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मनोज अहसास's Blog – August 2015 Archive (2)

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212



लड़खड़ाहट चाहता हूँ मैं संभल जाने के बाद

धूप दिल में चुभ रही है दिन निकल जाने के बाद



सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का

और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद



ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत

खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद



खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम

ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद



सर छुपाये फिर रहा था रौशनी में दर-ब-दर

चाँद सा खिलने लगा गम शाम ढल जाने के…

Continue

Added by मनोज अहसास on August 13, 2015 at 9:30pm — 15 Comments

तेरी बातें (कविता)____मनोज कुमार अहसास

पढ़ा है दर्द की आँखों में तराना तेरा

तुझको मालूम हो शायद मेरा बेरंग सफ़र

मैंने हर लम्हा तेरी याद को पेशानी दी

तुझपे कुर्बान रही मेरी अकीदत की नज़र





मैं सुलगता हूँ तेरा साथ निभाने के लिए

हलाकि कुछ भी नही बाकि है जलने को इधर

ख़त्म हो चुकी इक रस्म की सांसो के लिए

ज़बी हर लम्हा ढूंढती है तेरी रहगुजर





तुझको पा लेना किसी हाल में मुमकिन ही न था

तुझको खोने की तमन्नाये उठी पर कैसे

जब थे मजबूर किसी बात की परवाह न थी

आज इन जमते हुए… Continue

Added by मनोज अहसास on August 9, 2015 at 10:39pm — 12 Comments

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