For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (505)

कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

पथ में कोई सँभालने वाला नहीं हुआ

ये पाँव जानते थे जो छाला नहीं हुआ।।

*

कैसा तमस ये साँझ ने आगोश में भरा

इतने जले चराग उजाला नहीं हुआ।।

*

कालिख दिलों के साथ में ठूँसी दिमाग में

ऐसे ही मुख ये आप का काला नहीं हुआ।।

*

नेता ने क्या क्या पेट में ठूँसा है देश का

बस आदमी ही उसका निवाला नहीं हुआ।।

*

कोशिश बहुत की वैसे तो बँटवारे बाद भी

यह घर किसी भी राह शिवाला नहीं हुआ।।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 5, 2022 at 2:19pm — 3 Comments

भोर सुख की निर्धनों ने पर कहीं देखी नहीं -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

*

जब कोई दीवानगी  ही  आप ने पाली नहीं

जान लो ये जिन्दगी भी जिन्दगी सोची नहीं।।

*

पात टूटे  दूब  सूखी   ठूठ  जैसे  हैं  विटप

शेष धरती का कहीं भी रंग अब धानी नहीं।।

*

भर रहे हैं सब हवा में आग जब देखो सनम

फूल होगा याद  में  बस  गन्ध  तो होगी नहीं।।

*

तैरती है प्यास आँखों में सभी के रक्त की

हो गये हैं  लोग  दानव  पी  रहे पानी नहीं।।

*

राजशाही  साम्यवादी  लोकशाही  दौर  सब

भोर सुख की निर्धनों ने पर कहीं देखी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2022 at 7:22pm — 2 Comments

होना जहाँ को आज भी साकेत चाहिए-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

पानी  नहीं  नदी  से  जिन्हें  रेत चाहिए

रचने को सेज अन्न का हर खेत चाहिए।२।

*

औषध नहीं पहाड़ से पत्थर खदान कर

कंक्रीट के नगर  को  वो समवेत चाहिए।२।

*

दो पल के सुख दे छीनले पूरी सदी को जो

सब को विकास  नाम  का  वो प्रेत चाहिए।३।

*

छाया से पेड़ की नहीं लकड़ी से प्यार है

कुर्सी को जंगलों  की  सभी बेत चाहिए।४।

*

धरती को नोच चाँद को रौंदा उन्हें यहाँ

रीती  नदी  में  नीर  का  संकेत चाहिए।५।

*

वैभव नगर का साथ में…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2022 at 6:40am — No Comments

कहतें हैं वोट शक्ति का पर्याय है अगर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

अब  झूठ  राजनीति  में  दस्तूर  हो गया

जिस का हुआ विरोध वो मशहूर हो गया।१।

*

जनता के हक में बोलते जो काम बोझ है

नेता के हक में  काम  वो  मन्जूर हो गया।२।

*

कहते हो वोट  शक्ति  का पर्याय है अगर

क्यों लोक आज देश का मजबूर हो गया।३।

*

जो चाहे मोल दे  के  करा लेता काम है

कानून  जैसे  देश का  मजदूर  हो गया।४।

*

जनता न राजनीति की मन्जिल बनी कभी

उपयोग उस  का  राह  सा  भरपूर हो गया।५।

*

होता भला न…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 2, 2022 at 3:30am — 2 Comments

कभी तो पढ़ेगा वो संसार घर हैं - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२२

*

सियासत को आता है तलवार पढ़ना

उसे भी सिखाओ तनिक प्यार पढ़ना।।

*

किसी दिन सभी कुछ यहाँ फूक देगा

सिखाओ न अब तुम ये अंगार पढ़ना।।

*

वही झूठ हर  दिन  वही  दुख भरा है

सुखद कब लगेगा ये अखबार पढ़ना।।

*

शिखर खोजते है बहुत लोग लेकिन

किसी को न भाता है  आधार पढ़ना।।

*

कभी  तो  पढ़ेगा  वो  संसार  घर हैं

जिसे आ गया घर को संसार पढ़ना।।

*

जमाने को अच्छा अगर कर न पाये

समझ लो हुआ सबका बेकार…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2022 at 2:53am — 9 Comments

एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

*

जो नदी की  आस  लेकर जी रहे हैं

एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं।१।

*

है बहुत धोखा सभी की साँस में यूँ

परकटे  विश्वास  लेकर  जी  रहे हैं।२।

*

जो पुरोधा  हैं  यहाँ  स्वाधीनता के

साथ अनगिन दास लेकर जी रहे हैं।३।

*

भोग में डूबे स्वयम् उपदेश देकर

कौन ये सन्यास लेकर जी रहे हैं।४।

*

जिन्दगी उन को लुभा ले हर्ष देकर

जो मरण की आस लेकर जी रहे हैं।५।

*

एक दिन तो ईश को सुनना पड़ेगा

जीभ में अरदास लेकर जी रहे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2022 at 10:50am — 11 Comments

केवल बहाना खोज के जलती हैं बस्तियाँ - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

सीमित से दायरे  में  न पल भर उड़ान हो

उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।

*

दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के

राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।

*

केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए

इस को  नहीं  जरूरी  बड़ा  खानदान हो।३।

*

मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें

इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।

*

जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे

जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।

*

हिस्से में…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2022 at 7:00am — 4 Comments

इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

खंडित करे न देश को तलवार मजहबी

आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।

*

मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना

करते रहे हैं लोग  जो  व्यापार मजहबी।।

*

जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा

इन्सानियत से  दूर  हो  सन्सार मजहबी।।

*

माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो

इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।

*

समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है

बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।

*

करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments

जलाया घर अमावस ने -- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

*

नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं

दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।

*

तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय

मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।

*

हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है

सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।

*

तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से

बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।

*

जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही

कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2022 at 5:21am — No Comments

पिता - दोहे

दोहे -पिता

*****

पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस

वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।

*

जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव

सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।

*

जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह

अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।

*

डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात

सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।

*

नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह

हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।

*

पत्थर से व्यवहार…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो

अब रक्त डूबी  इस  में  न कोई कहानी हो।।

*

होता अगर  हो  प्यार  का  आबाद हर नगर

हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।

*

भटको न आस पास  के  रंगीं नजारे देख

पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।

*

हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर

कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।

*

किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे

मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो

*

दिल है जवाँ…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments

संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं-(गजल)

आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा

अब एक दूसरे  को  चिढ़ाया न जाएगा।।

*

यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है

वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।

*

मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं

आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।

*

बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा

सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।

*

संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं

कोई भी भेद-भाव  हो  गाया न जाएगा।।

*

होगी समान न्याय की जब रीत देश में

तब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2022 at 6:18pm — 2 Comments

गुण्डे समूची फौज ले थाने पे आ गये -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

बाबर से यार  जो  भी बुलाने पे आ गये

इतिहास लिख के झूठ छुपाने पे आ गये।१।

*

अनबन से घर की गैर जो न्योते गये कभी

अपनों के बाद खुद भी निशाने पे आ गये।२।

*

पुरखों को अपने भूल के अपनाते गैर को

ये  कौन  लोग  देश  जलाने  पे  आ  गये।३।

*

कानून कैसे आज भी पहले सा है विवश

गुण्डे समूची  फौज  ले  थाने  पे आ गये।४।

*

गुजरा वो दौर बम से जो दहले था देश पर

पत्थर से  आज  शान्ति  उड़ाने  पे जा गये।५।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2022 at 9:30pm — 4 Comments

दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

जो व्यक्ति जग में जन्म से अपना इमाम हो

बोलो किसी भी और का क्योंकर ग़ुलाम हो।।

*

इतनी न आपने देश में फैले अशान्ति फिर

घर में सभी के आज भी पौदा जो राम हो।।

*

चाहे किसी भी कौम से नाता हो फर्क क्या

जाफर न  घर  में  आप के, पैदा कलाम हो।।

*

दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में

अब्दुल गणेश जोन या करतार नाम हो।।

*

छोड़ो ये खानदान ये मजहब ये जातियाँ

सबकी वतन में देखिए पहचान काम हो।।

*

नफरत लिए न भोर के बैठी हो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2022 at 9:58am — 2 Comments

बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं

मीनारें नफरतों  की  ये ढहती नहीं कहीं।।

*

जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा

इतिहास खोद  बस्तियाँ  मिलती नहीं कहीं।।

*

होली में कब वो  रंग  में डूबा था पूछ मत

अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।

*

मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह

आये हैं ऐसी  राह  जो  खुलती नहीं कहीं।।

*

मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें

बातें जो  वामियान  की  थमती नहीं कहीं।।

*

बाबर ढहाया तोड़ के…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2022 at 12:55pm — 2 Comments

खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

*

कैसे कैसे  सर  बचाने  में  लगे  हैं  लोग  सब

क्या समझ खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।

*

एक हम हैं जो शिखर पर जान देने पर तुले

नींव के  पत्थर  बचाने  में  लगे हैं लोग सब।।

*

लहलहाते  खेत  मेटे  सेज  के  विस्तार को

आजकल बन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।

*

जिसको देखो आग ही की बात करता है यहाँ

कैसे कह दें  घर  बचाने  में  लगे  हैं लोग सब।।

*

हैं सुरक्षित सोचकर वो भीड़ में शामिल मगर

अपने भीतर डर  बचाने  में  लगे हैं…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2022 at 12:58pm — No Comments

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

मजहब की नफरतों का ये मन्जर नया नहीं

टोपी तिलक के बीच का अन्तर नया नहीं।१।

*

कितनों को कोसें और कहें जा निकल अभी

जाफर विभीषणों से भरा घर नया नहीं।२।

*

कितना बचेंगे साध के चुप्पी भला यहाँ

अपनों की आस्तीन का खन्जर नया नहीं।३।

*

उन की जुबाँ पे आज भी बँटवारा बैठा है

अपनों से पायी पीर का सागर नया नहीं।४।

*

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने

देना तो देश दुनिया को उत्तर नया नहीं।५।

*

उलझे हुओं की सोच में तारण उसी से…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2022 at 9:39pm — 2 Comments

जब है मंदिर और मस्जिद में वही - लक्ष्मण धामी " मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए

दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।

*

देशहित में क्या भला है आप भी

कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।

*

जब है मंदिर और मस्जिद में वही

आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।

*

सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया

क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।

*

धर्म  माटी  को  समझकर  देश  की

आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।

*

चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का

आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।

*

फिर उठाना दूसरे की आप सौं

पहले पूरा इक वचन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2022 at 10:45pm — 2 Comments

मातृ दिवस पर गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी

मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।

*

चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के

समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।

*

माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर

नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।

*

गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ

मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।

*

पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक

लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।

*

चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2022 at 12:31pm — 10 Comments

तन-मन के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

तन-मन के दोहे

-------------------

चतुर लालची मन हुआ, भोली देह गँवार

जब तब जैसा मन कहे, होती वह तैयार।१।

*

सहज देह की भूख है, निदिया, रोटी, नीर

जग में पर बदनाम है, मन से अधिक शरीर।२।

*

तन को थोड़ा चाहिए, मन की माग अनंत

कहते मन बस में रखो, इस कारण ही सन्त।३।

*

बढ़े भावना काम की, करें नैन व्यभिचार

केवल साधन देह तो, मन साधक की मार।४।

*

तन से बढ़कर मन रहे, नित्य विषय में लीन

जिस की बातें मानकर, कर्म करे तन हीन।५।

*

विषय मुक्त जो मन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2022 at 1:59pm — 8 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
17 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
19 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service