दोहा मुक्तक ........
कड़- कड़ कड़के दामिनी, घन बरसे घनघोर ।
उत्पातों के दौर में, साँस का मचाए शोर ।
रात बढ़ी बढ़ते गए, आलिंगन के बंध -
पागल दिल को भा गया , दिल का प्यारा चोर ।
* * * * *
एक दिवानी को हुआ, दीवाने से प्यार ।
पलकों में सजने लगा, सपनों का संसार ।
गुपचुप-गुपचुप फिर हुए, नैनों में संकेत -
चरम पलों में हो गए, शर्मीले अभिसार…
Added by Sushil Sarna on July 4, 2022 at 9:38pm — 2 Comments
पाँच दोहे मेघों पर . . . . .
अम्बर में विचरण करे, मेघों का विस्तार ।
सावन की देने लगी, दस्तक अब बौछार ।।
मेघों का मेला करे, अम्बर का शृंगार ।
आज दिवाकर लग रहा, थोड़ा सा लाचार ।।
थोड़ी सी है धूप तो, थोड़ी सी बरसात ।
अम्बर में आदित्य को, बादल देते मात ।।
बादल नभ को चूमते, पहन श्वेत परिधान ।
हंसों की ये टोलियाँ, आसमान की शान ।।
नील वसन पर कर दिया, मेघों ने शृंगार ।
धरती पर चलने लगी, शीतल मस्त बयार…
Added by Sushil Sarna on June 24, 2022 at 2:30pm — 6 Comments
हंसगति छन्द. . . .(11,9)
जले शमा के साथ, रात परवाने ।
करें इश्क की बात, शमा दीवाने ।
दिल को दिल दिन-रात, सुनाता बातें ।
आती रह -रह याद, तन को बरसातें ।
* * * *
बिखरी-बिखरी ज़ुल्फ,कहे अफसाने ।
तन्हा - तन्हा आज, लगे मैख़ाने ।
पैमानों से रिन्द , करें मनमानी ।
अब लगती है जीस्त , यहाँ बेमानी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुशील सरना / 23-6-22
Added by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 1:14pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . .
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत इसकी प्यास ।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत…
Added by Sushil Sarna on June 22, 2022 at 6:12pm — 8 Comments
पितृ दिवस पर कुछ क्षणिकाएँ ....
काँधे को
काँधे ने
काँधे दिया
इक अरसे के बाद
सृष्टि रो पड़ी
.........................
छूट गया
उँगलियों से
उनका आसमान
इक नाद बनकर रह गया
इक नाम
पापा
............................
पापा
पुत्र का आसमान
पुत्र
पिता का अरमान
एक छवि एक छाया
एक जान
एक पहचान
सुशील सरना / 19-6-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 19, 2022 at 8:28pm — 4 Comments
मुक्तक
आधार छंद हंसगति (11,9 )
प्रीतम तेरी प्रीत , बड़ी हरजाई ।
विगत पलों की याद, बनी दुखदाई ।
निष्ठुर तेरा प्यार , बहुत तड़पाता -
तन्हाई में आज, आँख भर आई ।
* * *
दिल से दिल की बात, करे दिलवाला ।
मस्ती में बस प्यार , करे मतवाला ।
उसके ही बस गीत , सुनाता मन को -
पी कर हो वो मस्त , नैन की हाला ।
सुशील सरना / 15-6-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 15, 2022 at 11:44am — 4 Comments
कौन है वो ......
उनींदीं आँखें
बिखरे बाल
पेशानी पर सलवटें
अजब सी तिश्नगी लिए
चलता रहता है
मेरे साथ
मुझ सा ही कोई
मेरी परछांईं बनकर
कौन है वो
जो
मेरे देखने पर
दूर खड़ा होकर
मुस्कुराता है
मेरी बेबसी पर
सुशील सरना / 5-6-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 5, 2022 at 12:15pm — No Comments
याद आयेगा हमें .....
जान ले लेगा हमारी मुस्कुराना आपका
इस गली का हर बशर अब है दिवाना आपका
बारिशों में बाम पर वो भीगती अगड़ाइयाँ
आँख से जाता नहीं वो रुख छुपाना आपका
हम गली के मोड़ पर हैं आज तक ठहरे हुए
सोचते हैं हो गया गुम क्यों ठिकाना आपका
दिल लगा कर तोड़ना तासीर है ये आपकी
दूर जाने का नहीं अच्छा बहाना आपका
वो गिराना खिड़कियों से पर्चियाँ इकरार की
याद आयेगा हमें सदियों जमाना …
Added by Sushil Sarna on May 29, 2022 at 1:29pm — No Comments
रोला छंद. . . .
विगत पलों की याद, हृदय को लगे सुहानी।
छलक-छलक ये नैन, गाल पर लिखें कहानी ।
मौन छुअन संवाद, देह पर विचरण करते ।
सुधियों के सब रंग, रिक्त अम्बर में भरते ।
*=*=*=*
तड़प- तड़प के रात, गुजारे प्रेम दिवानी ।
विरहन की ये पीर, जगत ने कब है जानी ।
मौसम गुजरे साथ, प्यार के गये जमाने ।
रह - रह आते याद, रात के वो अफसाने ।
सुशील सरना / 28-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 28, 2022 at 2:23pm — No Comments
आँधियों से क्या गिला .....
2122 2122 2122 212
रूठ जाएँ मंजिलें तो रहबरों से क्या गिला
हो समन्दर बेवफ़ा तो कश्तियों से क्या गिला
टूट जाए घर किसी का ग़र हवाओं से कहीं
वक्त ही ग़र हो बुरा तो आँधियों से क्या गिला
याद आया वो शज़र जिस पर गिरी थी बारिशें
आज भीगे हम अकेले बारिशों से क्या गिला
ज़ख्म यादों के न जाने आज क्यूँ रिसने लगे
दर्द के हों जलजले तो आँसुओं से क्या…
Added by Sushil Sarna on May 24, 2022 at 4:00pm — 10 Comments
सिन्दूर (क्षणिकाएँ ).....
सजावट की
नहीं
निभाने की चीज है
सिन्दूर
******
निभाने की नहीं
आजकल
सजावट की चीज है
सिन्दूर
******
छीन लिया है
अर्थ
सिन्दूर का
वर्तमान के
बदले परिवेश ने
******
प्रतीक है
दो साँसों के समर्पण की
अभिव्यक्ति का
सिन्दूर
******
आरम्भ है
एक विश्वास के
उदय होने का
माथे पर अलंकृत
चुटकी भर
सिन्दूर
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 23, 2022 at 10:53am — 2 Comments
फिर किसी के वास्ते ......
क्यूँ दिलाएं हम यकीं दिल को किसी के वास्ते ।
हो गया दिल आज गमगीं फिर किसी के वास्ते ।
था बसाया घर कभी हमने किसी के ख़्वाब में ,
छोड़ दी हमने ज़मीं वो फिर किसी के वास्ते ।
मर मिटा था दिल कभी जो इक हसीं के नूर पर ,
तोड़ आए दिल वहीं वो फिर किसी के वास्ते ।
दे गया महबूब मेरा मुझ को जीने की सज़ा ,
आज क्यूँ जाने हज़ीं है दिल किसी के वास्ते ।
वो तसव्वुर में हमारे बस गई कुछ इस तरह…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 19, 2022 at 2:12pm — 3 Comments
गजल- ज़ुल्फ की जंजीर से ......
2122 2122 2122 212
आश्ना होते अगर हम हुस्न की तासीर से
दिल लगाते हम भला क्यों ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर से
खा रहे थे लाख क़समें जो हमारे प्यार की
दे गए वो दर्द लाखों इक नज़र के तीर से
हमसफ़र बन कर चले वो रास्ते में छोड़ कर
भर गए झोली हमारी ग़र्द की जागीर से
मंज़िलों के पास आ के दूर मंज़िंलें हो गई
क्या गिला शिकवा करें हम धड़कनों के पीर से
बाद मुद्दत के मिले…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 13, 2022 at 9:00pm — 8 Comments
बुझते नहीं अलाव .....(दोहा गज़ल )
मौन प्रीत के हो गए, अंकित मन में भाव ।
इन भावों के उम्र भर, बुझते नहीं अलाव ।।
साँसों को मिलती नहीं, जब तक प्रीत की साँस,
रिसते रहते ह्रदय में, मौन प्रीत के घाव ।
आँखों को देती रहीं , आँखें ये संदेश ,
दूर किनारा है बहुत , कागज की है नाव ।
अजब अगन है प्रीत की, अजब प्रीत की रीत ,
नैन कोर से याद के , होते रहते स्राव ।
ठहर गया है वक्त भी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 11, 2022 at 11:30am — 10 Comments
दोहा मुक्तक.....
अपने कृत्यों से कभी, देना मत संताप ।
माँ के चरणों में कटें, जन्म- जन्म के पाप ।
फर्ज निभाना दूध का , हरना हर तकलीफ -
बेटे को आशीष से, माँ के मिले प्रताप ।
* * * *
भूले से करना नहीं, माता का अपमान ।
देना उसके त्याग को, सेवा से सम्मान ।
मूरत है ये ईश की, ये करुणा की धार -
माँ के चरणों में सदा, सुखी रहे सन्तान ।
सुशील सरना / 10-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 10, 2022 at 8:12pm — 5 Comments
मुक्तक
आधार छंद - मनोरम
प्यार का इजहार लेकर ।
आस का अंबार लेकर ।
दे रहा आवाज कोई -
श्वास का शृंगार लेकर ।
***
प्रीत का संसार देकर ।
मौन का आधार देकर ।
छल गया विश्वास कोई -
स्पर्श का अंगार देकर ।
***
ख्वाब जो साकार होते ।
दर्द क्यों गुलज़ार होते ।
तिश्नगी को जीत लेते -
आप का हम प्यार होते ।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 6, 2022 at 2:18pm — 4 Comments
दोहा पंचक ....
मन में मदिरा पाप की, तन व्यसनों का धाम ।
मानव का चोला करे, मानव को बदनाम ।।
छोड़ो भी अब रूठना, छोड़ो भी तकरार ।
देखे थे जो आपके , स्वप्न करो साकार ।।
लुप्त हुई संवेदना , मिटा खून का प्यार ।
रिश्तों में गुंजित हुई , बंटवारे की रार ।।
दिख जाएगी देख तू , तुझको अपनी भूल ।
मन के दर्पण से हटा , जमी स्वार्थ की धूल ।।
भेद बढ़ाती प्यार में, बेमतलब की रार ।
खो न दें कहीं रार में, जीवन का…
Added by Sushil Sarna on May 3, 2022 at 11:58am — 4 Comments
ताकत .....
"क्या बात है रामदेव जी। आज बहुत उदास लग रहे हो ।"" दीनानाथ जी ने चाय पीते- पीते पूछा ।
"दीनानाथ जी आजकल किसी को कुछ कहने का जमाना नहीं है ।" रामदेव ने कहा ।
"क्या हुआ कुछ बताओ तो।" दीनानाथ जी बोले ।
"अरे कल रात की ही बात है । आधी रात को सड़क बनाने वाले इंजन की आवाज़ सुनकर हमारी नींद उखड़ गई । बाहर आकर देखा तो रोड रोलर हमारी गली के कोने की दुकान के सामने की सड़क के छोटे से टुकड़े पर डामरीकरण कर रहे थे ।" रामदेव जी बोले जा रहे थे ।
"फिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 30, 2022 at 8:49pm — 8 Comments
सुख-दुख हैं दो तीर , साँस की बहती धारा ।
जीवन का संघर्ष , अन्त में जीवन हारा ।
बचा न कुछ भी शेष,
रही बस शेष कहानी ।
काया के अवशेष ,
ले गया गंगा पानी ।
अटल सत्य जब श्वास, छोड़ कर जाती काया ।
कुछ न आता काम , व्यर्थ हो जाती माया ।
वक्त गया जो बीत,
कभी न लौट कर आए ।
शून्य व्योम ये सत्य ,
बार - बार दोहराए ।
सुशील सरना / 26-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 25, 2022 at 12:00pm — 2 Comments
दोहावली......
जग के झूठे तीर हैं, झूठी है पतवार ।
अवगुंठन में जीत के, मुस्काती है हार ।।
कुदरत ने सबको दिया, जीने का अधिकार ।
धरती के हर जीव को, बाँटो अपना प्यार ।।
छाया देती साथ जब, होता प्रखर प्रकाश ।
विषम काल में ईश ही , काटे दुख के पाश ।।
दो साँसों के तीर में, सुख -दुख का है नीर ।
भज दाता के नाम को, जब तक चले शरीर ।।
काया की प्राचीर में, साँसें खेलें खेल ।
इसकी हर दीवार पर, इच्छाओं की…
Added by Sushil Sarna on April 24, 2022 at 12:10pm — 2 Comments
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