलों…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 28, 2015 at 10:54am — 31 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
लोग समझे कि शाइरी होगी
बात तो सिर्फ़ आप की होगी
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रोज़ साहिल पे आ के रुकती है
शाम की कोई बे-बसी होगी
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तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को
ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.
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अपने जादू से जीत लेती है
ये कज़ा भी कोई परी होगी.
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ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया
मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.
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मेरे दर पे ख़ुशी है आने को
आती होगी!! कहीं रुकी होगी.
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दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं
दिल में यादों की चाशनी…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on June 17, 2015 at 4:30pm — 19 Comments
१२१२/११२२/१२१२/११२
नया सफ़र भी पुराना रहा, नया न हुआ
मैं आदमी न हुआ और वो ख़ुदा न हुआ.
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सहर मलेगी अभी मुँह पे, रात के कालिख़
वो आफ़्ताब उछालूँगा जो हवा न हुआ.
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अजीब जात हूँ जो टूटकर पनपता हूँ
वगर्ना टूट के पत्ता कोई हरा न हुआ.
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ये कायनात कहाँ और ऐ बशर तू कहाँ
बड़ा समझने से ख़ुद को…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:10am — 28 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
या ख़ुदा ऐसी ला-मकानी दे
अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.
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कितना आवारा हो गया हूँ मैं
ज़िन्दगी को कोई मआनी दे.
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यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.
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सच मेरा कोई मानता ही नहीं
सच लगे ऐसी इक कहानी दे.
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मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी
मेरी ग़ज़लों को थोडा पानी दे.
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“नूर” को फ़िक्र दे नई मौला
पर नज़र उस को तू पुरानी दे.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2015 at 9:30pm — 27 Comments
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