दोहा मुक्तक-मुफलिसी ..........
चौखट पर ईमान की, झूठे पहरेदार ।
भूख, प्यास, आहें भरे, रुदन करे शृंगार ।
नीर बहाए मुफलिसी, जग न समझा पीर -
फुटपाथों पर भूख का, सजा हुआ बाजार ।
* * * * *
मौसम की हैं झिड़कियाँ, तानों का उपहार ।
मुफलिस की हर भोर का , क्षुधा करे शृंगार ।
क्या आँसू क्या कहकहे, सब के सब है मौन -
दो रोटी के वास्ते, तन बिकता सौ बार ।
सुशील सरना / 4-9-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on September 4, 2022 at 2:51pm — 4 Comments
वरिष्ठ नागरिक दिवस पर कुछ दोहे :
अपने बेगाने हुए, छोड़ा सबने साथ ।
हाथ काँपते ढूँढते, अब अपनों का हाथ ।1।
बरगद बूढ़ा हो गया, पीत हुए सब पात ।
मौसम बीते दे गए, अश्कों की सौगात ।2।
वृद्धों को बस चाहिए, थोड़ा सा सम्मान ।
अवसादों को छीन कर , उनको दो मुस्कान ।3।
बहते आँसू कह रहे, व्यथित हृदय की बात ।
जरा काल में ही दिए, अपनों ने आघात ।4।
कौन मानता है भला, अब वृद्धों की बात ।
बात- बात पर अब मिले,…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2022 at 1:00pm — 4 Comments
मन्द -मन्द मुस्का रहे, पलने में गोपाल ।
देख - देख गोपाल को, जीवन हुआ निहाल।।
ढोल नगाड़े घंटियाँ, जयकारे का शोर ।
दिग दिगंत से देवता, देखें नन्द किशोर ।।
माँ से माखन माँगता, जग का पालनहार ।
माँ अपने गोपाल को, माखन दे सौ बार ।।
माखन खाते लाल को , मैया रही निहार ।
उसकी तुतली बात पर, माँ को आता प्यार ।।
पाप हरन के वास्ते, हुआ कृष्ण अवतार ।
कान्हा अपने भक्त का, सदा करें उद्धार ।।
ठुमक - ठुमक…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 19, 2022 at 3:00pm — 4 Comments
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर कुछ दोहे .....
सीमा पर छलनी हुए, भारत के जो वीर ।
याद करें उनको जरा, भर आँखों में नीर ।।
रक्त लिप्त कुर्बानियां ,मिटने के उन्माद ।
फाँसी चढ़ कर दे गए, हमें वतन आजाद ।।
आजादी की जंग के, वीर रहेंगे याद ।
उन वीरों के स्वप्न का, ध्वज करता अनुवाद ।।
केसरिया तो रंग है, साहस की पहचान ।
श्वेत शान्ति का दूत है, हरा धरा की शान ।।
रंग तिरंगे के बने, भारत की पहचान ।
घर-घर…
Added by Sushil Sarna on August 15, 2022 at 2:47pm — 2 Comments
राखी पर कुछ दोहे. . . .
भाई बहिन के प्यार का, राखी है त्योहार ।
पावन धागों में छुपी , बहना की मनुहार ।।
बहना भेजे डाक से, भाई को सन्देश ।
राखी भैया बाँधना, मैं बैठी परदेश ।।
रंग बिरंगी राखियाँ, रिश्तों का संसार ।
धागों में है छुपी हुई, बहना की मनुहार ।।
राखी ले कर भ्रात के, बहना आई द्वार ।
तिलक लगाती माथ पर, देती दुआ हजार ।।
बहना चाहे भ्रात का, सुखी रहे परिवार ।
रिश्तों में चलती रहे, मीठी मधुर…
Added by Sushil Sarna on August 11, 2022 at 1:02pm — 2 Comments
गीत रीते वादों का ......
मैं गीत हूँ रीते वादों का , मैं गीत हूँ बीती रातों का।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
हर मौसम ने उस मौसम की
बरसातों को दहकाया है ,
बीत गया वो मौसम दिल का
लौट के फिर कब आया है ,
जश्न मनाता हूँ मैं अपनी , भीगी हुई मुलाकातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
कैसे अपने स्वप्न मिटा दूँ…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 27, 2022 at 3:01pm — No Comments
दोहा त्रयी : फूल
कागज के ये फूल कब, देते कोई गंध ।
भौंरों को भाता नहीं, आभासी मकरंद ।।
इस नकली मकरंद पर, मौन मधुप गुंजार ।
अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।।
अब कागज के पुष्प दें, प्रीतम को उपहार ।
मुरझाता नकली नहीं, फूलों का संसार ।।
सुशील सरना / 15-7-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 15, 2022 at 3:17pm — No Comments
मुक्तक : गाँव .....
मिट्टी का घर ढूँढते, भटक रहे हैं पाँव।
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव ।
पीपल बूढ़ा हो गया, मौन हुए सब कूप -
काली सड़कों पर हुई, दुर्लभ ठंडी छाँव ।
*******
कच्चे घर पक्के हुए, बदल गया परिवेश ।
छीन लिया हल बैल का, यंत्रों ने अब देश ।
बदले- बदले अब लगें , भोर साँझ के रंग -
वर्तमान में गाँव का, बदल गया है पेश ।
(पेश =रूप, आकार )
********
गाँवों…
Added by Sushil Sarna on July 11, 2022 at 1:00pm — No Comments
बुढ़ापा ....
तन पर दस्तक दे रही, जरा काल की शाम ।
काया को भाने लगा, अच्छा अब आराम ।1।
बीते कल की आज हम, कहलाते हैं शान ।
शान बुढ़ापे की हुई, अपनों से अंजान ।2।
झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का संघर्ष ।
जरा अवस्था देखती ,मुड़ कर बीते वर्ष ।3।
देख बुढ़ापा हो गया, चिन्तित क्यों इंसान ।
शायद उसको हो गया, अन्तिम पल का भान ।4।
काया में कम्पन बढी , दृष्टि हुई मजबूर ।
अपनों से अपने हुए, जरा काल में दूर…
Added by Sushil Sarna on July 6, 2022 at 12:30pm — 4 Comments
दोहा मुक्तक ........
कड़- कड़ कड़के दामिनी, घन बरसे घनघोर ।
उत्पातों के दौर में, साँस का मचाए शोर ।
रात बढ़ी बढ़ते गए, आलिंगन के बंध -
पागल दिल को भा गया , दिल का प्यारा चोर ।
* * * * *
एक दिवानी को हुआ, दीवाने से प्यार ।
पलकों में सजने लगा, सपनों का संसार ।
गुपचुप-गुपचुप फिर हुए, नैनों में संकेत -
चरम पलों में हो गए, शर्मीले अभिसार…
Added by Sushil Sarna on July 4, 2022 at 9:38pm — 2 Comments
पाँच दोहे मेघों पर . . . . .
अम्बर में विचरण करे, मेघों का विस्तार ।
सावन की देने लगी, दस्तक अब बौछार ।।
मेघों का मेला करे, अम्बर का शृंगार ।
आज दिवाकर लग रहा, थोड़ा सा लाचार ।।
थोड़ी सी है धूप तो, थोड़ी सी बरसात ।
अम्बर में आदित्य को, बादल देते मात ।।
बादल नभ को चूमते, पहन श्वेत परिधान ।
हंसों की ये टोलियाँ, आसमान की शान ।।
नील वसन पर कर दिया, मेघों ने शृंगार ।
धरती पर चलने लगी, शीतल मस्त बयार…
Added by Sushil Sarna on June 24, 2022 at 2:30pm — 6 Comments
हंसगति छन्द. . . .(11,9)
जले शमा के साथ, रात परवाने ।
करें इश्क की बात, शमा दीवाने ।
दिल को दिल दिन-रात, सुनाता बातें ।
आती रह -रह याद, तन को बरसातें ।
* * * *
बिखरी-बिखरी ज़ुल्फ,कहे अफसाने ।
तन्हा - तन्हा आज, लगे मैख़ाने ।
पैमानों से रिन्द , करें मनमानी ।
अब लगती है जीस्त , यहाँ बेमानी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुशील सरना / 23-6-22
Added by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 1:14pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . .
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत इसकी प्यास ।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत…
Added by Sushil Sarna on June 22, 2022 at 6:12pm — 8 Comments
पितृ दिवस पर कुछ क्षणिकाएँ ....
काँधे को
काँधे ने
काँधे दिया
इक अरसे के बाद
सृष्टि रो पड़ी
.........................
छूट गया
उँगलियों से
उनका आसमान
इक नाद बनकर रह गया
इक नाम
पापा
............................
पापा
पुत्र का आसमान
पुत्र
पिता का अरमान
एक छवि एक छाया
एक जान
एक पहचान
सुशील सरना / 19-6-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 19, 2022 at 8:28pm — 4 Comments
मुक्तक
आधार छंद हंसगति (11,9 )
प्रीतम तेरी प्रीत , बड़ी हरजाई ।
विगत पलों की याद, बनी दुखदाई ।
निष्ठुर तेरा प्यार , बहुत तड़पाता -
तन्हाई में आज, आँख भर आई ।
* * *
दिल से दिल की बात, करे दिलवाला ।
मस्ती में बस प्यार , करे मतवाला ।
उसके ही बस गीत , सुनाता मन को -
पी कर हो वो मस्त , नैन की हाला ।
सुशील सरना / 15-6-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 15, 2022 at 11:44am — 4 Comments
कौन है वो ......
उनींदीं आँखें
बिखरे बाल
पेशानी पर सलवटें
अजब सी तिश्नगी लिए
चलता रहता है
मेरे साथ
मुझ सा ही कोई
मेरी परछांईं बनकर
कौन है वो
जो
मेरे देखने पर
दूर खड़ा होकर
मुस्कुराता है
मेरी बेबसी पर
सुशील सरना / 5-6-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 5, 2022 at 12:15pm — No Comments
याद आयेगा हमें .....
जान ले लेगा हमारी मुस्कुराना आपका
इस गली का हर बशर अब है दिवाना आपका
बारिशों में बाम पर वो भीगती अगड़ाइयाँ
आँख से जाता नहीं वो रुख छुपाना आपका
हम गली के मोड़ पर हैं आज तक ठहरे हुए
सोचते हैं हो गया गुम क्यों ठिकाना आपका
दिल लगा कर तोड़ना तासीर है ये आपकी
दूर जाने का नहीं अच्छा बहाना आपका
वो गिराना खिड़कियों से पर्चियाँ इकरार की
याद आयेगा हमें सदियों जमाना …
Added by Sushil Sarna on May 29, 2022 at 1:29pm — No Comments
रोला छंद. . . .
विगत पलों की याद, हृदय को लगे सुहानी।
छलक-छलक ये नैन, गाल पर लिखें कहानी ।
मौन छुअन संवाद, देह पर विचरण करते ।
सुधियों के सब रंग, रिक्त अम्बर में भरते ।
*=*=*=*
तड़प- तड़प के रात, गुजारे प्रेम दिवानी ।
विरहन की ये पीर, जगत ने कब है जानी ।
मौसम गुजरे साथ, प्यार के गये जमाने ।
रह - रह आते याद, रात के वो अफसाने ।
सुशील सरना / 28-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 28, 2022 at 2:23pm — No Comments
आँधियों से क्या गिला .....
2122 2122 2122 212
रूठ जाएँ मंजिलें तो रहबरों से क्या गिला
हो समन्दर बेवफ़ा तो कश्तियों से क्या गिला
टूट जाए घर किसी का ग़र हवाओं से कहीं
वक्त ही ग़र हो बुरा तो आँधियों से क्या गिला
याद आया वो शज़र जिस पर गिरी थी बारिशें
आज भीगे हम अकेले बारिशों से क्या गिला
ज़ख्म यादों के न जाने आज क्यूँ रिसने लगे
दर्द के हों जलजले तो आँसुओं से क्या…
Added by Sushil Sarna on May 24, 2022 at 4:00pm — 10 Comments
सिन्दूर (क्षणिकाएँ ).....
सजावट की
नहीं
निभाने की चीज है
सिन्दूर
******
निभाने की नहीं
आजकल
सजावट की चीज है
सिन्दूर
******
छीन लिया है
अर्थ
सिन्दूर का
वर्तमान के
बदले परिवेश ने
******
प्रतीक है
दो साँसों के समर्पण की
अभिव्यक्ति का
सिन्दूर
******
आरम्भ है
एक विश्वास के
उदय होने का
माथे पर अलंकृत
चुटकी भर
सिन्दूर
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 23, 2022 at 10:53am — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |