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Sheikh Shahzad Usmani's Blog – December 2016 Archive (2)

नंगे लोग (लघुकथा)

फ़रीद भाई स्वयं अपने व अपने घर के छोटे-छोटे ज़रूरी काम ख़ुद कर लेते हैं लेकिन पता नहीं ऊपर वाले ने उनमें कौन सी दिमाग़ी कमी या बीमारी पैदा कर दी कि विक्षिप्त व्यक्ति जैसा जीवन जी रहे हैं। थोड़ी देर पहले ही किशन ने देखा था कि फ़रीद भाई ख़ुशी से झूमते हुए अपने व्यवसायी भाई के घर की ओर जा रहे थे। किसी भले नाई ने इस बार भी उनकी हेअर कटिंग और सेविंग मुफ़्त में कर दी थी। बड़े ही साफ़-सुथरे लग रहे थे। लेकिन अब यह क्या ! ये क्यूँ यहाँ अपनी हाफ़-पैंट की बेल्ट पकड़े हुए आधे नंगे से दौड़ रहे हैं? किशन… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 25, 2016 at 8:54am — No Comments

सांसारिकता (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"पढ़-लिख गये हो, अब क्या करोगे सरकारी नौकरी या प्राइवेट?" बुज़ुर्ग पड़ोसी ने युवक से पूछा।



"नहीं, नौकरी तो नहीं करूंगा!" टेढ़ा सा मुँह बनाकर युवक ने कहा।



"तो क्या दुकान खोलोगे, धंधा-व्यापार करोगे? कौन सा?"



"धंधा! धंधा तो कतई नहीं, इसके लिए पर्याप्त धैर्य मुझमें है ही नहीं!"



"तो फिर क्या बाप की छाती पर ही बैठे रहोगे, पढ़ने-लिखने के बाद भी?" बुज़ुर्ग ने उसको घूरते हुए कहा।



"यह कैसी बात कह रहे हैं आप ? पहले तो मैं दुनियादारी सीखूंगा… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2016 at 7:04pm — 17 Comments

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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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